REWA. रीवा का आज दुनिया दो कारणों से लेती है पहला सफेद बाघ और दूसरा सुंदरजा आम। यहां का सुंदरजा नाम का आम इतना खास है कि विदेशों में भी इसकी डिमांड है। असल में इस आम को शुगर के मरीज भी बड़े चाव से खा सकते हैं। इसके अलावा रीवा की उर्वरा भूमि में अमेरिका के आमों की दो प्रजातियां यहां फलफूल रहीं हैं। यहां के फल अनुसंधान केन्द्र कुठुलिया में आम का बागान है। जिसमें आम की 237 प्रकार की किस्में फल फूल रही हैं। गोविंदगढ़ का सुंदरजा तो इस अनुसंधान केन्द्र की शान है। इसके अलावा अमेरिका के फ्लोरिडा शहर का इरविन व सेंसेशन भी यहां फल रहा है। इनके अलावा डिमांड की बात की जाए तो टॉमी एटकिन और स्वर्णरेखा अपनी खास जगह बना कर रखते हैं।
32 हेक्टेयर एरिया में फैला हुआ है रिसर्च सेंटर
रीवा का यह फल बागान जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के अंतर्गत आता है। यही नहीं यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक उपक्रम है जिसे अमरूद और आम के लिए बनाया गया है।यही कारण है कि यहां का अनुसंधान केन्द्र आम और अमरूद पर रिसर्च करता आ रहा है। फल अनुसंधान केंद्र कुठुलिया करीब 32 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
खास नामों से जाने जाते हैं आम
कुठुलिया रिसर्च सेंटर में आम के नाम रखने की परंपरा है। यही कारण है कि यहां के आमों को कई खास नाम दिए गए हैं। कई राजा-महाराजाओं के नाम पर आम की किस्में हैं। मसलन रीवा रियासत के महाराजा मार्तंड सिंह, गुलाब सिंह आदि नाम भी है। इसके अलावा इस बगीचे में अंग्रेजों के नाम की भी आम की वैरायटी मौजूद हैं, इनमें से लाट साहब, कैंपू और इरविन खास हैं।
रिसर्च सेंटर में 2 हजार से अधिक आम के पेड़
फल अनुसंधान परियोजना अंतर्गत 2345 आम के पेड़ लगाए गए हैं। फल अनुसंधान केन्द्र में जल्द पकने वाले आम से लेकर मध्यम प्रजातियों के पेड़ भी हैं। बंबई, बाम्बे ग्रीन, इन्द्ररहा, दईहर, सुदंरजा, दशहरी, लंगड़ा ,गढुअन, आम्रपाली, मल्लिका, चौसा, भजली, निलेशान, साबौर का महमूद बहार, प्रभाशंकर, गोवा का सिंधु, रत्ना व नीलम हाइब्रिड आम हैं।
इसलिए सुर्खियों में सुंदरजा
सुंदरजा शुगर फ्री आम की वैरायटी है। यह इसके विशेष खासियतों में से एक है। इसके अलावा इसे 7 से 9 दिन तक सामान्य तापमान में रखा जा सकता है। प्रत्येक आम का वजन 400- 500 ग्राम होता है। बताते हैं कि एक आम में छिलका 14 प्रतिशत और गुदा (पल्प)75 प्रतिशत निकलता है। गुठली 12 प्रतिशत रहती है। यही कारण है कि संसद भवन से लेकर ब्रिटेन तक सुर्खियां बटोर चुका है।
एक किस्म लॉकडाउन के नाम की
आम विशेषज्ञ और जाने माने कवि राम लखन जलेश बताते हैं कि पिछले साल ही एक आम का नया नामकरण हुआ है उसे लॉकडाउन नाम दिया है। इससे पहले हम जर्दुआ के नाम से जानते थे। वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल बताते हैं कि दरअसल विन्ध्य भूमि मैंगो बेल्ट ही है। यहां की अमराई और आम्रकुंजों ने आम व खास दोनों वर्गों का ध्यान खींचा। रीवा के कुठुलिया फार्म में आम के बाग में कृषि अनुसंधान परिषद का मैंगो रिसर्च सेंटर भी है..जो आम के संवर्धन की दिशा में शोध करता रहता है। बाग में इरविन, लार्ड कंपू, हिज हाइनेस, बप्पाकाई, विष्णुप्रिया, कृष्णभोग, सुकुल, ककरिया, सीपिया, जहाँगीर, नूरजहाँ, सुंदरजा, लँगड़ा, दशहरी, मल्लिका, आम्रपाली, नीलम, केसर, बदाम, हाथीझूल, फजली, चौंसा, सुंदरजा, मालदहा, तोतापरी, बाँबेग्रीन, हापुस...इतनों के नाम याद है बाकी और भी हैं कई छुपे रुस्तम...।