डायल 100 का 5 मिनट में पहुंचने का दावा, हकीकत में 19 से 26 मिनट लेट

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Aashish Vishwakarma
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डायल 100 का 5 मिनट में पहुंचने का दावा, हकीकत में 19 से 26 मिनट लेट

सुनील शुक्ला, भोपाल। नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) ने प्रदेश सरकार की बहुप्रचारित डायल 100 सेवा (100 लगाओ- पुलिस बुलाओ) को असफल करार दिया है। विधानसभा में शुक्रवार, 11 मार्च को प्रस्तुत की गई ऑडिट रिपोर्ट में CAG ने इस सेवा को लेकर गंभीर टिप्पणियां की हैं। ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2015 में करीब 632 करोड़ रुपए की लागत से जोरशोर से शुरू की गई डायल 100 सेवा अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल साबित हुई है। इसके लिए डायल 100 प्रोजेक्ट के ठेका प्रबंधन, प्रणाली संरचना और कार्यान्वयन में कमी को जिम्मेदार बताया गया है। भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक गिरीश चंद्र मुर्मू एवं मप्र के प्रधान महालेखाकार डी.साहू के दस्तखत से जारी रिपोर्ट में डायल 100 की प्रणालीगत कमियों की समीक्षा कर इन्हें दूर करने की सिफारिश की गई है ताकि यह सेवा संकटकालीन समय में पीड़ित को त्वरित सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य में सफल हो सके।





डायल 100, शहरों में 19 मिनट और ग्रामीण क्षेत्र 26 मिनट लेट: संकटकालीन समय (इमरजेंसी) में कॉल और मदद के प्रदेश सरकार ने 632.94 करोड़ रुपए की लागत से 1 नवंबर 2015 को सभी जिलों में केंद्रीकृत आपातकालीन 24x7 रिस्पॉंस सर्विस डायल 100 शुरू की थी। इस आपातकालीन सेवा के लिए किए गए अनुबंध के मुताबिक इमरजेंसी कॉल मिलने के बाद डायल 100 सर्विस का फर्स्ट रिस्पॉंस व्हीकल (एफआरवी) शहरी क्षेत्रों में 5 मिनट के भीतर और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 मिनट के भीतर घटनास्थल पर पहुंचना था। लेकिन CAG की ऑडिट रिपोर्ट में ये हकीकत सामने आई है कि डायल 100 सेवा अपने उद्देश्य को पूरा करने में असफल साबित हुई है। अनुबंध में किए गए दावे के विपरीत डायल 100 का औसत प्रतिक्रिया समय शहरी क्षेत्रों में 24 मिनट और ग्रामीण क्षेत्रों में 56 मिनट रहा है।





गंभीर अपराधों में भी देर से पहुंची डायल 100 की FRV: ऑ़डिट में यह बात भी सामने आई कि गंभीर किस्म के अपराधों जैसे बलात्कार, बलात्कार के प्रयास, अपहरण, घरेलू हिंसा आदि में भी एफआरवी को घटनास्थल पर भेजने एवं पहुंचने में देर हुई है। इस मामले में डायल 100 सेवा की शुरूआत से पांच साल तक यानी 2019 तक कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। इसके लिए ऑडिट रिपोर्ट में प्रोजेक्ट के ठेका प्रबंधन, प्रणाली संरचना और कार्यान्वयन में कमी को जिम्मेदार माना गया है। इसी वजह से डायल 100 सेवा अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में विफल हुई। CAG की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि डायल 100 की प्रणालीगत कमियों की व्यापक समीक्षा कर इन्हें दूर किया जाए।





डायल 100 के संचालन पर हर साल 104 करोड़ खर्च 







  • 1 नवंबर 2015 से 632.94 करोड़ की लागत से सूबे के सभी जिलों में डायल 100 योजना शुरू की गई। इसके संचालन के लिए सरकार हर साल करीब 104 करोड़ रूपए खर्च कर रही है। 



  • डायल 100 का उद्देश्य फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल के तहत किया जाता है, जिसमें किसी आपराधिक या दुर्घटना की सूचना मिलने पर जल्द से जल्द पीड़ित या फरियादी व्यक्ति तक सहायता पहुंच सके। 


  • कैग ने नवंबर 2015 से मार्च 2020 तक की अवधि के लिए प्रदेश के 8 जिलों में डायल 100 के क्रियान्वयन का ऑडिट किया।


  • फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल यानी डायल 100 को संकटकालीन कॉल मिलने के बाद शहरी क्षेत्र में 5 मिनिट के भीतर और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 मिनिट के भीतर घटनास्थल पर पहुंचना था, लेकिन कैग की रिपोर्ट के अनुसार यह शहरी क्षेत्र में 24 मिनिट और ग्रामीण क्षेत्र में 56 मिनिट पर घटनास्थल पर पहुंच रही थी।


  • कैग रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार, बलात्कार का प्रयास, अपहरण, घरेलू हिंसा जैसे जघन्य अपराधों में भी डायल 100 देरी से घटनास्थल पर पहुंची। 2016 से 2019 तक संकटकालीन कॉल आने के बाद रिस्पांस के टाइम में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। 






  • 100 इमरजेंसी कॉल में से सिर्फ 20 पर ही कार्यवाही 







    • कैग रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक 100 कॉल में से मात्र 20 को ही कार्रवाई के योग्य माना गया। इनमें से भी मात्र 2 में डायल 100 समय पर भेजी गई।



  • परियोजना प्रबंधन सलाहकार को 72 लाख वार्षिक की लागत से अनुबंध कर रखा गया। जबकि यह भी सुनिश्चित नहीं किया गया कि सिस्टम इंटीग्रेटर द्वारा दी गई सेवा की निगरानी के लिए पूर्ण एवं उपयोग डेटा सृजित किया गया। 


  • डायल 100 में लगे मोबाइल डेटा टर्मिनल या तो लगे नहीं थे, या चालू नहीं थे या चालू थे तो पुलिसकर्मियों ने इससे जुड़ा डेटा ही दर्ज नहीं किया।






  • जिम्मेदार अधिकारियों ने नहीं की सही मॉनिटरिंग, कार्रवाई 







    • जिम्मेदार अधिकारियों ने सही मॉनिटरिंग और कार्रवाई नहीं की। पुलिस कर्मी भी निगरानी में सुस्त थे। ऑनसाइट ड्यूटी नहीं दी। डायल 100 को पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी उपलब्ध नहीं कराए गए। जबकि डायल 100 में 2 पुलिसकर्मी की तैनाती होती है। 



  • सड़क की स्थिति और अपराध दर के साथ-साथ भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में रखें बिना प्रति पुलिस स्टेशन में एक डायल 100 व्हीकल दे दिया गया। इससे भी दिक्कतें हुई। 


  • ऑडिट की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि विभाग की सेवाओं की निविदा में पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं की। परियोजना प्रबंधन सलाहकार के चयन के अंतिम चरण में पसंदीदा बोली को बदलने के लिए मूल्यांकन मापदंड में बदलाव किया गया।








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