इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता : पीएम—10 की स्टैंडर्ड वेल्यू 100, रैक आने पर पहुंच जाती है 600 के पार

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Rahul Sharma
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इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता : पीएम—10 की स्टैंडर्ड वेल्यू 100, रैक आने पर पहुंच जाती है 600 के पार

Bhopal. मध्यप्रदेश के इटारसी जंक्शन के पास मौजूद रेल गोदाम सेंट्रल पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की एक भी गाइडलाइन का पालन नहीं कर रहा। बावजूद इसके यह सालों से यहां धड़ल्ले से चल रहा है। रेल गोदाम कैसे 25 हजार लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है, यह हमने आपको पहले के अंक में बताया था, अब आज हम आपको बताएंगे कि रेलवे का यह माल गोदाम इटारसी की फिजाओं में कैसे और कितना जहर घोल रहा है। इस रेल गोदाम के कारण प्रदूषण को लेकर इटारसी में स्थिति चिंताजनक नहीं बल्कि विस्फोटक है। हवा के प्रदूषण को नापने के लिए पीएम—2.5 और पीएम—10 की वेल्यू निकाली जाती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सबसे खराब जिसे हम सामान्य भाषा में जहरीली हवा कह सकते हैं, कैटेगिरी में पीएम—10 की जो वेल्यू निर्धारित की है वह 500 है। इटारसी में जब रैक आती है तो हालात इससे भी खराब हो जाते हैं। यहां पीएम—10 की वेल्यू 600 क्रॉस कर जाती है। यह स्थिति इतनी खतरनाक और विस्फोटक है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित सबसे खराब स्थिति 400 से 500 के बीच मानी है, जबकि यह उससे भी बदत्तर हालत है।

 



रैक आने पर बजने लगता है अलार्म



इटारसी में रेक आने पर प्रदूषण किस हद तक होता है, यह पता लगाने के लिए द सूत्र ने पीएम—2.5 और पीएम—10 की वेल्यू निकाली। हैरान करने वाली बात यह थी कि रैक आने पर जब डस्ट उड़ी, तो उसी दौरान कुछ मीटर पर उपकरण का अलार्म बजने लगा। यह बीप लंबे समय तक उपकरण में सुनाई दी। रैक आते ही उससे उड़ी डस्ट के कारण पीएम—10 की वेल्यू 600 से 700 के बीच पहुंच गई। साइंटिस्ट डॉ. सुभाष पांडे ने कहा कि यह स्थिति भयावह है। उपकरण बीप तब देता है..जब प्रदूषण का लेवल हाई नहीं बल्कि विस्फोटक हो।




PM 2.5 और PM 10 होता क्या है?



PM को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) या कण प्रदूषण (particle pollution) भी कहा जाता है, जो कि वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं। पीएम 2.5 का स्तर धुएं से ज्यादा बढ़ता है यानि कि अगर हम कुछ चीजें वातावरण में जलाते हैं, तो वो पीएम 2.5 का स्तर बढ़ाता है। वहीं पीएम 10 का मतलब होता है कि हवा में मौजूद कण 10 माइक्रोमीटर से भी छोटे हैं, और जब पीएम 10, पीएम 2.5 का स्तर 100 से ऊपर पहुंचता है, तो ये खराब श्रेणी को दर्शाता है यानि हवा में धूल, मिट्टी, धुंध के कण ज्यादा मात्रा में मौजूद है, जो आसानी से सांस के जरिए आप के फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं।





सीमेंट की रैक आने पर ज्यादा खतरा



सीमेंट की रैक आने पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब रैक आने पर ही प्रदूषण विस्फोटक स्थिति पर पहुंच रहा है तो जब सीमेंट की रैक से लोडिंग—अनलोडिंग होने पर घटों से सीमेंट के गुबार उड़ते होंगे तब यहां क्या स्थिति रहती होगी। रैक पर यदि सीमेंट को लोडिंग या अनलोडिंग हो रही है और माल गोदाम से लगकर यदि आप अपनी कार पार्क करेंगे तो मात्र कुछ घंटे में ही पूरी कार पर सीमेंट की डस्ट चढ़ जाएगी। इससे यहां के खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है।   




हम्मालों को नहीं दिए जाते ग्लब्स और मास्क



सीमेंट या फर्टीलाइजर से संबंधी रैक आने पर नियम है कि हम्मालों को ग्लब्स और मास्क दिए जाए, ताकि लोडिंग—अनलोडिंग के समय इससे उड़ने वाली डस्ट से इनको बचाया जा सके, पर यहां हम्मालों को इस तरह की कोई सामग्री नहीं दी जाती। आप खुद सोच सकते हैं सीमेंट का शरीर के अंदर जाने का अर्थ क्या होता है...कुल मिलाकर हम्मालों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और किसी को कोई चिंता नहीं।




बर्बाद हो रहा इटारसी, पर जिम्मेदारों को अब भी नहीं कोई परवाह



रेल गोदाम के कारण इटारसी बर्बाद हो रहा है, लोगों के स्वास्थ से खिलवाड़ हो रहा है, पर जिम्मेदारों को अब भी कोई परवाह नहीं है। हालत यह है कि यहां प्रदूषण का लेवल रैक आने पर दिल्ली से भी ज्यादा बदत्तर हो जाता है, पर किसी को कोई चिंता नहीं। डीआरएम सौरभ बंधोपाध्याय रेल माल गोदाम की कमियों को तो स्वीकार करते हैं, पर अब तक इस पर कोई ठोस एक्शन क्यों नहीं हो पाया, इसे लेकर जवाब नहीं है। क्षेत्रीय सांसद राव उदयप्रताप सिंह जो रेलवे सलाहकार समिति में मेंबर भी हैं...चुनावी व्यस्तता का हवाला देकर जिम्मेदारी से बच जाते हैं। क्या लोगों की जिंदगी और स्वास्थ से बढ़कर चुनाव कैंपेन है। वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रीजनल आफीसर अभय सराफ नई ज्वाइनिंग का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से बचते नजर आए। अभय सराफ अब फिर रेलवे को पत्र लिखने की बात कर रहे हैं। सवाल यह कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पहले भी पत्र लिखे गए, उनका फॉलोअप या कार्रवाई क्यों नहीं। अब फिर नई प्रक्रिया...फिर पत्राचार की रस्म अदाएगी। ऐसे में जो लोग सांस और फेफड़े संबंधी बीमारियां से पीड़ित हो रहे हैं, उनकी जवाबदारी कौन लेगा।




  


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