SATNA:16 वीं सदी में औरंगजेब ने खंडित की थी मूर्ति, हिन्दू मान्यता में ऐसी मूर्ति का पूजन वर्जित लेकिन गैवीनाथ से आस्था अटूट

author-image
Sachin Tripathi
एडिट
New Update
SATNA:16 वीं सदी में औरंगजेब ने खंडित की थी मूर्ति, हिन्दू मान्यता में ऐसी मूर्ति का पूजन वर्जित लेकिन गैवीनाथ से आस्था अटूट

 SATNA. बिरसिंहपुर, यह नगर बाबा गैवीनाथ का धाम है जो कि सतना जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर पूर्व और उत्तर के कोने में बसा है। भगवान गैवीनाथ के कई कथानक प्रचलन में हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इन्हीं को सुनते-सुनाते चले आ रहे हैं। सावन के दूसरे सोमवार को आइये जानते हैं। भगवान गैवीनाथ के बारे में….।



कई कथानकों में से एक यह है कि 16 वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों और मंदिरों को तहस नहस किया जा रहा था। इस क्रम में यह अभियान सतना के बिरसिंहपुर तक पहुँच था। यहाँ विराजे भूतभावन भगवान गैवीनाथ पर भी मुगल सेना ने प्रहार किए थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली उल्टे सेना को ही भागना पड़ा था। इसके प्रमाण स्वरूप आज भी मूर्ति में निशान मूर्ति दिख जाते हैं। मूर्ति तीन ओर से खंडित है। यूं तो हिन्दू धर्म शास्त्रों में खंडित प्रतिमा की पूजा करना वर्जित है लेकिन बिरसिंहपुर में विराजे गैवीनाथ की अलग ही महिमा है। यही कारण है कि यहां प्रत्येक सोमवार अभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की अटूट भीड़ उमड़ती है। यहीं नहीं  महाशिवरात्रि और श्रावण मास का यहां विशेष महत्व है।



पहले बिरसिंहपुर का नाम था देवपुर 



एक कथा और है कि बिरसिंहपुर कभी देवपुर नाम की नगरी थी। जिसके राजा भगवान महाकाल के अनन्य भक्त थे। उनकी भक्ति के कई चर्चे आज भी बिरसिंहपुर के बूढ़ों और युवाओं की जुबान पर है। बीएचयू बनारस से शिक्षा अध्ययन कर लौटे आचार्य सत्यम शास्त्री बताते हैं कि कभी यह देवपुर नगरी हुआ करती थी इसके राजा थे बीरमणि और उनके छोटे भाई वीर सिंह। राजा बीरमणि उज्जैन महाकाल के परम भक्त थे। वह देवपुर से प्रतिदिन उज्जैन जाकर महाकाल के दर्शन करते थे। यह क्रम उनका चलता रहा।  जरावस्था में उन्होंने महाकाल को देवपुर बुलाया था। तभी महाकाल यहां गैवीनाथ के रूप में प्रगट हुए। चूंकि बीरमणि के भाई वीरसिंह के कोई संतान नहीं थी इसलिए राजा बीरमणि ने देवपुर का नाम बदलकर बिरसिंहपुर कर दिया।



ग्वाले के घर के चूल्हे से प्रकट हुई मूर्ति



गैवीनाथ नाम से भी जुड़ी एक कथा इस इलाके में खूब प्रचलित है। सत्यम शास्त्री बताते हैं कि महाकाल के उपलिंग के रूप में गैवीनाथ को जाना जाता है। बाबा यहां एक चूल्हे से प्रकट हुए।  यह सुनते आ रहे हैं कि जहां आज मंदिर है वहां कभी गैवी नाम के ग्वाले का घर था। उनकी पत्नी एक दिन खाना पका रही थी तभी उससे पत्थर से निकल आया। पत्नी ने उसे ठोक कर अंदर कर दी। यह क्रम चलता रहा। एक दिन महाकाल ने गैवी को स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिर के निर्माण के लिए कहा। यह बात गैवी ने तब के राजा बीरमणि से बताई थी। 



शिव -पार्वती के जोड़ी जाती हैं गांठ



गैवीनाथ धाम लोगों की अटूट श्रद्धा का केंद्र है। लोग बड़ी संख्या में यहां मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु शिव और पार्वती का गठबंधन करते हैं। जो कि  विशाल तालाब के इस पार और इस पार हैं।।इसलिए लोग ऊपर से शंकर-पार्वती का गठबंधन करते हैं। सावन में यहां भक्तों का रेला उमड़ पड़ता है। गैवीनाथ धाम ट्रस्ट के मंत्री शिवकुमार श्रीमाली कहते हैं, पद्म पुराण के पाताल खण्ड में वर्णन है। जब लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं तब ये गठबंधन कराते हैं । साल में कई हजार गठबंधन होते हैं। भोलेनाथ का गठबंधन कभी भी करा सकते हैं। विशेष महत्व से महाशिवरात्रि का है। महाशिवरात्रि को हजारों गांठ जोड़ी जाती हैं मगर 12 महीना कभी भी गठबंधन करा सकता है। सावन का विशेष महत्व है। काफी भीड़ रहती है, खासकर सोमवार के दिन।



जब राजकुमारों ने बांध लिया था अश्वमेध का घोड़ा



बिरसिंहपुर का कभी देवपुर था। इसके राजा के दो बेटे थे रुक्मांगद और सुख्खमांगद। दोनों आखेट के लिए जंगल में घूम रहे थे। इस दौरान उन्हें एक घोड़ा दिखाई दिया। इस घोड़े को लाकर अस्तबल में बांध दिया। सत्यम शास्त्री बताते हैं कि यह बात हनुमान जी को पता चली तो उन्होंने शत्रुघ्न को बताई। यब सभी मिलकर देवपुर में आक्रमण कर दिया। यह बात दोनों राजकुमारों को लगी तो भयभीत हो गए लेकिन यह जानते हुए की यह अश्वमेध का घोड़ा है जो श्रीराम का है जो  उन्होंने छोड़ा नहीं और युद्ध स्वीकार कर लिया। भीषण युद्ध में दोनों मूर्छित हो गए। कहते हैं तब भगवान गैवीनाथ ने श्रीराम से दोनों राजकुमार के लिए क्षमा मांगी थी।



चारों धाम का चढ़ता है जल



गैवीनाथ की महत्ता बताते हुए सुनील तिवारी कहते हैं कि ऐसी मान्यता है कि चारों धाम करने के बाद लोग सभी शिव स्थलों से इकठ्ठा किया गया जल बिरसिंहपुर आकर भगवान गैवीनाथ में चढ़ाते हैं। इसके पीछे का राज क्या है यह स्पष्ट नहीं है लेकिन पुरातन से यही चला आ रहा। इसलिए भगवान गैवीनाथ का महत्व और बढ़ जाता है।


MP News एमपी न्यूज़ Satna News सतना न्यूज़ एमपी लेटेस्ट न्यूज़ इन हिंदी Birsingpur Baba gaivinath Shiv shankar mandir Mugal king Aurangzeb Hindu mathology Mp letest news in hindi शिव और सावन गैवीनाथ धाम बिरसिंहपुर मुगल शासक औरंगजेब हिन्दू मान्यता