रंकेश वैष्णव, Barwani. मां नर्मदा का पानी पीने लायक नहीं है। इसका स्वाद और रंग बदल गया है और मैलापन बढ़ा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में नर्मदा प्रदूषण जांच रिपोर्ट की जानकारी दी। मेधा पाटकर ने द सूत्र की एक्सक्लूसिव खबर का जिक्र किया। उन्होंने द सूत्र की खबर को महत्वपूर्ण बताया। राजघाट से लिए गए सैंपल की अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत कल्पिनक वॉटररेट नाम की प्रयोग शाला से कराई गई थी।
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नर्मदा प्रदूषण जांच रिपोर्ट में क्या है ?
नर्मदा के पानी की जांच के दौरान पाया गया कि नर्मदा जल अब पीने लायक नहीं है। इसके रंग और स्वाद में परिवर्तन हुआ है। नर्मदा के पानी में मैलापन बढ़ गया है। पानी में कैल्शियम ज्यादा होने से इसे हार्ड वॉटर बताया गया है। पानी में मात्रा अधिकतम 200 यूनिट होनी चाहिए लेकिन ये 306 यूनिट है। इस पानी को पीने से किडनी से जुड़ी बीमारी और पथरी हो सकती है।
अंतिम चरण में नाइट्रेट, जलीय जीवों को खतरा
नर्मदा के पानी में नाइट्रेट की मात्रा भी अंतिम चरण में है जिससे कई प्रभाव पड़ रहे हैं। शैवाल छानकर जल शुद्धि करने वाले जलीय जीव खत्म बोते जा रहे हैं। नर्मदा का प्रदूषित पानी स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। खून की ऑक्सीजन क्षमता कम हो जाती है। ब्लू बेबी सिंड्रोम भी शामिल है। पानी में नाइट्रेट 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा मात्रा होने पर थायराइड, सतत श्वसन रोग, गर्भपात और पेट या मूत्रपिंड के कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है। रिपोर्ट के मुताबिक नर्मदा के पानी में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर है।
अमोनिया की मात्रा भी बढ़ी
अमोनिया की पीने के पानी में अधिकतम सहनीय मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गई है। इससे इंसानों पर और मछलियों पर असर होता है। ये औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों से और मानवीय मलमूत्र से भी बढ़ती है। STP का निर्माण दीर्घकाल तक पूरा न करने से ही ये हुआ है और बढ़कर 1 PPM से ज्यादा होने पर गंभीर असर हो सकता है।
मां नर्मदा के पानी में मिले रोग जीवाणु
जांच रिपोर्ट के मुताबिक ‘कोलिफॉर्म बैक्टेरिया’ यानी जीवाणु या रोग जीवाणु नर्मदा के पानी में पाए गए हैं। इसके साथ ‘ई-कोली बैक्टेरिया’ भी पाए गए हैं। ये सब स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक माने जाते हैं, इस पर तुरंत कार्रवाई करना जरूरी माना गया है। इन रोग जीवाणु से होने वाली बीमारियों में हैजा, टायफाइड, टीबी, पेट और आंतों की बीमारी, मेनिन्जायटिस (मगज की बीमारी) शामिल है। ये मानवीय मल-मूत्र से ही पानी को अधिकतर प्रदूषित करते हैं और पीने के पानी के जरिए स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालते हैं।
जांच रिपोर्ट का निष्कर्ष
नर्मदा के पानी की रिपोर्ट का निष्कर्ष निकलता है कि नर्मदा का राजघाट तीर्थ क्षेत्र का पानी, जहां हजारों तीर्थ यात्री, नर्मदा भक्त आते हैं और पानी पीते हैं। राजघाट से 5 किलोमीटर दूर नगर बसे हैं जिनके रहवासी भी नर्मदा का पानी पी रहे हैं जो वाकई में पीने के तो क्या नहाने-धोने के लायक भी नहीं है।
नर्मदा शुद्धिकरण के नाम पर करोड़ों खर्च
नर्मदा शुध्दिकरण के नाम पर मध्यप्रदेश सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय और द्विराष्ट्रीय साहूकारी संस्थाओं से करोड़ों रुपए कमाए हैं। बड़वानी के उदाहरण से ही पता चलता है कि इस पूंजी का कितना उपयोग और दुरुपयोग हुआ है। बड़वानी के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए 105 करोड़ रुपए की पूंजी पाकर भी नगर पालिका की सतत मांग के बावजूद इजरायल की ‘तहल’ कंपनी को ठेका दिया गया, जिसने 5 सालों में सिर्फ 40 प्रतिशत काम किया। आज तक अधूरे कार्य से पूरा खतरा जारी है। हर दिन नर्मदा में एक-एक नगर क्षेत्र से 10 लाख लीटर गंदा पानी बहने की प्रदूषण नियंत्रण मंडल की रिपोर्ट पहले ही जारी हो चुकी है लेकिन शासन क्या चिंतित है ?
मां नर्मदा की स्थिति बेहद चिंताजनक
नर्मदा को पूजनीय और मोक्षदायिनी ही नहीं, जीवनदायिनी मानते हुए इसकी गंभीर स्थिति देखकर भी कोई दखल नहीं देना बेहद चिंताजनक है। मानपूर (इंदौर संभाग) की अजनार नदी के (जो कारम नदी में और वहां से नर्मदा में मिलती है) पानी की जांच परीक्षण से ही प्रदूषण का पता चला था लेकिन मुख्य दोषी पर कार्रवाई आज तक नहीं हुई है। आज नर्मदा घाटी के नागरिकों को ही जागृत होकर शासन से जवाब लेना होगा। बड़वानी जैसे शहर में बड़े-बड़े अस्पतालों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन नर्मदा पानी की स्थिति सुधारने के लिए अपशिष्टों से, मलमूत्र से, खेती की अजैविकता से हो रहे प्रदूषण को रोकने की पहल, करोड़ों का धन पाकर भी राज्य शासन और प्रदूषण नियंत्रण मंडल से क्यों नहीं हो रही है ? ये सोचने की और तत्काल कृति की बात है, न केवल घोषणाबाजी और आश्वासनों की।