BHOPAL: 'उत्तम दवाई कम दाम - स्वस्थ भारत की पहचान' - के विज़न और लोगों को सस्ती दर पर दवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू कि गई महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना (PMBJP) का भोपाल AIIMS में जमकर मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है। दरअसल, AIIMS में इलाज़ करा रहे मरीज़ो से अस्पताल परिसर में संचालित जन औषधि केंद्र के बारे में मिली शिकायत के बाद द सूत्र ने पड़ताल की। इसमें यह सामने आया की जन औषधि केंद्र संचालक द्वारा कभी मरीज़ों कि जरूरतें पूरी करने के बहाने से या कभी स्टॉक न होने के बहाने से सरकार द्वारा तय कि गई जन औषधि परियोजना के लोगो वाली जेनेरिक दवा ना बेचकर अन्य जेनेरिक दवा बेचीं जा रही है और मरीजों से ज्यादा रकम ली जा रही है। बड़ी बात यह है की यह सारा फर्जीवाड़ा अस्पताल प्रबंधन कि नाक के नीचे किया जा रहा है और अस्पताल प्रबंधन को इस बारे में कोई हवा ही नहीं है।
नियम: जन औषधि केंद्र दूसरी जेनरिक दवा नहीं बेच सकते
नियमानुसार प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर तय की गई जेनेरिक दवाओं के अलावा कोई दूसरी जेनरिक दवाएं नहीं बेची जा सकती हैं। जन औषधि केंद्रों को सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को भेजा जाता है। हर केंद्र पर दवा की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार ने राज्य स्तर पर स्टोर बनाया है। उनके यहां की हर दवा पर प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना का लोगो लगा रहता है। परियोजना की जेनरिक दवाओं की MRP पहले से फिक्स कर दी गई है।
फिर क्यों बेची जा रही प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर लोगो-रहित अन्य जेनेरिक दवा
दरअसल ये सारा खेल सिर्फ इसलिए किया जा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों पर मिलने वाली जेनेरिक दवाओं और अन्य जेनेरिक दवाओं में मूल्य में अंतर होता है। अन्य जेनेरिक दवाएं जन औषधि वाली जेनेरिक दवाओं से महंगी बिकती हैं। इसे ऐसे समझिये: प्रधानमंत्री जन औषधि की जेनेरिक दवाओं में लिखे गए मूल्य पर कोई डिस्काउंट नहीं है, क्योंकि इन दवाओं में लिखे MRP पहले से कम कर ही प्रिंट किए गए हैं और यह दवा पहले से ही सस्ते दर पर उपलब्ध करायी जाती है। जबकि दूसरे सामान्य जेनरिक दवाओं के MRP में 85 प्रतिशत तक अधिक मूल्य लिखा होता है। और दवा में जन औषधि परियोजना का लोगो नहीं लगे रहने के कारण इसे गलत तरीके से प्रिंट दर पर ही बेचा जाता है और ग्राहकों से ज्यादा कीमत वसूली जाती है।
सामान्य जेनरिक दवाओं के अधिक मूल्य को कम करने के लिए कोई खास गाइडलाइन नहीं
सामान्य जेनरिक दवाओं में लिखे अधिक मूल्य को कम करने के लिए कोई खास गाइडलाइन ही नहीं है। ड्रग कंट्रोल विभाग की ओर से पीएम जन औषधि को छोड़ किसी अन्य जेनरिक दवाओं की पहचान के लिए कोई खास लोगो तक नहीं है। इन दवाओं को कई जगहों पर लिखे मूल्य पर ही बेच दिया जाता है। ग्राहकों को यह पता ही नहीं चलता कि जो दवा वे ले रहे हैं वो जेनरिक है या नॉन-जेनरिक। इसके लिए इन दवाओं में लिखे तथ्यों को बारीकी से पढ़ने के बाद ही यह पता चल सकेगा कि यह जेनरिक दवा है या नहीं। जबकि केंद्र द्वारा दी जाने वाली जन औषधि परियोजना की दवा खरीदने में यह समस्या नहीं दिखती।
अधिकारियों की अनुमति से ही ब्रांडेड दवा बेच रहा हूं: केंद्र संचालक का सफ़ेद झूठ
द सूत्र से बात में जन औषधि केंद्र संचालक रामचंद्र ने बताया की वह अस्पताल प्रबंधन से अनुमति लेने के बाद ही अन्य जेनेरिक दवाएं बेच रहे हैं। "ऐसा करने के लिए मुझे अनुमति मिली हुई है। प्रधानमंत्री जन औषधि के साथ ही अन्य जेनेरिक भी रखा हूं। अस्पताल के लोगो की जरूरतें पूरा करना भी जरुरी है।" हालांकि जब उनसे अनुमति पत्र दिखाने के लिए कहा गया तो उन्होंने वर्ष 2018 का एक कागज़ दिखाया जिसमें उन्होंने प्रबंधन से ऐसी अनुमति मांगी थी। इस कागज में बीपीपीआई यानी ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया के सीईओ विप्लव चटर्जी के साइन है और इसमें उन्होंने लिखा है कि बीपीपीआई के ये नियम है यदि इनसे संचालक सहमत है तो आगे की कार्रवाई की जाएगी। लेकिन ये आदेश नहीं है केवल पत्राचार है और इसी पत्राचार के आधार पर संचालक ने मान लिया है कि उन्हें अनुमति मिल चुकी है। जबकि ऐसा है नहीं।
हमारा केंद्र पर सीधा कन्ट्रोल नहीं, ड्रग कंट्रोलर को शिकायत करें: मनीषा श्रीवास्तव, मेडिकल अधीक्षक, AIIMS
जब द सूत्र ने यह शिकायत एम्स अस्पताल की मेडिकल अधीक्षक मनीषा श्रीवास्तव ने कहा की उन्हें इस बात कि अभी तक कोई जानकारी नहीं है। उनका कहना था की वह प्रबंधन द्वारा सीधे कण्ट्रोल नाजी किया जाता हैं एवं केंद्र द्वारा संचालित हैं। उन्होंने इस बारे में लिखित में शिकायत करने के लिए बोल दिया और कहा की साथ में ड्रग कंट्रोलर को शिकायत करें। पर यहाँ पर सवाल यह हैं की क्या सच में अस्पताल को अपने ही परिसर में चल रही जन औषधि केंद्र के फर्ज़ीवाड़े के बारे में जानकारी नहीं हैं या ऐसा सिर्फ दिखाया जा रहा हैं। क्योकि विश्वस्त सूत्रों के अनुसार खुद अस्पताल की डॉक्टर्स खुद इस बात से परेशान हैं।
केंद्र संचालकों को सरकार पहले से ही दे रही काफी रियायतें
- पीएमबीजेपी केंद्रों का बिक्री मार्जिन/आय MRP (करों को छोड़कर) का 20% है, जैसा कि उत्पाद पर उल्लेख किया है।
प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र क्या है, कब शुरू हुआ और किस कारणों से शुरू किये गए थे?
- भारत में एक बड़ा तबका ऐसा है जो ख़राब आर्थिक स्थिति के चलते और महंगी ब्रांडेड दवाइयों के चलते बीमारी में सही इलाज़ नहीं करा पाते। इसी बात को ध्यान में रखकर नवंबर 2008 में जन औषधि योजना शुरू की गई थी। सरकार ने सितम्बर 2015 में इस योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना (PMBJP) कर दिया।
क्या होती है जेनेरिक दवा
आम तौर पर सभी दवाएं एक तरह का "केमिकल सॉल्ट' होती हैं। इन्हें शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है। जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से जानी जाती है। जैसे- दर्द और बुखार में काम आने वाले पेरासिटामोल साल्ट को कोई कंपनी इसी नाम से बेचे तो उसे जेनेरिक दवा कहेंगे। वहीं, जब इसे किसी ब्रांड (जैसे- क्रोसिन) के नाम से बेचा जाता है तो यह उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहलाती है।
सरकार जो भी योजनाएं बनाती है वो जनता के लिए बनाती है लेकिन आमतौर पर योजनाएं आम जनता तक पहुंच ही नहीं पाती। सरकार से जनता के बीच पहुंचने में एक बड़ा सरकारी तंत्र होता है जहां गड़बड़ियां होती है।अभी प्रधानमंत्री यूरोप के दौरे पर है और बर्लिन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के उस बयान का जिक्र किया कि केंद्र सरकार 1 रु. भेजती है और 15 पैसे जनता तक पहुंचते है। एम्स के जन औषधि केंद्र में हो रहा फर्जीवाड़ा भी प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के असल मकसद कि गंभीर बीमारियों की दवाएं आम लोगों को सस्ती मिले.को नाकामयाब करता है।