Jabalpur. भीषण गर्मी के दौरान जंगल छोड़कर इंसानी बस्तियों का रुख करने वाले वन्यप्राणियों पर खतरा और बढ़ जाता है। ऐसे में जंगल से भटककर आए या घायल हुए वन्यप्राणियों के रेस्क्यू का जिम्मा वन विभाग का है। विभाग ने ऐसे वन्यप्राणियों को बचाने जतन भी किए लेकिन संसाधनों के अभाव और लेटलतीफी के कारण कई वन्यप्राणी जिंदा नहीं बच पाते। यदि बीते एक माह की बात करें तो भीषण गर्मी के दौरान जिले के वनविभाग ने 25 से 30 वन्यप्राणियों के रेस्क्यू किए। जिनमें 15 चीतल भी शामिल थे जो श्वानों के हमले का शिकार हुए थे। लेकिन रेस्क्यू बाड़ा न होने के चलते 8 चीतलों ने दम तोड़ दिया।
सदमे में भी चली जाती है जान
वन्यप्राणी विशेषज्ञों की मानें तो हिरन और उससे संबंधित वन्यप्राणियों की प्रजातियां बहुत जल्द सदमे में आ जाती हैं। श्वानों के हमले या फिर इंसानों द्वारा काबू में कर लिए जाने पर भी चीतल-हिरन जैसे वन्य प्राणी सदमे में दम तोड़ देते हैं। वहीं जिले के वन विभाग के पास रेस्क्यू बाड़ा नहीं है और तो और रेस्क्यू प्वाइंट तक पहुंचने में भी वन विभाग की टीमें घण्टों की देरी कर देती हैं।
डुमना नेचर पार्क ही सहारा
वनविभाग इस तरह के घायल वन्य प्राणियों को ठीक होने तक डुमना नेचर पार्क में रखता है। लेकिन बावजूद इसके 8 चीतलों की मौत ने रेस्क्यू बाड़े की आवश्यकता पर सोचने के लिए विभाग को मजबूर कर दिया है। लेकिन यह जरूरत कब तक पूरी कर ली जाएगी कहा नहीं जा सकता।