मप्र में कैंसर के इलाज को भटक रहा परिवार, सरकारी अस्पतालों में रेडियोथेरेपी मशीनें नहीं, कागजों में फंसी लीनियर एक्सेलेरेटर्स मशीन

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Ruchi Verma
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मप्र में कैंसर के इलाज को भटक रहा परिवार, सरकारी अस्पतालों में रेडियोथेरेपी मशीनें नहीं, कागजों में फंसी लीनियर एक्सेलेरेटर्स मशीन

BHOPAL: आज विश्व कैंसर दिवस है। और कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय रिपोर्ट्स (विश्व स्वास्थ्य संगठन, क्लीवलैंड क्लिनिक-ओहियो, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट) और देश की संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक। दुनिया के 20 फीसदी कैंसर मरीज भारत में हैं और आने वाले कुछ सालों में भारत को कैंसर की सुनामी झेलनी पड़ सकती है। इन रिपोर्ट्स के अनुसार देश में अगले पांच सालों में कैंसर के मामलों की संख्या 12% तक बढ़ जाएगी और साल 2025 तक यहां कैंसर मरीजों की अनुमानित संख्या 2022 के करीब 14 लाख से बढ़कर 15.69 लाख के पार निकल जाएगी। कैंसर की इस भयावह स्थिति से MP भी अछूता नहीं है....जो कि कैंसर पेशेंट्स के मामले में देश में सातवें नंबर पर आता है। कैंसर के इतने डरावने आंकड़ों के बीच राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था के हाल ये हैं कि कई मामलों में मरीज इलाज तक नहीं करा पाते है। कही टेक्निशियन्स नहीं हैं तो कहीं मरीज़ो को अस्पताल में एडमिशन ही नहीं मिलता। सबसे बड़ी बात ये कि कैंसर के 80% मरीज़ों को ट्रीटमेंट के दौरान रेडिओथेरेपी की जरुरत पड़ती है...पर राज्य के सरकारी अस्पतालों में आज भी रेडिओथेरेपी करने के लिए लगने वाली लीनियर एक्सेलरेटर मशीन के ही लाले पड़े हुए हैं। और सरकारी नुमाइंदे हैं कि जो हमेशा पिछले पांच सालों से लीनियर एक्सेलरेटर के न पूरे होने वाले वादे ही करते जा रहे हैं...क्योंकि मशीनें लाने का  मामला सिस्टम की कागजी कार्यवाही में ही उलझ कर रह गया है। क्या है पूरी खबर....जानने के लिए पढ़िए भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर के सरकारी कैंसर अस्पतालों के हाल दिखाती ये स्पेशल रिपोर्ट...





केस स्टडी, भोपाल: इलाज के लिए भटकते माँ-बेटे





55 साल की कमला बाई कुशवाहा थर्ड स्टेज सर्विक्स कैंसर की मरीज हैं। उनके बेटे प्रेम सिंह अपनी बूढ़ी माँ को लेकर उनके इलाज़ के लिए करीब हफ्ते भर से भोपाल के जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पताल से हमीदिया के कमला नेहरू कैंसर अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं....पर कोई उनकी फ़रियाद सुनने वाला नहीं है। कमला नेहरू कैंसर अस्पताल (हमीदिया) के डॉक्टर्स उन्हें एक डिपार्टमेंट से दूसरे डिपार्टमेंट घुमा रहें है। दोनों माँ और बेटे कैंसर के इलाज़ की आस में रोज हमीदिया के कमला नेहरू अस्पताल में डिपार्टमेंट से डिपार्टमेंट भटकते हैं। प्रेम सिंह बताते हैं कि न उनके पास अब पैसे बचे हैं और न ही इस ठण्ड में यहाँ पर रुकने का कोई इंतजाम है। इसलिए रोज ही बीना से भोपाल अपडाउन करते हैं।





द सूत्र ने जब प्रेम सिंह से पूछा कि जवाहर और कमला नेहरू कैंसर अस्पताल के अधिकारी का क्या जवाब होता हैं? तो उन्होंने बताया कि जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पताल के डॉक्टरों ने तो एक बार उनकी माँ का कैंसर ट्रीटमेंट करने के बाद साफ़ बोल दिया कि आयुष्मान योजना के तहत उनको जवाहर अस्पताल में एक बार ही ट्रीटमेंट मिल सकता हैं। और आगे के ट्रीटमेंट के लिए उन्हें हमीदिया के कमला नेहरू कैंसर अस्पताल रेफेर कर दिया गया। पर यहाँ तो उनको एडमिट ही नहीं किया जा रहा...जांच, दवाई और रेडियोथेरेपी तो बहुत दूर की बात हैं।





मरीजों के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना भरा ये रवैया सिर्फ हमीदिया के कमला नेहरू कैंसर अस्पताल प्रबंधन तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि राज्य के ज्यादातर सरकारी कैंसर अस्पतालों में कैंसर के इलाज की सुविधाओं और उसमें उपयोग होने वाली मशीनों जैसे रेडिओथेरेपी में काम आने वाली मशीनों (लीनियर एक्सेलरेटर) की भी कमी हैं और जो हैं (कोबाल्ट मशीन) वो भी बंद ही पड़ी हुई हैं।





ये सब तब हैं, जब मध्य प्रदेश में कैंसर से पीड़ित मरीजों की संख्या में और इस बीमारी से होने वाली मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।  कैंसर पेशेंट्स के मामले में MP देश में सातवें नंबर पर आता है। और लोकसभा में एक सवाल के जवाब में पेश किए गए आंकड़े तो ये बताते हैं कि साल 2018 से 2020 तक तीन सालों में प्रदेश में कैंसर के करीब 2 लाख 27 हजार 776 मरीज मिले, इनमें से 55 फीसदी यानी 1 लाख 25 हजार 640 कैंसर के मरीजों की मौत हो गई। यानी  हर महीने औसतन 3490 कैंसर मरीजों की मौत हो रही है। साल 2022 में इस बीमारी से मरने वालों की अनुमानित संख्या 45 हजार से अधिक हो गई है। तो वहीं पीड़ित मरीजों की संख्या 81901 तक पहुंच चुकी है।





राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री से प्राप्त ये अनुमानित आंकड़े.....





कैंसर के मरीज और उससे होने वाली मौतें







  • वर्ष 2018----73957----40798



  • वर्ष 2019----75911----41876


  • वर्ष 2020----77888----42966


  • वर्ष 2021----79871----44056


  • वर्ष 2022----81901----45176






  • यहीं नहीं, महिलाओं में कैंसर के मामलों में भी मप्र देश में सातवें पायदान पर है....





    MP में महिलाओं में कैंसर की स्थिति: वर्ष- ब्रैस्ट कैंसर- गर्भाश्य कैंसर - कुल मामले







    • 2019----11198------3934--------38695



  • 2020----11501--------4042-------39717


  • 2021----11814-------4151--------40766






  • सीएम की बातों और राज्य के हालातों में फर्क: लीनियर एक्सेलरेटर लगाने का मामला सालभर से चिकित्सा शिक्षा विभाग की टेंडर प्रक्रिया में उलझा





    अब ऐसा नहीं हैं कि सरकार राज्य में बढ़ते कैंसर की मामलों के बारे में कुछ जानती न हो। तभी तो जिन कैंसर के मरीजों का इलाज कोबाल्ट मशीन की पुरानी टेक्नीक से होता आया हैं। उनको कम कीमत पर और बेहतर इलाज मुहैया करने के इरादे से। अगस्त-2018 में शिवराज सरकार राज्य के मेडिकल कॉलेजों से संबंद्ध अस्पतालों में लीनियर एक्सीलेटर मशीन लगाने का प्रस्ताव लाई। कुल 9 लीनियर एक्सीलेटर में से 5 पीपीपी मोड से और चार अन्य राज्य सरकार द्वारा स्थापित करने का प्रस्ताव था। साढ़े तीन साल बाद ये प्रस्ताव कैबिनेट पहुँचा और 4 जनवरी, 2022 में कैबिनेट ने भोपाल, रीवा और इंदौर में पीपीपी मोड में लीनियर एक्सीलेटर लगाने का ये प्रस्ताव पास किया। अब जैसे-तैसे पांच सालों का लंबा वक़्त लगाकर कैबिनेट ने प्रस्ताव पास तो कर दिया....पर अब लीनियर एक्सेलरेटर लगाने का ये मामला पिछले सालभर से चिकित्सा शिक्षा विभाग की टेंडर प्रक्रिया में ही उलझा हुआ है। ऐसा भी नहीं हैं कि लीनियर एक्सेलरेटर के लिए फंड्स न मिल पाया हो। भारत सरकार ने पैसा स्वीकृत कर राज्य सरकार के खजाने में भेज भी दिया हैं.... बावजूद इसके साल भर से भी ज्यादा बीत जाने के बाद भी मशीन की खरीद ही नहीं की जा सकी हैं। कारण पॉलिटिशियन्स और चिकित्सा शिक्षा विभाग का लापरवाह और ढुलमुल रवैया।





    हम आपको भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर के अस्पतालों का पूरा किस्सा बताएं...उसके पहले जान लीजिये कि रेडिओथेरेपी कैंसर के इलाज के लिए क्यों जरुरी हैं और लीनियर एक्सीलरेटर से कैसे इलाज होता है.....





    लीनियर एक्सीलेटर रेडिओथेरेपी की कोबाल्ट मशीन से बेहतर और आधुनिक टेक्नीक





    दरअसल, कैंसर के 80 फीसदी मरीजों को इलाज के दौरान रेडिएशन थैरेपी या रेडियोथेरेपी की जरूरत पड़ती है। रेडिएशन थेरेपी या रेडियोथेरेपी को आम बोलचाल की भाषा में सिकाई कहा जाता है। इस थेरेपी में पेशेंट्स की बीमारी के सीवियरनेस/स्टेज के अनुसार रेडिएशन के जरिए कैंसर कोशिकाओं का इलाज करते हैं। वर्तमान में मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में कैंसर के मरीजों का इलाज कोबाल्ट मशीन से किया जाता है। जो कि इलाज की पुरानी टेक्नीक है। इससे मरीजों को रेडिएशन के ज्यादा साइड-इफेक्ट झेलने पड़ते हैं क्योंकि इसमें कैंसर ट्यूमर के क्षेत्र से एक-दो सेंटीमीटर अधिक क्षेत्र में रेडिएशन दिया जाता है, जिसके कारण स्वस्थ कोशिकाएं भी प्रभावित होती हैं। पर लीनियर एक्सीलेटर कैंसरग्रस्त सेल्स को ही टारगेट करेगी। इससे सामान्य सेल पर रेडिएशन का बुरा असर नहीं पड़ेगा। पर इसमें दूसरी मशीनों के मुकाबले ज्यादा रेडिएशन निकलता है। इसी कारण इसे चलाने के दौरान रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट का होना जरूरी है।





    कहीं मशीने ही नहीं तो कहीं बंद पड़ी, प्राइवेट अस्पतालों में रेडियोथेरेपी का खर्च 2 लाख रुपए तक





    अब, फ़िलहाल भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध हमीदिया अस्पताल में और जबलपुर में जो कोबाल्ट मशीनें हैं वो भी बंद पड़ी है। और भोपाल-एम्स को छोड़ दिया जाए तो मध्यप्रदेश के किसी भी सरकारी अस्पताल में रेडियोथैरेपी की एडवांस तकनीक यानी लीनियर एक्सीलेटर से इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। इन्हीं सब वजहों से मरीजों को इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल या राज्य के बाहर जाना पड़ता है, जिससे उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है....और ज्यादा पैसे देने पड़ते है। । प्राइवेट अस्पतालों में रेडियोथेरेपी का खर्च 1.5 से लेकर 2 लाख रुपए तक आता है। अगर सरकारी अस्पतालों में लीनियर एक्सेलरेटर मशीन आ जाती हैं तो कैंसर मरीजों की सिकाई बाजार दर से करीब 70 प्रतिशत कम शुल्क पर हो पाएगी।





    अब आइये सबसे पहले बात करते हैं राजधानी भोपाल के हमीदिया अस्पताल के कमला नेहरू हॉस्पिटल में अव्यवस्थाओं का....





    कमला नेहरू हॉस्पिटल, भोपाल: कोबाल्ट मशीन बंद, लीनियर एक्सेलरेटर  उपलब्ध नहीं, हर दिन 35 मरीज इलाज के लिए परेशान होते हैं  







    • दरससल, हमीदिया के कमला नेहरू कैंसर अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ़ रेडियोथेरेपी के हेड और प्रोफेसर एच यू घोरी से जब द सूत्र ने बात की तो उन्होंने अस्पताल में लीनियर एक्सीलेटर की कमी साफ़ स्वीकारी। उन्होंने बताया कि कमला नेहरू कैंसर अस्पताल में फिलहाल कैंसर का इलाज कीमोथेरेपी यानी दवाइयों की मदद से होता हैं। जब द सूत्र ने उनसे कैंसर मरीजों की रेडिओथेरेपी में उपयोग होने वाली मशीन के बारेमें पुछा तो उन्होंने बताया कि फिलहाल ब्रेकीथेरेपी की मदद से रेडियोथेरेपी करते हैं....क्योंकि कोबाल्ट-60 मशीन बंद पड़ी हुई है। और लीनियर एक्सेलरेटर की उपलब्धता के बारे में सवाल किया, तो उन्होंने साफ़ कहा कि अस्पताल में  लीनियर एक्सेलरेटर से रेडिओथेरपी की सुविधा नहीं हैं। जब ये पूछा गया कि कैबिनेट से एक साल पहले लीनियर एक्सेलरेटर का प्रस्ताव पास होने बावजूद मशीन अभी तक क्यों नहीं लगी...तो उन्होंने कोई जवाब देने से मन कर दिया और कहा कि ये शासन स्तर का मामला हैं, वहीँ से पता करिये।



  • आपको बता दें, ब्रेकीथेरेपी जैसी रेडियोथेरेपी तकनीक अल्पकालिक इलाज देती है और आमतौर पर बहुत कम सफल होता है। और कमला नेहरू कैंसर अस्पताल में औसतन 4-5 नए मरीज़ डेली और 30 पुराने मरीज़ आते हैं। यानी हर महीने के 1000 मरीज और सालाना 12,775 मरीज कमला नेहरू कैंसर अस्पताल से सहीं इलाज के अभाव में भटकते रह जाते हैं।


  • जब उनसे  ये सवाल किया गया कि फिर जो MD स्टूडेंट्स अस्पताल में पढ़ कर रहें हैं। वो बिना रेडिओथेरेपी की मशीनों के प्रैक्टिस  कैसे कर रहें हैं। तो उनका कहना था कि मेडिकल स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग के लिए अभी जवाहर लाल नेहरू कैंसर हॉस्पिटल जैसे प्राइवेट हॉस्पिटल में भेजा जाता है






  • ग्वालियर मेडिकल कॉलेज: दो साल बाद भी इंस्टॉल नही हुई लीनियर एक्सलेटर मशीन, सिंकाई के लिए निजी संस्थानों में जाने को मजबूर कैंसर पेशेंट







    • कैंसर के मामले में ग्वालियर अंचल और बुंदेलखंड बहुत ही संवेदनशील माना जाता है क्योंकि यहां गुटका का प्रचलन बहुत है और इसके चलते इस क्षेत्र में मुख कैंसर की संभावनाएं अधिक होती है। लेकिन ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज में मरीजों के लिए रेडिएशन थेरेपी की व्यवस्था नही है। सरकार द्वारा लीनियर एक्सलेटर मशीन लगाने की घोषणा के दो वर्ष का समय बीतने के बावजूद ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज में यह मशीन इंस्टॉल नहीं हो सकी है। और फिलहाल इसकी सम्भावनाएँ भी नजर नहीं आ रहीं है। भारत सरकार द्वारा मशीन के लिए पैसा स्वीकृत कर राज्य सरकार के खजाने में भेजने के दो साल बीत जाने के बावजूद भी मशीन की खरीद ही नहीं की जा सकी हैं।



  • इंफ्रा तैयार बस मशीन का इंतजार: गजराराजा मेडिकल कॉलेज के डीन जो कि खुद एक कैंसर विशेषज्ञ है , डॉ अक्षय निगम ने 'द सूत्र' को बताया कि कैंसर यूनिट के मामले में ग्वालियर मेडिकल कॉलेज अग्रणी रहा है । इस योजना के तहत हमे 45 करोड़ रुपये मिले थे। इनमे से 7 करोड़ की हमारीं बिल्डिंग लगभग बनकर तैयार है। लेकिन लीनियर एक्सेलेटर मशीन का पैसा आ गया है और राज्य सरकार के पास पड़ा है । डॉ निगम का कहना है कि जैसे ही यह पैसा राज्य सरकार हमको दे देगी हम मशीन को खरीदकर इंस्टॉल कर देंगे। जब उनसे पूछा कि आखिरकार कितना समय इसमे अभी और लगेगा ? तो उन्होंने कहा कम से कम छह माह का समय तो लग ही जायेगा।


  • निजी हॉस्पीटल में भीड़ इतनी कि चौबीसों घण्टे काम कर रहीं है मशीन: ग्वालियर में सरकारी स्तर पर भले ही सिंकाई नही हो पा रही हो लेकिन जिन निजी स्वास्थ्य संस्थानों में लीनियर एक्सेलेटर मशीन लगी हैं वहां मरीजों की भीड़ इतनी ज्यादा है कि उन्हें चौबीसों घण्टे सेवाएं देनी पड़ रही है। यहां सबसे पहले सिंकाई की व्यवस्था बीआईएमआर ( बिरला इंस्टीट्यू एंड मेडिकल रिसर्च) में 2017 में लगी । यहां पदस्थ कैंसर विशेषज्ञ डॉ गौरव अग्रवाल ने बताया कि हमारे यहां हर माह 1800 से 2400 नए केस सिकाई के लिए पहुंचते हैं। 108 टेबल पर दिन रात सिकाई की जाती है ताकि सबका शेड्यूल पूरा हो जाये। उनका कहना है कि लोग पहले इसके लिए मेट्रो में जाने को मजबूर थे । वहां इस पर डेढ़ से ढाई लाख रुपये प्रति मोड खर्च होता है जबकि हमारे यहां सिर्फ 50 हजार से 1 लाख का खर्च आता है। दूसरी लीनियर एक्सेलेटर मशीन कैंसर हॉस्पीटल में लगी है और वहां भी लगभग इतने ही मरीज रोज रेडियोथेरेपी कराने पहुंचते है । हालांकि आंकड़े बताते है कि इनमे से ज्यादातर पेशेंट का इलाज आयुष्मान कार्ड के जरिये होता है इसलिए परिजनों को ज्यादा आर्थिक भार नही पड़ता लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि गजराराजा मेडिकल कॉलेज में मशीन इंस्टॉल हो जाने के बाद प्रतियोगिता बढ़ेगी और सिंकाई की दरें काफी कम हो जाएंगी जिसका फायदा मरीजों को मिलेगा। लेकिन सरकार इनमें कोई रुचि नही ले रही नतीजतन पैसा होने के बाद मशीन खरीदी नही जा रही।






  • शासकीय कैंसर चिकित्सालय, इंदौर में भी नहीं हैं लीनियर एक्सेलरेटर मशीन, कोबाल्ट मशीन से चल रहा काम





    तीन हजार केस इंदौर कैंसर अस्पताल में हर साल औसतन आते हैं। आधुनिक मशीन लीनियर एक्सेलरेटर की कमी है, शासन को लिखा गया है। पीपीपी मोड में भी इस मशीन का प्रस्ताव चल रहा है, इसकी भी कोशिश हो रही है। अभी केवल कोबाल्ट मशीन है, कीमोथैरेपी भी उपलब्ध है, जो निशुल्क हो रहा है। लीनियर मशीन नहीं होने के कारण आर्थिक बोझ आ रहा है, आयुष्मान कार्ड है तो बाहर निशुल्क हो जाता है लेकिन जिनके पास नहीं है उन्हें अपनी जेब से ही एक से डेढ़ लाख का खर्चा आता है।





    जबलपुर: सरकारी अस्पताल में लीनियर एक्सरेलेटर मशीन नहीं, मरीजों को रेफर किया जाता है हायर सेंटर





    कैंसर रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ श्यामजी रावत का कहना है कि मध्य प्रदेश के किसी सरकारी मेडिकल अस्पताल में लीनियर एक्सरेलेटर मशीन नहीं है। कोबाल्ट मशीन से रेडियेशन दिया जा रहा है। यदि किसी मरीज को ब्रेन ट्यूमर, अरोटा का कैंसर, क्रिटिकल कैंसर या दोबारा कैंसर हुआ हो तो उसे कोबाल्ट की जगह लीनियर एक्सरेलेटर मशीन से रेडियेशन देने की जरूरत होती है। इस स्थिति में मरीजों को हायर सेंटर रेफर किया जाता है। प्राइवेट अस्पताल में लीनियर एक्सरेलेटर मशीन से रेडियेशन देने का खर्च करीब 1लाख से शुरू होता है।





    अब सवाल ये उठता हैं कि शिवराज सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने के कगार पर हैं...और कुछ ही महीनों में चुनाव हैं....अब जो जरुरी स्वास्थ्य सुविधा देने का वादा वो 5 सालों में नहीं पूरा कर पाए तो क्या वो उसे कुछ महीनों में पूरा कर पाएंगे?





    MP में सिर्फ 10% आबादी की कैंसर मॉनिटरिंग और रिकार्ड, 90 फीसदी आबादी भगवान भरोसे





    कैंसर से जुड़ी मध्य प्रदेश में एक और बेहद महत्वपूर्ण खबर ये हैं कि राज्य की एकमात्र जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री-भोपाल और अलग-अलग शहरों में मौजूद 7 अस्पताल आधारित कैंसर रजिस्ट्री के माध्यम से राज्य की कुल आबादी की सिर्फ 10% जनसँख्या की ही कैंसर मॉनिटरिंग और रिकॉर्ड दर्ज हो पा रहा है, जबकि 90 फीसदी आबादी और क्षेत्रों में मौजूद कैंसर मरीजों की न तो कोई मॉनिटरिंग हो पा रही हैं और न ही रिकॉर्ड दर्ज हो रहा है......और शायद ये भी एक कारण हैं कि मध्य प्रदेश में कैंसर मरीजों और उससे होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा हैं। अब राज्य में सिर्फ एक जनसँख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री होने के कारण प्रदेश में कैंसर मरीजों और इस बीमारी से होने वाली मौतों की अनुमानित संख्या ही सामने आ पा रही है। सही संख्या न होने से सही इलाज़ उपलब्ध करवा पाना अँधेरे में तीर छोड़ने जैसा ही हैं, यानी मुमकिन नहीं हैं। क्योंकि, मरीजों की संपूर्ण जानकारी सरकारी और निजी अस्पतालों के अलावा जांच केंद्रों से इक्कट्ठा की जाती है। यहां से मिले आंकड़ों को नेशनल कैंसर रजिस्ट्री में साझा किया जाता है। और इसके आधार पर ही कैंसर की रोकथाम के लिए आगामी योजनाओं का निर्धारण होता है।





    दरअसल, राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री पूरे देशभर के कैंसर मरीजों और उससे होने वाली मौतों के  आंकड़े और कैंसर के मरीजों को दिए जा रहे उपचार की मॉनीटरिंग और डाटा इकठ्ठा करने का काम करती हैं। ऐसा वो जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री और अस्पताल आधारित कैंसर रजिस्ट्री कि मदद से करती हैं। देशभर में 39 जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री काम कर रही हैं और 25 हॉस्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री हैं। मध्य प्रदेश में सिर्फ 1 जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री कार्यरत हैं, जो भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में हैं। ये भोपाल नगर निगम सीमा के अंतर्गत आने वाले कैंसर मरीजों का ट्रैक रिकॉर्ड रखती हैं। तो वहीँ राज्य में हॉस्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री भी कार्यरत हैं - 2 भोपाल में , 2 ग्वालियर में, 1 जबलपुर में और 2 इंदौर में। 





    (इनपुट्स: देव श्रीमाली,ग्वालियर/ योगेश राठौर, इंदौर/ ओ पी नेमा, जबलपुर )



    SHIVRAJ SINGH CHOUHAN who Cm Madhyapradesh Office of Shivraj Jansampark Madhyapradesh TheSootr CANCER IN MP Vishvas Kailash Sarang WorldCancerDay Directorate of Health Services Madhya Pradesh