GWALIOR. मेयर पद गंवाने के बाद अब सभापति बनाना बीजेपी के लिए नाक का बाल बना,हार के बाद न सिंधिया आए न तोमर

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Dev Shrimali
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GWALIOR. मेयर पद गंवाने के बाद अब सभापति बनाना बीजेपी के लिए नाक का बाल बना,हार के बाद  न सिंधिया आए न तोमर

GWALIOR. नगरनिगम ग्वालियर के चुनावों में ५७ साल बाद मेयर का चुनाव हारने के बाद बीजेपी सदमे से उबार नहीं पा रही है।  पार्टी के नेता और कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर लगातार एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं वहीं मेयर(MAYOR)  प्रत्याशी और पार्टी के जिला अध्यक्ष इस हार का ठीकरा नगर निगम के अफसरों के सिर फोड़कर अपना बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी में इस कदर हा- हाकार मचा हुआ है कि पार्टी के दिग्गज नेता ग्वालियर आने तक से किनारा किए हुए है। ऐसे में सभापति का चुनाव अब बीजेपी के लिए नाक का बाल भी है और चुनौती भी। हालाँकि परिषद् में बीजेपी को बहुमत है लेकिन कॉंग्रेसियो  को देख  उत्साह से स्वयं बीजेपी कार्यकर्ता अपने पार्षदों की क्रॉस वोटिंग की आशंका  से भयभीत हैं।





हार के बाद बड़े नेताओं का किनारा





ग्वालियर नगर निगम बीजेपी संगठन के लिए जनसंघ के जमाने से पार्टी की विचारधारा की प्रयोगशाला मानी जाती थी। यह जनसंघ की पहली नगर निगम थी जहाँ उसने सत्ता पायी और इसी से हौसला लेकर ग्वालियर में ही पहली संविद सरकार बनाने का खाका खींचा गया। यही बजह है कि बीजेपी सदैव इस निगम को लेकर पूरी तरह आश्वस्त रहता था। 57 वर्ष से उसका इस पद पर कब्जा था मेयर का पद हो या पार्षदों का संख्याबल सदैव उसके साथ रहा  मान बैठी थी कि यहाँ तो वह जिसे  भी लड़ाएगी उसकी जीत  तय है। मेयर पद के टिकट का फैसला होते ही वह अपने को मेयर मानने  लगता था।   इस बार तो पार्टी हाईकमान और भी आत्मविश्वास से लबरेज था क्योंकि दिल्ली और भोपाल में बैठे बीजेपी नेताओं का आकलन था कि ग्वालियर -चम्बल अंचल में कांग्रेस का मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया( JYOTIRADITYA SCINDIA) था। अब वे अपने पूरे समर्थक कुनबे के साथ कांग्रेस में आ गए तो कांग्रेस शून्य हो  गयी है। इस बार बीजेपी इकतरफा जीतेगी लेकिन यह आकलन एकदम उलट साबित हो गया। कांग्रेसियों ने जिस अप्रत्याशित तरीके से एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा उसकी तुलना में बीजेपी खिन नहीं ठहर सकी और निगम चुनाव में एक इतिहास रच गया। 57 साल बाद न केवल बीजेपी का  मेयर हार गया बल्कि उसके पार्षदों की संख्या भी 45 से घटकर 34 रह गयी।





कार्यकर्ताओं की टिप्पणियों से नेता परेशान





इस करारी और शर्मनाक हार की फांस बीजेपी के बड़े नेताओं गले में बुरी तरह फांसी हुई है। एक तरफ तो निगम से सत्ता जाने का गम ऊपर से कार्यकर्ताओं द्वारा सोशल मीडिया पर छोड़े जा रहे शब्दवाणों ने उन्हें परेशान ही नहीं किया है बल्कि डरा कर रख दिया है। हालत ये है की चुनाव के परिणाम आने के बाद से कोई भी बड़ा नेता ग्वालियर नहीं आया है। जबकि दो केंद्रीय मंत्री इसी क्षेत्र से है। प्रदेश के ऊर्जा मंत्री यही से है और तुलसी सिलावट प्रभारी मंत्री है। प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष वीडी शर्मा भी इसी अंचल से हैं। लेकिन आमतौर पर हर सप्ताह ग्वालियर आने वाले केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर (NARENDRA SINGH TOMAR),नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हो या अन्य मंत्री, अभी तक ग्वालियर से कन्नी काटे हुए हैं।





परिषद् बचाना बड़ी चुनौती





हालाँकि मेयर का चुनाव हारने के बावजूद परिषद् में संख्याबल के हिसाब से अभी भी बीजेपी बहुमत में है और उसका सभापति चुना जा सकता है लेकिन यह बल सिर्फ एक वोट ज्यादा है। कांग्रेस के छब्बीस परिषद जीते है।  एक बसपा और पांच निर्दलीय मिलाकर कांग्रेस के पास 32 परिषद हो जाते हैं। अभी तक दो निर्दलीय पार्षद तो मेयर डॉ शोभा सिकरवार के विधायक पति डॉ सतीश सिकरवार से मिलकर उनको समर्थन देने की घोषःना कर चुके है। इनको मिलाकर कांग्रेस समर्थकों की संख्या 32 हो जायेगी .  नगर निगम विधान के अनुसार अगर दो पक्षों में मत सामान हो तो मेयर को भी वोट डालने का अधिकार हो जाता है। ऐसे में यदि कांग्रेस एक वोट बीजेपी से तोड़ लेती है तो वह मेयर के वोट से सभापति पद पर अपना उम्मीदवार जीता सकती है। सिकरवार के बीजेपी के ज्यादातर पार्षदों से निकटता के चलते बीजेपी ज्यादा भयग्रस्त है। लेकिन बीजेपी पार्षदों को एकजुट रखने  के लिए फिलहाल बड़े नेताओं की भागीदारी न होने से पार्षद भी अलग - अलग घूम रहे हैं। जब केंद्रीय मंत्री नहीं आये तो पार्टी ने जैसे - तैसे अपने सांसद विवेक नारायण शेजवलकर(VIVEK NARAYAN SHEJWALKAR) को संसद से छुट्टी दिलवाकर कुछ घंटे के लिए ग्वालियर भेजा। वे ग्यारह बजे गतिमान एक्सप्रेस से ग्वालियर आये।  स्टेशन से सीधे होटल गए और नव निर्वाचित पार्षदों से मिलकर और भाषण देकर वही से गतिमान से ही शाम चार बजे दिल्ली लौट गए। लेकिन अभी तक पार्टी न तो अपना सभापति प्रत्याशी तय कर सकी है और न परिषद् की रणनीति बना सकी है जबकि कॉग्रेस उसे अब परिषद् में जोरदार झटका देने की तैयारी में है।



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