पीएचईडी में अफसरों की मनमानीः सीएम की मंशा के खिलाफ बदले नियम, टेंडर की रेस में पिछड़े मप्र के कांट्रैक्टर

author-image
एडिट
New Update
पीएचईडी में अफसरों की मनमानीः सीएम की मंशा के खिलाफ बदले नियम, टेंडर की रेस में पिछड़े मप्र के कांट्रैक्टर

भोपाल। सरकारी योजनाओं (Government Schemes) से संबंधित निर्माण कार्यों में ज्यादा से ज्यादा काम स्थानीय युवाओं और कांट्रेक्टर्स (Contractors) को दिए जाने की मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) की मंशा पर उनकी सरकार के ही अफसर पानी फेर रहे हैं। अफसरों की इस करतूत का ताजा मामला लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (PHED) का है जिसमें मनमाने नियमों के चलते मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के ज्यादातर कांट्रेक्टर (Contractor) टेंडर (Tender) प्रक्रिया में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं। इसके चलते विभाग के ज्यादातर कार्यों का कांट्रेक्ट गुजरात (Gujarat), उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) औऱ बिहार (Bihar) के कांट्रेक्टर्स को हासिल हो रहा है जबकि मप्र के कांट्रेक्टर मुंह ताक रहे हैं।

सरकार के नियम में 2 करोड़ रुपये तक के टेंडर के लिए अनुभव की शर्त नहीं

बता दें कि प्रदेश शासन के नियमों के मुताबिक 2 करोड़ रुपये तक के निर्माण कार्यों के लिए किसी भी तरह के फाइनेंशियल और फिजिकल वर्क के अनुभव की जरूरत नहीं है । लेकिन प्रदेश में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट जल जीवन मिशन (JJM) के लॉन्च होने के बाद पीएचईडी के आला अफसर औऱ इंजीनियरों ने नियमों में मनमाना हेरफेर किया है । दरअसल जेजेएम के तहत घर-घर और स्कूल, आंगनबाड़ियों में पीने का साफ पानी पहुंचाने की योजना है। इस पर अमल के लिए केंद्र से करोड़ों रुपए का बजट मिला है। लेकिन पीएचई के उच्च अधिकारियों ने इस योजना में कांट्रेक्टर्स के लिए प्री- क्वॉलिफिकेशन क्राइटेरिया (एनेक्सर सी) लागू कर दिया। इसके चलते 2 करोड़ रुपये से नीचे के निर्माण कार्यों के कांट्रेक्ट हासिल करने में भी गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड के कांट्रेक्टर औऱ उनकी कंपनियां बाजी मार रही हैं। जबकि सीएम शिवराज सिंह चौहान के ऐलान के बाद शासन ने नियम बना दिया था कि 2 करोड़ रुपये तक के टेंडर के लिए कांट्रैक्टर से कोई अनुभव नहीं मांगा जाएगा । 

सीएम के ऐलान के बाद भी पीएचईडी ने लागू किए मनमाने नियम

1-    पीएचई ने टेंडर में हिस्सा लेने के लिए ठेकेदारों से पिछले तीन साल का अनुभव मांगा है ।  ये अनुभव टेंडर की कुल राशि के 33 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए था। यानि अगर 2 करोड़ रुपए का टेंडर लेना है तो बीते तीन साल में 66 लाख रुपए के काम करने का अनुभव होना चाहिए। 
2-    दूसरी शर्त के मुताबिक ठेकेदारों को जल जीवन मिशन से मिलते-जुलते  काम करने का अनुभव होना चाहिए । इस शर्त का फायदा दूसरे राज्यों के ठेकेदारों को मिला, क्योंकि मप्र के अलावा अन्य राज्यों में जल कार्य के प्रोजेक्ट्स पिछले 4 सालों से चल रहे हैं।

3-    तीसरी शर्त जोड़ी  गई कि ठेकेदार की बिड कैपेसिटी यानि वर्क एक्सपीरियंस, पैकेज की राशि से कम नहीं होनी चाहिए। यानि 2 करोड़ रुपए का टेंडर लेना है तो ठेकेदार को 2 करोड़ रुपए तक का काम करने का अनुभव होना चाहिए। 

पीएचई विभाग ने ठेकेदारों से टेंडर की बिल ऑफ क्वांटिटीज (बीओक्यू) से 50 फीसदी तक काम किए जाने का अनुभव मांगा । यानि ठेकेदार ने बीते तीन साल में   फेब्रिकेशन और एचडीपीई पाइपलाइन से संबंधित वर्क किया होगा तभी वो टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा ले सकता है ।

2 करोड़ रुपये तक के टेंडर के लिए पीएचई ने सीएम की घोषणा के बाद जो नियम बनाए थे उसके मुताबिक ठेकेदारों से किसी भी तरह का फाइनेंशियल और फिजिकल एक्सपीरिएंस नहीं मांगा जाना था । ट्रीटमेंट प्लांट, ओवर हेड टेंक, एनिकट, इंटकवेल जैसे विशेष कार्यों के लिए ही फिजिकल एक्सपीरिएंस की जरूरत थी । लेकिन जेजेएम लॉन्च होने के बाद पीएचई के अधिकारियों ने मनमाने ढंग से नियम बदल दिए।  

आरटीआई से खुलासा, दूसरे राज्यों के ठेकेदारों को तीन गुना ज्यादा काम

द सूत्र ने पीएचई विभाग से जल जीवन मिशन के तहत जनवरी 2021 से अगस्त 2021 तक स्वीकृत टेंडर के आदेश की प्रमाणित प्रतियां मांगी। जिसके जवाब में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इन 8 महीनों में अन्य राज्यों के ठेकेदारों को करीब 200 करोड़ रुपए तक के काम मिले जबकि मप्र के कांट्रैक्टर्स को महज 79 करोड़ के काम मिल पाए। इस अवधि में 179 टेंडर जारी किए गए, इनमें से मध्यप्रदेश के ठेकेदारों को महज 50 टेंडर जबकि दूसरे 7 राज्यों के ठेकेदारों को 129 टेंडर मिले ।

मध्यप्रदेश के  ठेकेदारों को 50 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 79.69 करोड़ का काम होना है। गुजरात के ठेकेदारों को 39 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 60.59 करोड़ का काम होना है। बिहार के ठेकेदारों को 41 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 55.13 करोड़ का काम होना है। छत्तीसगढ़ के ठेकेदारों को 14 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 19.63 करोड़ का काम होना है। दिल्ली के ठेकेदारों को 12 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 20.78 करोड़ का काम होना है। उत्तर प्रदेश के ठेकेदारों को 12 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 16.00 करोड़ का काम होना है। महाराष्ट्र के ठेकेदारों को 5 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 9.35 करोड़ का काम होना है। जबकि झारखंड के ठेकेदारों को 6 टेंडर मिले हैं, इन टेंडरों में 9.26 करोड़ का काम होना है।

पीएचई के ईएनसी ने पहले नकारा, फिर स्वीकारा

द सूत्र ने इस मामले में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) के प्रमुख अभियंता (ईएनसी) केके सोनगरिया से बात की । उन्होंने पहले तो प्री-क्वालिफिकेशन मांगे जाने की बात को सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद उन्हें आरटीआई से हासिल दस्तावेज दिखाए गए। इसके बाद ईएनसी ने माना कि विशेष श्रेणी के कार्यों के लिए अनुभव मांगा गया है। इस पर द सूत्र ने उन्हें जो टेंडर दिखाए, उनमें पाइपलाइन बिछाने और पंप हाउस बनाने से संबंधित कार्य ही थे, जो विशेष कार्य की श्रेणी में नहीं आते। 

दूसरे राज्यों की अनुभवी फर्मों से ज्वाइंट वेंचर करें मप्र के कांट्रेक्टरः ईएनसी

दूसरे राज्यों के कांट्रेक्टर्स को काम दिए जाने के सवाल पर सोनगरिया ने बताया कि गुजरात,बिहार जैसे अन्य राज्यों में जल कार्य के कई प्रोजेक्ट्स पहले से चल रहे हैं। लिहाजा वहां के ठेकेदार ज्यादा अनुभवी हैं । यही वजह है कि उन्हें ज्यादा टेंडर मिले हैं। उन्होंने ये सलाह भी दे डाली कि यदि मध्यप्रदेश के कांट्रेक्टटर काम लेना चाहते हैं तो वें दूसरे राज्यों की अनुभवी फर्मों के साथ ज्वॉइंट वेंचर करके टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते है। द सूत्र ने सोनगरिया से सीधा सवाल किया कि जब सीएम ने 2 करोड़ रुपये तक के कार्यों के लिए कांट्रेक्टर्स पर कोई शर्त नहीं लगाने का नीतिगत ऐलान किया है तो  फिर नियम क्यों बदले गए। इस पर उन्होंने सफाई दी कि सब कुछ प्रावधान के अनुसार ही किया गया है।  

शासन से मंजूरी लिए बिना नहीं बदल सकते नियम

द सूत्र ने इस मामले में रिटायर्ड आईएएस मुक्तेश वार्ष्णेय से बात की । उन्होंने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री के नीतिगत बयान या सरकार के फैसले के बाद नियम विभागीय स्तर पर नहीं बदले जा सकते। यदि विभाग को बदलाव करने की जरूरत लगती है तो उसे नियमानुसार शासन से अनुमोदन कराने के बाद ही नियम बदलना चाहिए। 

सीएम की मंशा पर फिरा पानी- ठेकेदार

द सूत्र ने इस मामले में पीएचई विभाग में काम करने वाले युवा ठेकेदार राजेश चौधरी से बात की। उन्होंने कहा कि पीएचई के अधिकारियों ने नियम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा पर ही पानी फेर दिया। सीएम शिवराज चाहते है कि प्रदेश के युवा ठेकेदारों को काम मिले। लेकिन 2 करोड़ से कम के काम में भी प्री-क्वालिफिकेशन मांगी गई। जिसके कारण प्रदेश के ठेकेदारों का नुकसान हुआ है।

Chief Minister Shivraj Singh Chouhan TENDER government schemes JJM Uttar Pradesh and Bihar PHED Contractors Madhya Pradesh Prime Minister Narendra Modi Jal Jeevan Mission Gujarat Youth CONTRACTOR