भोपालः टाइगर स्टेट के नाम से मशहूर मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) में टाइगर पर संकट गहराता जा रहा है। यहां पिछले चार साल में अलग-अलग कारणों से 32 शावकों समेत 85 बाघों की मौत हुई है। इसकी जानकारी प्रदेश सरकार में वनमंत्री(forest minister) विजय शाह ने विधानसभी में दी(Vijay Shah in Vidhansabha)
कांग्रेस विधायक ने पूछा था सवाल
कांग्रेस विधायक ने विधानसभा में सवाल किया था कि राज्य में 2018-19 से 2021-22 के बीच चार साल में कितने बाघों की मौत हुई है(how many tigers died in MP) विधायक ने यह भी पूछा था कि अलग-अलग रिजर्व से कितनी बाघ बाहर निकले हैं। इस पर मंत्री विजय शाह ने बताया कि फॉरेस्ट कॉरिडोर(forest corridor) में बाघों का मूवमेंट सामान्य बात है। बाघ खाने, साथी, बेहतर आवास और नए इलाकों की तलाश में अन्य कॉरिडोर में मूवमेंट करते हैं।
बाघों की सुरक्षा पर इतना खर्च
मंत्री ने सदन में यह भी बताया कि राज्य सरकार ने 2018-19 में बाघों के संरक्षण, सुरक्षा और निगरानी के लिए 283 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। साल 2019-20 में 220 करोड़ और 2020-21 और 2021-22 में क्रमशः 264 करोड़ और 128 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
फिर से हासिल किया टाइगर स्टेट का दर्जा
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन ऑथोरिटी (NTCA) की रिपोर्ट बताती है कि 2012 से 2020 के बीच मध्य प्रदेश में 202 बाघों की मौत हुई है। NTCA की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा कहता है कि इस साल जनवरी से दिसंबर तक 38 बाघों की मौत हुई है। 2018 की बाघ गणना में मध्य प्रदेश ने 526 बाघों के साथ टाइगर स्टेट होने का दर्जा हासिल कर लिया है। यहां कर्नाटक(Karnataka) के मुकाबले दो बाघ ज्यादा मिले हैं। इससे पहले पन्ना टाइगर रिजर्व(Panna tiger reserve) में गैरकानूनी शिकार(illegal poaching) के कारण 2010 में मध्य प्रदेश ने टाइगर स्टेट का तमगा कर्नाटक से खो दिया था। उस समय मध्य प्रदेश में 257 टाइगर थे। जबकि कर्नाटक में 300 टाइगर थे।
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