किसानों के 310 करोड़ रु. अटके: कलेक्टरों के पत्र को फाइनेंस के अफसर ने बताया बकवास

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किसानों के 310 करोड़ रु. अटके: कलेक्टरों के पत्र को फाइनेंस के अफसर ने बताया बकवास

राहुल शर्मा । भोपाल. सरकार किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ दिलाने के लिए बढ़-चढ़कर दावे और वादे करती है लेकिन हकीकत ठीक उलट है। प्रदेश के 02 लाख किसानों को उनकी 2019 में खराब हुई खरीफ फसल की बीमा राशि अभी तक नहीं मिली है। किसानों की अटकी हुई रकम का आंकड़ा 310 करोड़ रुपये है। यह रकम पाने के लिए किसान जिलों में कलेक्ट्रेट, बैंक औऱ बीमा कंपनियों के चक्कर काटने को मजबूर हैं लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। किसानों को उनकी बकाया बीमा राशि नहीं मिल पाने के वजह बैंकों की लापरवाही है।

बैंकों की लापरवाही की सजा किसानों को

दरअसल बैंकों ने फसल बीमा के प्रीमियम के लिए किसानों के खातों से राशि तो काट ली लेकिन बीमा कंपनी को उनके जरूरी दस्तावेज नहीं भेजे। नतीजा बीमा कंपनी ने बैंकों को प्रीमियम राशि लौटा दी। किसानों को जब बीमा की राशि नहीं मिली तो उन्होंने कलेक्टर को शिकायत की। कलेक्टर ने बैंक अधिकारियों को समस्या सुलझाने को कहा पर बैंक अधिकारियों ने उनकी भी नहीं सुनी। बैंकों की इस लापरवाही के बारे में कई जिलों के कलेक्टर ने सरकार के संस्थागत वित्त विभाग को पत्र लिखे। लेकिन इस विभाग के अधिकारी तो और भी गैरजिम्मेदार निकले। जब "द सूत्र" की टीम ने उनसे फसल बीमा का भुगतान न होने के बारे में कलेक्टरों के पत्र पर कार्रवाई की जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने इस पूरे मामले को बकवास करार दिया।

द सूत्र के कैमरे में कैद हुआ जेडी का गैर जिम्मेदार बयान

मामले को लेकर द सूत्र की टीम ने संस्थागत वित्त के संयुक्त संचालक (JD) एसके गुप्ता से बात की। इस पूरी बातचीत की रिकॉर्डिंग द सूत्र के पास उपलब्ध है। बातचीत में एसके गुप्ता जिलों से कलेक्टर द्वारा लिखे गए पत्र को मीनिंग लेस बताया। उन्होंने कहा कि हम ऐसे पत्रों पर कोई कार्रवाई नहीं करते। योजना मूल रूप से एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की है इसलिए इस मामले में वही जवाबदार है।

कलेक्टरों के पत्र की जानकारी से भी किया इंकार

प्रदेश सरकार के संस्थागत वित्त का काम बैंक और सरकार के बीच समन्वय बनाने का है । यही कारण है कि जब खरीफ-2019 के फसल बीमा की शिकायतों के निराकरण के लिए बैंकों ने रूचि नहीं दिखाई तो कलेक्टर्स ने संस्थागत वित्त कार्यालय को पत्र लिखे। लेकिन इसके जेडी एसके गुप्ता ने ऐसे किसी भी पत्र की जानकारी होने से ही साफ इंकार कर दिया। जबकि द सूत्र के पास उज्जैन कलेक्टर द्वारा संस्थागत वित्त को लिखे पत्र की कॉपी उपलब्ध है।

इधर किसान नहीं कर पाए बोवनी

राजधानी के नजदीक गांव भैंरूपुरा के किसान श्रवण प्रजापति और कुमेर सिंह अपनी जमीन पर इस बार खरीफ-2021 की बोवनी नहीं कर पाए। कारण उन्हें फसल बीमा का पैसा नहीं मिला। उन्हें अब बाजार से भी उधार नहीं मिल पा रहा है। कुछ ऐसी ही कहानी खामखेड़ा गांव के किसान चंदर सिंह राजपूत की है। जिन खेतों में फसल लहलहानी थी, आज उनमें खरपतवार लगी हुई है। कारण पहले से ही कर्ज में डूबे किसान के पास अब बोवनी तक के पैसे नहीं है।

ऐसे समझे बीमा के प्रीमियम और उसकी क्लेम की राशि का गणित

-किसान: श्रवण प्रजापति, भैंरूपुरा-खेती: 1.21406 हेक्टेयर यानि 3 एकड़-कौन सी फसल खराब हुई: खरीफ 2019 में सोयाबीन-कितना दिया प्रीमियम: किसान ने 607 रूपए और सरकार ने 5409 रूपए-कितना मिलता क्लेम: करीब 30 हजार रूपए

फसल बीमा खरीफ-2019 एक नजर में

-कुल किसानों ने बीमा कराया- 37 लाख 27 हजार 835-अब तक बीमा क्लेम का भुगतान- 24 लाख 49 हजार 825 किसानों को 5 हजार 562 करोड़ 73 लाख रूपए।-अभी कितने किसानों का क्लेम अटका- 2 लाख 5 हजार किसानों का। -बीमा क्लेम की बकाया राशि करीब 310 करोड़ रूपए से भी अधिक-फसल बीमा को लेकर सीएम हेल्पलाइन में पेंडिंग शिकायतें- 8845

खरीफ-2019 फसल बीमा क्लेम में कब क्या हुआ

- 16 मई 2020 से 2 जून 2020 तक बीमा के लिए पोर्टल खोले गए थे, इनमें से 97 हजार 616 किसानों का प्रीमियम बीमा कंपनी ने बैंक को वापस लौटा दिया। - कृषि विभाग, बैंक और बीमा कंपनी के अधिकारियों की दर्जनों बैठकों के बाद 1 मार्च 2021 से 10 मार्च 2021 को दोबारा पोर्टल खोला गया। जिसमें 65 हजार 765 किसानों के क्लेम अप्रूव हुए। - शेष 31 हजार 851 किसानों के क्लेम के मामले में बैंक के अधिकारियों को बीमा कंपनी से समन्वय बनाने के लिए कहा है, ऐसा नहीं होने पर क्लेम के लिए बैंक जिम्मेदार होगी। - जब 1 मार्च 2021 से 10 मार्च 2021 को दोबारा पोर्टल खोला गया तो 2 लाख 5 हजार पंजीयन हुए, इनमें वे किसान भी थे जिनके आधार नंबर मिस मैच या आधार ही नहीं होने से मामला अटका हुआ था।

पीड़ित किसानों का दर्द

सीहोर जिले के चंदेरी गांव के कृषक एमएस मेवाड़ा हाथ जोड़कर सरकार से अनुरोध करते हैं कि किसानों को बीमे की राशि दो क्योंकि किसानों की माली हालत ठीक नहीं है। इधर सागर जिले के किसान संदीप ठाकुर किसानों को बीमा राशी नहीं मिलने पर सरकार को दोषी मानते हैं। संदीप कहते हैं कि जब फसल खराब होने पर मुआवजा मिल रहा है तो दो साल से बीमा की राशि क्यों नहीं मिल रही। इसी तरह बालाघाट के अमेड़ा गांव के किसान उमाशंकर पारदी और सतना के सिमरवाड़ा के किसान योगेश सिंह भी फसल बीमा नहीं मिलने से नाराज हैं।

किसान को कर्जदार बनाने के लिए सरकार दोषी

किसानों को कर्जदार बनाने के लिए सरकार और उसकी नीतियां दोषी है। बीमा का पैसा नहीं दिया। किसान बोवनी नहीं कर पाए या जो कर पाए उन्होंने साहूकार से ज्यादा ब्याज दर में कर्ज लिया। किसान पूरी तरह से फसल पर निर्भर होता है। वह एक गड्ढे को भरने के लिए कर्ज लेता है पर दूसरा गड्ढा पहले से ही बना होता है। बस ऐसे ही किसान कर्जदार होता चला जाता है। - इरफान जाफरी, संगठन प्रमुख, किसान कल्याण संगठन मध्यप्रदेश।

एग्रीकल्चर के एसीएस बोले- सरकार नहीं, बैंक व बीमा कंपनी जिम्मेदार

बैंकों ने किसानों के प्रीमियम की राशि काटी थी। जिसे बीमा कंपनी को जमा भी किया गया लेकिन किसानों की निर्धारित जानकारी नहीं देने पर बीमा कंपनी ने कुछ बैंकों को यह राशि वापस कर दी। यह सब स्थिति बैंक और बीमा कंपनी के बीच समन्वय नहीं होने के कारण बनी है, इसका सरकार से कोई लेना देना नहीं है। - अजीत केसरी, अपर मुख्य सचिव, कृषि कल्याण तथा कृषि विकास विभाग।

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