Bhopal. मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव का ऐलान हो चुका है। तीन चरण में चुनाव होंगे। पंचायत चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह पर नहीं होते लेकिन राजनीतिक समीकरण के हिसाब से ये चुनाव अहम माने जाते हैं। सलिए चुनाव का ऐलान होते ही बीजेपी और कांग्रेस चुनावी मोड में आ गए हैं। आखिरकार पंचायत चुनाव को दोनों पार्टियां इतनी सीरियसली क्यों ले रही हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव पर इन चुनाव के नतीजों का क्या असर होगा और क्यों बीजेपी—कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा अपने समर्थकों को पंचायत के पदों पर बैठाने की कोशिश करती हैं। ये हम आपको समझाने की कोशिश करते हैं इस रिपोर्ट में।
पंचायत चुनावों की तारीखों का ऐलान
मप्र में पंचायत चुनाव का बिगुल बज चुका है। और इसी के साथ राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ गई है। बीजेपी ने तो चुनाव के ऐलान के आधे घंटे के भीतर चुनाव कार्यालय का उद्घाटन कर दिया और उसके आधे घंटे बाद चुनाव प्रबंध समिति की बैठक लेकर रणनीति बनाना भी शुरू कर दी। बीजेपी का पूरा फोकस रहेगा कि अच्छे लोग और पार्टी के समर्थित जनप्रतिनिधि चुनकर आए ताकि वो सरकार की योजनाओं को जमीन पर उतार सकें यानी बीजेपी की कोशिश रहेगी कि पंचायत में ज्यादा से ज्यादा उनके समर्थक चुने जाएं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने बैठक कर पार्टी नेताओं को पंचायत चुनाव में जीत का संकल्प दिलाया। दूसरी तरफ जिस समय पंचायत चुनाव का ऐलान हो रहा था कांग्रेस के कार्यकर्ता पंडित नेहरू की पुण्यतिथि के कार्यक्रम को लेकर पार्टी कार्यालय में मौजूद थे। और चुनाव के ऐलान के साथ ही पार्टी नेता सक्रिय हो गए। दिग्विजय सिंह ने कहा कि पार्टी चुनाव के लिए तैयार है।
ये है बीजेपी की जीत की रणनीति
पंचायतों को फतह करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस रणनीति बनाने में जुट गए हैं। बीजेपी की बात करें तो बीजेपी ने सरकार के मार्फत पंचायतों के पुरस्कार की रणनीति बना दी है। पुरस्कार उन पंचायतों को मिलेगा जहां निर्विरोध तरीके से चुनाव संपन्न होंगे। पुरस्कार की राशि भी अच्छी खासी है। यदि पंचायत में सरपंच का निर्वाचन निर्विरोध तरीके से होता है तो पंचायत को 5 लाख रु. प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यदि लगातार दो बार से निर्विरोध चुनाव हो रहा है तो 7 लाख रु, पूरी पंचायत के प्रतिनिधि निर्विरोध चुने जाते हैं तो 7 लाख रु. और यदि पूरी पंचायत में महिलाएं चुनी जाती हैं तो 15 लाख रु.साथ ही सरकार ने पंचायत पुरस्कार का भी ऐलान कर दिया है। दरअसल इसके पीछे रणनीति है कि विधायक और स्थानीय जनप्रतिनिधि इस योजना का प्रचार करें। लोगों को बताएं कि इसका लाभ क्या होगा और फिर अपने समर्थक नेता को पंचायत की कमान सौंप सकें। इसके लिए पार्टी ने बकायदा पंचायत चुनाव संचालन समिति बनाई है जिसमें विधायकों को शामिल किया गया है। इन विधायकों को दो दो जिलों की जिम्मेदारी दी गई है। ये विधायक पंचायत स्तर तक जाकर समन्वय बनाकर बीजेपी समर्थित उम्मीदवार को सरपंच बनाने की रणनीति तैयार करेंगे। संचालन समिति में शामिल विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया कहते हैं कि समन्वय के साथ उम्मीदवारों का चयन हो इसकी कोशिश की जाएगी।
ये है कांग्रेस की जीत की रणनीति
ये तो हुई बीजेपी की रणनीति अब बताते हैं कि कांग्रेस क्या करने जा रही है। कांग्रेस ने भी अपने समर्थकों को प्रतिनिधित्व देने के लिए गांधी चौपाल करने का फैसला किया है। गांधी चौपाल के जरिए कांग्रेस की योजना गांव गांव तक दस्तक देने की है। कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि गांधी चौपाल में कांग्रेस के नेता दरी पर बैठेंगे और किसानों और ग्रामीणों की समस्याओं की बात करेंगे। कांग्रेस की कोशिश गांधी दर्शन के जरिए गांवों में अपना खोया जनाधार बढ़ाना है। पंचायत प्रकोष्ठ के कार्यक्रम में कमलनाथ कह भी चुके हैं कि पहले गांव गांव कांग्रेस का होता था अब राजनीति ऐसी बदली है कि घर में ही अलग अलग पार्टी को सपोर्ट करने वाले लोग होते हैं इसलिए गांव तक पहुंचना जरूरी है।
ये है पंचायत चुनाव का गणित
ये चुनाव मप्र की करीब 180 विधानसभा सीटों पर हो रहे हैं। यानी मप्र की करीब 78 फीसदी सीटें। 180 सीटों का ये आंकड़ा ऐसा निकलता है कि हर जिले में शहरी और ग्रामीण विधानसभा सीटें होती है। शहरी सीटों को छोड़ दिया जाए तो ऐसी सीटें जो ग्रामीण इलाकों में आती है वो करीब 180 होती है। भोपाल जिले की सात विधानसभा सीटें है, उसमें से 6 सीटें शहरी इलाके की है, और एक सीट बैरसिया ग्रामीण इलाके में आती है। इसी तरह से हर जिले में सीटें ग्रामीण और शहरी इलाकों में बंटी हुई है। निर्वाचन आयोग ने भी तीन चरणों में जो चुनाव का ऐलान किया है वो इसी आधार पर किया है। 5 जिलों में चुनाव एक चरण में होगा क्योंकि यहां शहरी इलाका ज्यादा है। 8 जिलों का चुनाव दो चरण में होगा यहां शहरी और ग्रामीण इलाका बराबर बंटा हुआ है। और 39 जिलों का चुनाव तीन चरणों में होगा क्योंकि ये ग्रामीण इलाका ज्यादा है। इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल वोटरों की संख्या थी 5 करोड़ 4 लाख 95 हजार 251 और पंचायत चुनाव में कुल वोटरों की संख्या है। 3 करोड़ 93 लाख 78 हजार 502। यानी विधानसभा चुनाव में जितने वोटर है उसमें करीब 78 फीसदी वोटर्स पंचायत चुनाव में हिस्सा लेंगे।