भोपाल (दीपेश कौरव). प्रदेश में निजी संस्थान और उद्योगों में काम करने वाले 10.60 लाख निजी कर्मचारियों को बीमा अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर उनके वेतन से हर महीने करीब 95 करोड़ रुपए काटे जाते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इन अस्पतालों में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं और न ही दवाएं। सीटी स्कैन-एमआरआई तो दूर एक्स-रे और सोनोग्राफी की भी सुविधा नहीं है। इन अस्पतालो में अपेक्षित इलाज न मिलने पर मरीजों को प्राइवेट अस्पताल में रेफर कराने के लिए कई चक्कर काटना पड़ते हैं। व्यवस्था में सुधार के लिए भोपाल के राज्य स्तरीय बीमा अस्पताल को 3 साल पहले श्रम विभाग से लेकर ईएसआईसी (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) को सौंपने का निर्णय लिया गया था लेकिन सरकार की उदासीनता की वजह से अब तक इस पर अमल नहीं हो सका है।
सालाना 509 करोड़ की राशि जमा होने के बाद भी मरीज के लिए भटकने को मजबूर: निजी कंपनियों, फैक्ट्रियों और कारखानों के 21 हजार रूपए से कम सैलरी वाले कर्मचारियों पर इलाज के खर्च का बोझ कम रहे और कोई अनहोनी होने की स्थिति में परिवार को मदद हो सके। इसके लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) के तहत कर्मचारी के वेतन से हर महीने 0.75 प्रतिशत राशि काटता है। इसमें 3.25 प्रतिशत राशि का शेयर वो कंपनी या नियोक्ता संस्थान से लेता है। मध्यप्रदेश में करीब 10 लाख 60 हजार रुपए निजी कर्मचारी इस योजना से जुड़े हुए हैं। ऐसे में प्रति कर्मचारी के औसत 10 हजार रूपए वेतन के हिसाब से 4 प्रतिशत राशि करीब 42 करोड़ रुपए हर महीने और सालाना करीब 504 करोड़ रुपए ESIC के पास पहुंचते हैं। इस राशि के बदले में ESIC और मप्र श्रम विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वह बीमित व्यक्तियों को बेहतर और मुफ्त इलाज मुहैया कराए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। हालात यह है कि इतनी बड़ी राशि लेने के बाद भी कर्मचारियों को बेहतर इलाज तो दूर सामान्य दवाओं और सोनोग्राफी, एक्सरे जैसी सामान्य जांचों के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है। यहां न तो डॉक्टर समय पर पहुंचते हैं और न ही समय पर इलाज मिल रहा है। लेकिन प्रदेश में संचालित सभी बीमा अस्पतालों के हालात ठीक नहीं है। इनके लिए जिम्मेदार श्रम विभाग की भी इसमें कोई खास रूचि नजर नहीं आती है। प्रदेश के बीमा अस्पतालों की स्थिति का अनुमान भोपाल के सोनागिरी स्थित कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल की हालत से समझ जा सकता है। द सूत्र ने निजी कर्मचारियों के पैसों से चलने वाले राज्य बीमा अस्पताल की बदहाली का जायजा लिया तो यहां इलाज के लिए आने वाले मरीजों और उनके परिजनों की परेशानी सामने आई।
ऐसे समझे इलाज के लिए वेतन से कटौती की राशि का गणित: दरअसल, प्रति व्यक्ति औसत 10 हजार रुपए आय के हिसाब से 0.75 प्रतिशत राशि 75 रुपए होती है। इस हिसाब से प्रदेश के 10 लाख 60 हजार कर्मचारियों के वेतन से हर महीने करीब 8 करोड़ रुपए और सालभर में करीब 95 करोड़ रुपए काटे जाते हैं। वहीं, संस्थान की ओर से मिलाए जाने वाले 3.25 प्रतिशत की बात करें तो, प्रति व्यक्ति के हिसाब से यह राशि 325 रुपए होती है। ऐसे में हर महीने संस्थानों की ओर से करीब 35 करोड़ रुपए और सालभर में करीब 415 करोड़ रुपए की राशि ESI में मिलाई जाती है। दोनों कटौती को जोड़कर हर साल करीब 509 करोड़ रुपए ESIC को पहुंचते हैं।
ऐसे होता है बीमा अस्पतालों का संचालन: ईएसआई के तहत बीमित कर्मचारियों के इलाज के लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) और मप्र श्रम विभाग द्वारा अस्पतालों का संचालन किया जाता है। प्रदेश में इंदौर स्थित 1 टीबी अस्पताल मिलाकर 6 ईएसआईएस अस्पताल और 42 डिस्पेंसरी का संचालन श्रम विभाग करता है। यह 6 अस्पताल इंदौर, भोपाल, सागर, देवास, उज्जैन, ग्वालियर और मंदसौर में संचालित हो रहे हैं। वहीं इंदौर स्थित कर्मचारी बीमा अस्पताल, 7 डिस्पेंसी कम ब्रांच आफिस (DCBO) और 21 ब्रांच ऑफिस का संचालन ईएसआईसी करता है। ईएसआईसी द्वारा संचालित संस्थाओं में व्यवस्थाएं बहुत हद तक बेहतर हैं, लेकिन मप्र श्रम विभाग द्वारा संचालित अस्पताल और डिस्पेंसरी में हालात ठीक नहीं है। अस्पताल डॉक्टरों और जरूरी व्यवस्थाओं की कमी से जूझ रहे हैं। 2021-22 में प्रदेश के 43 निजी अस्पतालों से उपचार-जांच की केश रहित सुविधा के लिए अनुबंध किया गया है, लेकिन इसकी लंबी प्रक्रिया में कर्मचारी परेशान होते हैं। अधिकारियों के मुताबिक करीब 220 से 250 करोड़ रुपए की राशि सालाना श्रम विभाग द्वारा संचालित अस्पतालों पर खर्च की जाती है, लेकिन सुधार कहीं नजर नहीं आता है।
बेहतर इलाज तो दूर अन्य सुविधाएं भी नहीं: सोनागिरी बीमा अस्पताल में बेहतर इलाज तो दूर सामान्य इलाज के लिए भी सुविधाएं नहीं हैं। यहां न तो स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और न ही जरूरी संसाधन की सुविधा है। ओपीडी सहित पूरा अस्पताल सहायक डॉक्टरों के भरोसे ही संचालित हो रहा हैं। यहां मौजूद अधिकतर कक्षों में ताला लगा है। अगले हिस्से के कुछ कमरों में अस्पताल के कर्मचारी व डॉक्टर बैठते हैं। सुविधाओं के अभाव में अब इस अस्पताल में मरीज आने से भी कतराते हैं। यदि किसी मरीज को गंभीर स्थिति में भर्ती कराया जाता है, तो दूसरे निजी या सरकारी में रेफर कर दिया जाता है। यहां करीब 4 सालों से सोनोग्राफी मशीन समेत कुछ अन्य मशीने भी बंद हैं। ऐसे में अगर राजधानी के कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल के हालात यह हैं तो प्रदेश में स्थित अन्य बीमा अस्पतालों की स्थिति का आंकलन भी लगाया जा सकता है।
रेफर प्रक्रिया भी आसान नहीं: अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों को इलाज लिए दूसरे अस्पताल में रेफर करने में भी यहां लेटलतीफी होती है। यहां तक कि हार्ट के आपरेशन जैसे गंभीर मामलों में भी यह तय करने में हफ्तेभर लग जाते हैं कि मरीज को रेफर कहां करना है। ऐसे में मरीज कई दिनों तक अस्पताल के चक्कर ही काटते रहते हैं।
गंदगी का अंबार, पीने का पानी तक नहीं: अस्पताल में न तो पीने योग्य साफ पानी की व्यवस्था है और न ही यहां साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है। छत पर रखी पानी की टंकी भी कई सालों से साफ नहीं हुई है। और उसी पानी का उपयोग यहां के मरीज और उनके परिजन करते है। यहां तक कि पैथालॉजी लैब समेत अन्य कमरों में सीलन के बीच मरीजों का इलाज और जांच की जाती है। अस्पताल में सुरक्षा के लिहाज से न तो सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और न ही सिक्योरिटी गार्ड की व्यवस्था है।
एक दवा के लिए दो-तीन बार चक्कर: यहां डॉक्टर ऐसी दंवाऐं भी लिख देते हैं जो अस्पताल के स्टोर में मिलती ही नहीं हैं। ऐसे में या तो मरीज को बाहर से दवा खरीदना पड़ती है या फिर दवा आने तक का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि जब अस्पताल में जो दवाएं नहीं हैं तो डॉक्टर ऐसी दवाएं लिखते ही क्यों हैं।
भोपाल-मंडीदीप के करीब 2 लाख 52 हजार कर्मचारी परेशान: भोपाल-मंडीदीप के करीब 2 लाख 52 हजार कर्मचारियों-श्रमिकों का ESI कटता है। भोपाल-मंडदीप के बीमित 2 लाख 52 हजार व्यक्तियों की 0.75 प्रतिशत राशि के रूप में हर माह करीब 2 करोड़ रुपए की राशि काटी जाती है। साल में यह राशि करीब 22 करोड़ रुपए होती है। वहीं संस्थान के 3.25 प्रतिशत की बात की जाए तो हर माह यह राशि करीब 8 करोड़ रुपए और सालभर में करीब 98 करोड़ रुपए होती है। दोनो ही राशि को मिला दिया जाए तो 4 प्रतिशत के हिसाब से सालभर में 120 करोड़ रूपए ईएसआईसी के पास पहुंचते हैं।
राज्य कर्मचारी बीमा अस्पताल पर एक नजर
- राज्य कर्मचारी बीमा अस्पताल में भोपाल, मंडीदीप समेत आसपास के जिलों के मरीज भी पहुंचते हैं इलाज कराने।
सुविधा तो दूर दवा के लिए भी संघर्ष: अमित कुमार गर्ग ने बताया कि मैं मंडीदीप से यहां आया हूं। इधर डॉक्टर जो दवा लिखते हैं वह एक बार में नहीं मिलती है। दवाई के लिए दो से तीन बार आना पड़ता है। मरीज रवींद्र सिंह ने बताया कि मैं गोविंदपुरा से इलाज कराने के लिए आया था। डॉक्टर पहले मिले थे, अब नहीं हैं। उन्होने दांतों का एक्सरा कराने के लिए कहा था, लेकिन जब एक्सरा कराने गया तो मना कर दिया और कहा कि यहां दांतो का एक्सरा नहीं होता है। अब फिर डॉक्टर से पूछने आया हूं कि कहां एक्सरा होगा। मरीज सत्यम कुशवाहा ने बताया कि मेरी सैलेरी से कई बार राशि कट चुकी है। लेकिन मैं सिर्फ दो बार ही इलाज कराने आया हूं। फिर भी इन्होंने जांच करने से ही मना कर दिया।
एक सप्ताह में सिर्फ कुछ जांचे हो पाई: रेखा यादव ने बताया कि हम करीब एक सप्ताह पहले यहां हार्ट के इलाज के लिए आए थे। इन्होने नोबेल हॉस्पिटल रेफर किया है। अभी एक सप्ताह में सिर्फ कुछ जांचे ही हो पाई हैं। यह तय नहीं हो पाया है कि आपरेशन कब करेंगे। उस अस्पताल में इस अस्पताल ही चक्कर लगा रहे हैं।
अस्पताल में डॉक्टर और स्टॉफ की कमी है: कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल की अधीक्षक डॉ. स्मिता भटनागर ने बताया कि जो संसाधन मिले हुए हैं हम उसी के साथ काम कर रहे हैं। डॉक्टरों की कमी और भर्ती का अधिकार शासन का है। हमने जानकारी उच्च अधिकारियों को पहले ही भेज दी है। हमारे पास स्टाफ कम हैं। 40 बिस्तर कोविड के लिए रिजर्व हैं और 40 बेड पर ही हम काम कर रहे हैं।
केंद्र की मंशा पर फेरा पानी, हैंडओवर का प्रस्ताव फाइलों में उलझा: ईएसआईसी की ओर से 2017 में प्रत्येक प्रदेश से 2 अस्पतालों को हेंडओवर करने की योजना तैयार की गई थी। जिसके तहत इंदौर के नंदा नगर स्थित अस्पताल को ईएसआईसी ने ले लिया था। नतीजन यहां बेड संख्या 300 होने के साथ पेथेलॉजी, हम्युमेटोलॉजी व बायोकेमिस्ट्री, ऑडियोमेट्री सहित लगभग सभी प्रकार के ऑपरेशन व अन्य सुविधाएं मिलने लगी। वहीं अब 500 बेड के लिए भवन तैयार किया जा रहा है। ईएसआईसी की ओर से तीन साल पहले 2019 में इंदौर अस्पताल के तर्ज पर भोपाल अस्पताल को केंद्र को हेंडओवर करने का प्रस्ताव मप्र श्रम विभाग को दिया गया था। जुलाई 2021 में आयोजित की गई कर्मचारी राज्य बीमा निगम की श्रेत्रीय परिषद की बैठक में भी इस प्रस्ताव को रखा गया था, जिसे श्रम मंत्री ने एप्रूवल भी दे दिया था, लेकिन अस्पतालों के बेहतर संचालन में नाकाम श्रम विभाग की लापरवाही के चलते यह प्रस्ताव फाइलों में ही घूम रहा है। हालांकि विभागीय अधिकारी इस प्रस्ताव को जल्द ही लागू होने की बात कह रहे हैं, लेकिन इसमें कितना समय लगेगा इसका जवाब उनके पास नहीं है। ऐसे में अगर प्रदेश की राजधानी में स्थित कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल के हाल यह हैं, तो बाकी अस्पतालों और डिस्पेंसरी की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
अस्पताल ESI को हैंडओवर करने के प्रस्ताव पर कार्रवाई जारी: कर्मचारी राज्य बीमा निगम के संयुक्त निदेशक कॉलीचरण झा ने बताया कि हम पहले भी मप्र सरकार और श्रम विभाग को सोनागिरी स्थित कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल ईएसआईसी को हेंडओवर करने का प्रस्ताव दे चुके हैं। ताकि इसे इंदौर स्थित बीमा अस्पताल की तर्ज सर्वसुविधायुक्त बनाकर यहां आने वाले लोगों को बेहतर सुविधाएं दी जा सकें।
ESIS मप्र के डायरेक्टर डॉ. नटवर शारदा ने बताया कि राज्य बीमा अस्पताल ईएसआईसी को हैंडओवर करने का प्रस्ताव पर फिलहाल कार्यवाही की जा रही है। बहुत जल्द इसका निर्णय शासन स्तर से होना है। अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों के मामले में ईएसआईसी ने कहा है कि दो साल के लिए हमारे कर्मचारी लेंगे। वहीं, प्रमुख सचिव ने कहा कि सोनागिरी स्थित राज्य कर्मचारी बीमा अस्पताल को ईएसआईसी को हैंडओवर करने के प्रस्ताव पर जब श्रम विभाग के प्रमुख सचिव सचिन सिन्हा से बात की गई तो उनका कहना है कि इस प्रस्ताव को उनके स्तर पर स्वीकृति दे दी गई है। इस संबंध में प्रक्रिया चल रही है, जल्द ही इसे ईएसआईसी को हैंडओवर किया जाएगा।