मनोज जैन, भिंड. मेरा बजट-मेरा ऑडिट की तीसरी कड़ी में आज हम भिंड की बात कर रहे हैं, जहां लाखों की लागत से बनाए ऑडिटोरियम को नगर पालिका ने ही कचरा गाड़ी घर बना दिया। ऑडिटोरियम का निर्माण 25 सितंबर 2003 से शुरू हुआ और करीब साढ़े 9 साल बाद 15 अप्रैल 2013 को इसे लोकार्पित किया गया। ऑडिटोरियम का निर्माण 56 लाख 10 हजार में किया गया था। जब यह ऑडिटोरियम बनाया गया थ, तब यह दावा किया गया था कि यह सामुदायिक भवन आम जनता को रियायती दरों पर शादी और अन्य समारोहों के लिए उपलब्ध रहेगा। साथ ही इसमें राज्यस्तरीय सेमिनार, साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियां होगी। लेकिन वर्तमान में इस ऑडिटोरियम में नगर पालिका ने अपने कर्मचारियों के लिए आवास बना दिया है। और तो और, नगर पालिका की कचरा गाड़ियां इसी ऑडिटोरियम में रखी जाती हैं।
उखड़ रहा फर्श, गंदगी का अंबार: द सूत्र ने मामले की पड़ताल की। जब हमारी टीम ऑडिटोरियम पहुंची तो देखा कि वहां का पूरा फर्श ही उखड़ चुका है। यही नहीं, ऑडिटोरियम के चारों ओर गंदगी ही गंदगी है। जगह-जगह पानी भरे रहने से कीचड़ जमा हो गई है। हालांकि, अब भी मुख्य नगरपालिका अधिकारी सुरेंद्र शर्मा ये दावा करते नहीं थक रहे कि अब ऑडिटोरियम को भव्य बनाने के लिए काम किया जा रहा है। हालांकि, वे वर्तमान दुर्दशा के बारे में कुछ भी बोलने से इनकार कर देते हैं।
जमीन को लेकर शुरू से विवाद: ऑडिटोरियम जिस जगह पर बना है, वहां की जमीन को लेकर शुरू से ही विवाद है। पहले इस पर तत्कालीन सदर द्वारा वक्फ बोर्ड की भूमि का कब्जा बताया गया। बाद में यह भी चर्चा में रही कि यह भवन सुदर्शन स्वरूप मिश्र द्वारा नगर पालिका को मेला लगाने के लिए दी गई थी, जिस पर स्थाई निर्माण करके ऑडिटोरियम बनाया गया। 2003 में तत्कालीन पर्यावरण एवं आवास मंत्री चौधरी राकेश सिंह के प्रयासों से ही इस ऑडिटोरियम का निर्माण किया गया था। पर जब इसकी दुर्दशा को लेकर पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह से इस संबंध में बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने भवन के बारे में बात करने से साफ मना कर दिया।
10 साल में नहीं हुआ कोई कार्यक्रम: जिले के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुखदेव सिंह सेंगर ने बताया कि साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से भिंड बहुत समृद्ध रहा है। ऑडिटोरियम का सही मायने में उपयोग होता तो बहुत अच्छा होता। स्थानीय नागरिक राकेश सिंह कुशवाह ने कहा कि बीते 10 साल से आज तक तो यहां कोई गतिविधि संचालित होती नहीं देखी। ऑडिटोरियम को कबाड़ घर बना कर रख दिया गया है।
सवाल ये है कि जनता की गाढ़ी कमाई को साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए पानी की तरह बहाया गया और चीजों का सही इस्तेमाल ही नहीं हुआ। इसका जिम्मेदार कौन है? जिस काम के लिए यह भवन बना था, उन कार्यक्रमों को किया जाता तो बहुत सारे युवाओं को रंगमंच के क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिलता।