हरीश दिवेकर, BHOPAL. मध्यप्रदेश में 11 अक्टूबर को महाकाल के दरबार में हाजिरी लगाकर पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम शिवराज सिंह चौहान 2023 का चुनावी आगाज करेंगे। दूसरी तरफ उनके आदिवासी वोट बैंक में बड़ी सेंध लगने की तैयारी हो रही होगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी वोटर्स की बेरुखी के चलते हार का मुंह देखा था। इस बार आदिवासी वोटर्स को रिझाने की बड़ी प्लानिंग है जिसे फेल करने के लिए प्रदेश में कुछ संगठन एक्टिव हो चुके हैं।
विधानसभा चुनाव में आदिवासियों पर बड़ा दांव
आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों आदिवासियों पर बड़ा दांव खेल रहे हैं। 2018 में कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने में आदिवासी वोटर्स की इनफ्लूएंस वाली सीटों ने बड़ी भूमिका अदा की थी। बीजेपी दोबारा उन सीटों का नुकसान झेलने के मूड में नहीं है। इसलिए सारे पैंतरे आजमा रही है। इस चुनावी खेल को और दिलचस्प बनाने के लिए कुछ नए खिलाड़ी मैदान में हैं जिनके आने से ही कांग्रेस और बीजेपी दोनों में खलबली मची हुई है। इन नए खिलाड़ियों का पूरा फोकस प्रदेश के आदिवासी, एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के वोटर्स पर है। बीजेपी पर आरोप हैं कि सत्ताधारी दल ने इन नए खिलाड़ियों के गढ़ में सेंध लगाकर उन्हें तोड़ने की तैयारी की है। जबकि कांग्रेस उन्हें रिझाकर अपने पाले में करने की पूरी कोशिश में जुटी है। ये सभी खिलाड़ी प्रदेश की 84 सीटों पर सीधे-सीधे असर डालेंगी। जो किसी भी दल की झोली में जीत और हार डालने के लिए काफी बड़ा आंकड़ा है।
आदिवासी वोट बैंक पर बड़े दलों का फोकस
आने वाले विधानसभा चुनाव में बड़े दलों का फोकस आदिवासी वोट बैंक पर है। बीजेपी तो इसकी तैयारी तब से कर चुकी है जब से प्रदेश में आदिवासी जनजाति गौरव दिवस मनाया था। लेकिन बड़े पैमाने पर एक भव्य कार्यक्रम करना बीजेपी के लिए क्या काफी होगा। क्योंकि आदिवासी सीटों पर जाकर उन्हें अपना बनाने के लिए कई राजनैतिक दल या संगठन सक्रिय हो चुके हैं। जो नाम और काम दोनों से इस समुदाय के ज्यादा करीब लगते हैं। इसके साथ ही उन्हें प्रभावित भी करते हैं।
आदिवासियों को अपने पक्ष में करने में जुटे कई दल
हीरालाल अलावा के नेतृत्व में जयस ने मध्यप्रदेश में ताल ठोंक ही दी है। वैसे तो कांग्रेस-बीजेपी का दिल धड़काने के लिए यही संगठन काफी था। अब दूसरे कई संगठन भी प्रदेश में दस्तक दे चुके हैं या दस्तक देने की तैयारी में है। आकास, भारत आदिवासी पार्टी, आजाद समाज पार्टी और ओबीसी महासभा भी तेजी से सक्रिय हो रही हैं। प्रीतम लोधी मामले के बाद से ओबीसी महासभा लगातार अपनी ताकत दिखा भी रही है। जयस की ताकत को तो अनदेखा किया ही नहीं जा सकता। यही वजह है कि ओबीसी महासभा और जयस के एक होने की खबर से ही दोनों दलों में हलचल मची है। कांग्रेस के लिए इत्मीनान की सिर्फ इतनी वजह है कि जयस के कर्ताधर्ता हीरालाल अलावा उसके टिकट से विधायक हैं। अपनी शादी के बाद दिए एक इंटरव्यू में ये साफ भी कर चुके हैं कि वो किसी कीमत पर बीजेपी का दामन थामने वाले नहीं है। लेकिन सियासत के बाजार में बारगेनिंग आम बात है। कब किसकी बोली बाजी मार जाए ये कहा नहीं जा सकता। वैसे अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए जयस भी बड़े कार्यक्रम करने में पीछे नहीं है। खबर है कि पीएम मोदी की मौजूदगी वाले दिन यानी 11 अक्टूबर को ही कांग्रेस और जयस मिलकर 2023 की रणनीति पर चर्चा करने वाले हैं। इसके बाद 20 अक्टूबर को फिर कुक्षी में जयस महापंचायत की तैयारी है। उधर बुंदेलखंड में प्रीतम लोधी के बहाने ओबीसी महासभा की रैली और सभाएं भी जारी हैं। बुंदेलखंड और चंबल के कुछ हिस्सों पर ओबीसी महासभा बीजेपी कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ सकती हैं। कुक्षी, सैलाना, झाबुआ, आलीराजपुर, मंडला, सिवनी जैसे क्षेत्रों में जयस खतरा बनी हुई है।
बीजेपी ने टंट्या भील और बिरसा मुंडा की जयंती मनाई
इन संगठनों की एंट्री और पिछले विधानसभा चुनाव में हुआ भारी नुकसान ही वो वजह है, जिसके चलते बीजेपी टंट्या भील और बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी आइकॉन्स की जयंती मनाने पर मजबूर हुई। अब तैयारी जयस और इस तरह के दलों में सेंधमारी की भी हो रही है। हीरालाल अलावा का ताजा बयान जाहिर कर ही रहा है कि राजनीति का ऊंट चुनाव से पहले कोई भी करवट ले सकता है। हर गुजरते दिन के साथ दिलचस्प हो रहे चुनावी समीकरणों के बीच ये तय माना जा रहा कि इन समीकरणों का सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश में कांग्रेस को ही उठाना होगा।
जयस किसके साथ ?
कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा अपनी शादी के दौरान सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ खूब झूमे। तस्वीरें देखकर उनसे सवाल भी हुआ कि क्या अब बीजेपी में जाने की तैयारी है। अलावा ने साफ कहा कि बीजेपी में जाने का उनका कोई इरादा नहीं है। एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने ये भी स्पष्ट कर दिया कि जो दल आदिवासियों का ज्यादा साथ देगा वो भी उसी का साथ देंगे। मतलब साफ है कि जयस सिर्फ कांग्रेस का ही साथ दे, ऐसा जरूरी नहीं है।
हीरालाल पर आरोप लगा चुके हैं व्यापम के व्हिसल ब्लोअर डॉ. आनंद राय
कुछ दिन पहले जयस संरक्षक अलावा पर आदिवासियों की सुध भूलकर सत्ता सुख भोगने का आरोप लगा चुके डॉ. आनंद राय ने भी बड़े दावे किए हैं। व्यापम मामले के व्हिसल ब्लोअर डॉ. राय ने अपने फेसबुक पोस्ट पर दावा किया है कि बीजेपी आदिवासियों के हिमायती बड़े संगठनों में बड़ी सेंधमारी की तैयारी में है। जीजीपी और गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है। हालांकि राय ने ये संशय भी जाहिर किया है कि गोंडवाना की 25 सीटों में से 10 सीटों पर भी इन दो दलों को बीजेपी से टिकट मिल जाए तो बड़ी बात है। जीजीपी के अलावा आकास के दो पदाधिकारियों को पश्चिमी मध्यप्रदेश से और गोंडवाना के दो रिटायर्ड आईएएस को महाकौशल से टिकिट देने की तैयारी है।
जयस के दो बड़े नेताओं को टिकट देने की तैयारी
बीजेपी अपनी माइक्रो रणनीति के तहत कोचिंग क्लासेस में पढ़ने वाले इस समुदाय के विद्यार्थियों के जरिए भी पैठ बनाने की कोशिश में हैं। सिकिल सेल स्क्रीनिंग कैंप, आवास भत्ता पोस्ट मीट्रिक छात्रवृत्ति फॉर्म के जरिए ऐसे छात्रों का नंबर जुगाड़ कर सरकार उन्हें अपनी स्कीम्स और योजनाओं की जानकारी दे रही है। जयस समर्थिक जनपद, जिला पंचायत सदस्यों को बीजेपी से जोड़ने की तैयारियां भी तेज हैं। जयस के ही दो बड़े नेताओं को कुक्षी और सैलाना से टिकट देने की तैयारी है। बीजेपी की पूरी कोशिश ये नजर आती है कि ये संगठन उसके साथ न हो सके तो कम से कम बिखर जाए। क्योंकि वोट बैंक जितना बिखरा हुआ होगा बीजेपी को उतना ही फायदा होगा जबकि कांग्रेस को उतना ही नुकसान। बीजेपी फायदे में इसलिए है कि उसका कोर वोटर ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत, किरार, पाटीदार, जाट और यादव उसके साथ है। चुनौती आदिवासी समुदाय की एकजुटता और वोट की ताकत को साधने की है।
मध्यप्रदेश की 84 सीटों पर आदिवासी वोटर्स का प्रभाव
मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों की संख्या 47 है। जबकि 84 सीटों पर आदिवासी वोटर्स का प्रभाव है। प्रदेश में आदिवासियों की आबादी दो करोड़ के लगभग है और यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस आदिवासी वोट हाथ से नहीं जाने देना चाहतीं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इन्हीं 47 सीटों में से 30 सीटों पर कब्जा जमाया था। 2013 के चुनाव में यहां कि 31 सीटें जीतने वाली बीजेपी पिछले चुनाव में 16 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। अब जयस जैसे संगठनों के बूते कांग्रेस की कोशिश है कि वो इन सीटों पर जीत बरकरार रख सके। इन्हीं सीटों को हथियाने के लिए बीजेपी में जनजातीय गौरव दिवस जैसे कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। बाजी वो दल मारेगा जो आदिवासी समुदाय की कुछ मांगों को पूरा करने के साथ ही उनके बीच पकड़ रखने वाले दलों को प्रभावित करने में कामयाब होता है।
आदिवासियों की कुछ मांग
- संविधान की पांचवीं अनुसूची की अधिसूचना जारी कर 89 ट्राइबल ब्लॉकों में पांचवीं अनुसूची का पालन
जयस इन मांगों को उठाते हुए सदस्यता अभियान चला ही रही है। कांग्रेस फिलहाल इस रणनीति में पिछड़ी हुई है या फिर वेट एंड वॉच की स्थिति में है।
कॉन्फिडेंस में आम आदमी पार्टी
इन सभी दल या संगठनों के बीच आम आदमी पार्टी को नहीं भुलाया जा सकता। दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बनाने के बाद आप फुल कॉन्फिडेंस में है। स्थानीय चुनाव के नतीजों ने भी आप की दिलचस्पी मध्यप्रदेश में बढ़ा दी है। आप को वैसे तो बीजेपी का विकल्प कहा जाने लगा है लेकिन हकीकत ये है कि जो वोट बीजेपी से कटकर कांग्रेस की झोली में जाने चाहिए थे, आप उन वोटों को झटक रही है।
किसका साथ देंगे मध्यप्रदेश के आदिवासी
आने वाले चुनाव से पहले कांग्रेस को एक नई कई चुनौतियों का सामना करना है। जो खतरा सबसे बड़ा है वो ये कि जिन दलों के भरोसे कांग्रेस आदिवासी सीटों की जीत की आस लगाए बैठी है। वो दल 2023 में किसके साथ होंगे। इससे इनकार नहीं कि सत्ता की चाबी इन्हीं दलों के पास है और चुनाव में किंगमेकर भी यही दल होने जा रहे हैं। अब कांग्रेस और बीजेपी की रणनीति तय करेगी कि इन संगठनों से सत्ता की चाबी लेकर कौन अपनी जेब में डाल पाता है।