मैं मध्य प्रदेश हूं....मैं देश का दिल हूं...मगर मेरा दिल है ये जंगल....। मेरी नसों में बहता है नर्मदा, केन, बेतवा, कालीसिंध, चंबल, ताप्ती, तवा, क्षिप्रा, सोन जैसी 14 नदियों का जल। मेरा मस्तक है विंध्य की पर्वत श्रृंखला, मेरे पैर है सतपुड़ा की वादियां। मेरी सात भुजाएं हैं- ग्वालियर-चंबल, विंध्य, महाकौशल, मालवा-निमाड़, बुंदेलखंड और मध्य। इन भुजाओं में हैं मेरा करीब आठ करोड़ सदस्यों का भरा-पूरा परिवार। मैं मध्य प्रदेश आज (1 नवंबर को) अपना 66वां जन्मदिन मना रहा हूं।
मेरे आकार के बारे में क्या था नेहरू का सवाल?
सयाना हो चुका हूं, लेकिन जैसा मेरा इस समय आकार है, वैसा मैं 21 साल पहले नहीं था। मैं भारत का सबसे बड़ा राज्य था। 1956 में जब देश के कई सारे हिस्सों को जोड़कर मेरा गठन हुआ, तब जवाहर लाल नेहरू ने सवाल पूछा था कि ये क्या ऊंट जैसे प्रदेश बना दिया? लेकिन तब से लेकर अब तक काफी चीजें बदल गई हैं। हालांकि, मैं अब देश का दूसरा बड़ा राज्य हूं। 66 बरस की उम्र मनुष्य के लिए रिटायरमेंट का समय होता है, लेकिन मेरे लिए ये आत्मनिर्भर होने और अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने और नाकामियों से सबक लेते हुए आत्मावलोकन का समय है। इस पूरे सफर में मैंने बहुत कुछ सीखा, भोगा और समझा भी...।
गठन दिलचस्प भी, खींचतान भी..!
मैं मध्यप्रदेश आज आपको अपने गठन की कहानी बताता हूं... बड़ी दिलचस्प है। मेरे गठन को लेकर राजनीतिक तौर पर बेहद खींचतान हुई। मेरी राजधानी कौन सी होगी, इसे लेकर भी बेहद खींचतान थी। 1 नवंबर 1956 से पहले मैं मध्यभारत, भोपाल, सेंट्रल प्रॉविंस एंड बरार (CP and Brar) और विंध्यप्रदेश के रूप में बंटा था। मध्यभारत राज्य दो मुख्य रियासतों ग्वालियर, इंदौर और 25 छोटी रियासतों को मिलकर बना था। 43 जिले थे। मध्यभारत की दो राजधानियां थीं। गर्मियों में इंदौर और सर्दियों में ग्वालियर। दूसरी तरफ, सीपी बरार की राजधानी नागपुर थी। और एक प्रमुख शहर था जबलपुर, आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र। छत्तीसगढ़ भी इसमें शामिल था। तीसरा स्टेट विंध्य प्रदेश था, जिसका हिस्सा थी भोपाल रियासत, जिसने आजादी के बाद पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया था।
ऐसे हुआ मेरा गठन
1953 में जब मेरे गठन की शुरूआत हुई तो तीनों स्टेट्स को मिलाकर मध्य प्रदेश के गठन का फैसला हुआ। CP and Brar का कुछ हिस्सा हटाया गया, जिसमें मुख्य रूप से नागपुर और उसके आसपास के क्षेत्र थे, जिन्हें मुंबई राज्य में शामिल किया गया। CP and Brar का बाकी हिस्सा मेंरे हिस्से में आया। पश्चिम में मंदसौर जिले की भानपुर तहसील के सुनेल टप्पा को छोड़कर बाकी हिस्सा शामिल किया गया। राजस्थान के कोटा जिले की सिरोंज तहसील को विदिशा में मिलाया गया। मध्यभारत और विंध्य प्रदेश का पूरा हिस्सा मुझमें शामिल किया गया और इस तरह से 1956 में मेरा ये स्वरूप उभर कर सामने आया।
राजधानी किसे बनाया जाए इसे लेकर सहमति नहीं थी। तीनों स्टेट अपने अपने तरीके से तवज्जो चाहते थे। हर कोई चाहता था कि राजधानी उसके हिस्से में आए। CP and Brar के नेता जबलपुर को राजधानी बनाना चाहते थे। छत्तीसगढ़ के नेता रायपुर को तो मध्यभारत के नेता ग्वालियर और इंदौर को। भोपाल ने तो पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया था, इसलिए तब तक भोपाल का जिक्र नहीं था। इस आपसी खींचतान को सुलझाने का जिम्मा नेहरू को सौंपा गया, जिन्होंने मुस्लिम रियासत भोपाल को राजधानी बनाने का फैसला किया।
और भोपाल राजधानी बन गया..!
भोपाल मध्य प्रदेश के सेंटर में था। भारत में शामिल होने के एवज में भोपाल के नवाब सम्मानजनक मुआवजा चाहते थे। उधर, केंद्र सरकार नहीं चाहती थी कि देश के दिल में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां पनपें। जबलपुर का दावा इसलिए खारिज हुआ, क्योंकि तर्क दिया गया कि यहां से इतना राजस्व नहीं मिलेगा। ग्वालियर का दावा इसलिए खारिज हुआ, क्योंकि महात्मा गांधी की हत्या की साजिश यहीं रची गई थी और इंदौर का दावा इसलिए खारिज हुआ, क्योंकि वो भोपाल से नजदीक था। खैर 1956 में जब मैं अस्तित्व में आया तो भोपाल मेरी राजधानी बना। ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर का दावा खारिज होने के एवज में उन्हें महत्वपूर्ण विभाग और मुख्यालय सौंपे गए। विंध्य प्रदेश मुझमें शामिल नहीं होना चाहता था, लेकिन ये आर्थिक रूप से सक्षम नहीं था, इसलिए इसे मुझमें शामिल किया गया, लेकिन विंध्य के लोगों ने इसे मन से स्वीकार नहीं किया था।
जब एक भुजा काट दी
1956 से 2000 तक मेरे विकास का सफर जारी रहा, लेकिन 2000 में मेरा स्वरूप एकबार फिर बदल गया। 21वीं सदी के पहले साल में ही छत्तीसगढ़ के रूप में एक बड़ी भुजा मुझसे अलग हो गई, जिसका आज भी मुझे अफसोस होता है। धान का कटोरा मुझसे अलग हो गया। अब मुझे फिर नई यात्रा शुरू करना थी। जो मैंने शुरू की और लगातार जारी है।
सांदीपनी से आईआईटी-आईआईएम तक
65 साल पहले शुरू हुआ मेरा ये सफर बेहद चुनौतीपूर्ण और बहुआयामी रहा है, लेकिन मेरी सांस्कृतिक, धार्मिक विरासत का इतिहास काफी बड़ा है। मेरे परिवार के जो सदस्य हैं वो अलग अलग भाषा, रीति रिवाज और परंपराएं निभाते हैं। आज भी आदिवासी समुदाय मेरे परिवार का एक बहुत बड़ा हिस्सा जो मेरे परिवार के सबसे पुराने सदस्य यानी मूल निवासी हैं। मैं प्राचीन काल से ही शिक्षा का केंद्र रहा हूं। तीर्थ नगरी उज्जैन में लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने ऋषि सांदीपनी के आश्रम में बचपन में शिक्षा हासिल की थी। आज के इस दौर में इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर उच्च शिक्षा के बड़े केन्द्र हैं। इनमें इंदौर सबसे अव्वल है, जहां आईआईटी और आईआईएम दोनों संस्थान है।
भोपाल में एम्स, आईआईएफएम और नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट जैसी शैक्षणिक संस्थाएं हैं। ग्वालियर में मानसिंह तोमर संगीत विवि, विजयाराजे सिंधिया कृषि विवि और जबलपुर में मेडिकल यूनिवर्सिटी, जवाहरलाल नेहरू कृषि विवि है। अफसोस इसबात का है कि सांदीपनी आश्रम से आईआईएम का सफर तो मैंने तय किया है, लेकिन इन शैक्षणिक संस्थानों से पढ़कर निकलने वाले युवाओं को रोजगार के मौके नहीं है। वो दूसरे राज्यों में मौके तलाशते हैं।
दो ज्योतिर्लिंग
मेरे प्राचीन शहरों में उज्जयिनी का प्रमुख स्थान है। ये महाकाल की नगरी है, देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक। उज्जैन राजा विक्रमादित्य की नगरी है। राजा विक्रमादित्य, जिनकी सिंहासन बत्तीसी की कथा आज भी जनमानस में प्रचलित है। उज्जैन काल गणना के लिए दुर्लभ स्थान माना जाता है। इसका कारण है- उज्जैन से गुजरने वाली विषुवत रेखा का सूर्य से एक विशेष कोण पर संपर्क। महाकाल की नगरी में हर 12 वें साल सिंहस्थ का धार्मिक मेला भी लगता है। महाकाल के साथ ओंकारेश्वर भी है। पुराणों के अनुसार, जहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। इसलिए 12 ज्योर्तिलिंगों में ओंकारेश्वर का भी महत्व है। 2 ज्योर्तिलिंगों के साथ तीन शक्तिपीठ भी मुझमें समाए हुए हैं- आगर मालवा के नलखेड़ा में बगुलामुखी माता का मंदिर, दतिया का पीतांबरा पीठ और मैहर का शारदा माता मंदिर। सांची, खजुराहो और भीमबैठका ये मेरी विश्व धरोहरें हैं। सांची के बौद्ध स्तूप शांति का संदेश देते है। खजुराहो के मंदिर सनातन धर्म की समृद्ध और उदार संस्कृति का परिचायक हैं तो भीमबैठका आदिमानव की कला का अद्भुत नमूना।
प्रेम से आहत थीं, पर किया मप्र का उद्धार
नर्मदा मेरी जीवन रेखा है। नर्मदा अमरकंटक से निकलती है और 1312 किमी की दूरी तय कर गुजरात के अरब सागर में जाकर मिलती है। पुराणों में इसे रेवा नदी कहा गया है। ये देश की एकमात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। ये यात्रा रहस्य, रोमांच और जोखिम से भरी है। नर्मदा को चिरकुंवारी और वैराग्य की अधिष्ठात्री देवी का मूर्तिमान रूप माना गया है। इसकी परिक्रमा से पुण्य लाभ है। नर्मदा के तट पर ओंकारेश्वर समेत अनेक तीर्थ और ऐतिहासिक स्थल हैं। ये एकमात्र नदी है, जो पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की तरफ बहती है। पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि मैकल पर्वत की पुत्री नर्मदा को अपने बालसखा शोणभद्र (सोनभद्र) से प्रेम था, लेकिन सोनभद्र और रेवा के बीच जुहिला आ गई। इससे आहत नर्मदा ने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण किया और उल्टी दिशा में अरब सागर की तरफ चल पड़ी।
जिनकी दहाड़ की मेरी पहचान है
नर्मदा के साथ बाघ भी मेरी पहचान है... इनकी दहाड़ रोमांच पैदा करती है.. मुझे टाइगर स्टेट का तमगा हासिल है...। आठ करोड़ लोगों के परिवार के सदस्यों के साथ 520 टाइगर्स भी मेरे अपने है। कान्हा, पेंच, पन्ना, बांधवगढ़, सतपुड़ा, संजय और रातापानी, ये सात नेशनल पार्क मेरे मुकुटमणि हैं। मेरी ही धरती पर सफेद बाघ की खोज हुई थी। घने जंगलों के बीच रहने वाला ये शिकारी मेरे आर्थिक विकास में एक बड़ा योगदान देता है। देशभर से लोग इन्हें देखने आते है और रोमांचित होते हैं।
कर्क के साए में 14 जिले
मेरे 14 जिले ऐसे हैं, जहां सर्दी और गर्मी दोनों समान रूप से पड़ती है, क्योंकि कर्क रेखा इन 14 जिलों से होकर गुजरती है। पातालकोट के तो क्या कहने। इसे पाताल लोक का द्वार कहा जाता है। छिंदवाड़ा जिले में पातालकोट एक घाटी का नाम है, जो सामान्य सतह से 3 हजार फीट नीचे है। इस घाटी में आदिवासी समुदाय रहता है। बरसों तक इस क्षेत्र का संपर्क बाहरी दुनिया से नहीं था। किंवदंती ये है कि सीता माता यही धरती में समा गई थीं।
कई जातियां, बोलियां, रिवाज
प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ एक मैं कई परंपराओं का निर्वाह भी करता हूं, खासतौर पर आदिवासी परंपराओं का। देश में सबसे ज्यादा आदिवासी समुदाय की आबादी मप्र में है। यहां 46 जनजातियां रहती है, जिनकी अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक परंपराएं है। अपनी भाषा, त्योहार, रीति रिवाज और धार्मिक आस्थाएं हैं।
समय के साथ साथ मैं दौड़ रहा हूं। परंपराओं के साथ आधुनिकता भी अब मुझमें नजर आती है। इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर ये चार बड़े महानगर आधुनिकता की दौड़ में आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं। आज भी मुझे नजदीक से देखना है तो ग्रामीण इलाकों में ही देखा जा सकता है। आज जब मैं 66वां जन्मदिन मना रहा हूं तो एक बात गर्व से कह सकता हूं कि अब मेरे परिवार के सदस्यों में मध्यप्रदेशी होने का भाव आने लगा है। इसलिए मैं कहता हूं कि मैं मध्य प्रदेश हूं।
(लेखक: अजय बोकिल। आप मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं)