भोपाल BRTS प्रोजेक्ट पर 450 करोड़ खर्च, 10 साल में ही तोड़-फोड़ से 74Cr पानी में

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Aashish Vishwakarma
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भोपाल BRTS प्रोजेक्ट पर 450 करोड़ खर्च, 10 साल में ही तोड़-फोड़ से 74Cr पानी में

राहुल शर्मा, भोपाल। राजधानी का बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम यानी BRTS बेकाम का साबित हो चुका है। प्रोजेक्ट पर करीब 450 करोड़ खर्च हो चुके हैं। इतना ही नहीं, 10 साल में ही तोड़-फोड़ पर 74 करोड़ पानी में चले गए।





क्या हुआ तेरा वादा: सरकार जब विकास का रोडमैप तैयार करती है तो अफसर उसे अमलीजामा पहनाने से पहले कम से कम 20-25 साल का विजन तैयार करते हैं। यानी उस प्रोजेक्ट से 25 साल तक क्या फायदे होंगे। इन सालों में प्रोजेक्ट के संचालन में कहीं कोई अड़चन तो नहीं आएगी, लेकिन राजधानी में सरकार और तमाम आला अफसरों की नाक के नीचे एक गैर-जरूरी प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए फूंक दिए गए और अब उसी रूट पर दूसरे प्रोजेक्ट आने से करोड़ों का नुकसान हुआ। मेरा बजट-मेरा ऑडिट की आज की कड़ी में हम भोपाल के बीआरटीएस की बात कर रहे हैं। ये समझिए कि कैसे 74 करोड़ 10 साल के अंदर बर्बाद हो गए। 





बात 13 साल पुरानी है: बीआरटीएस 2009 में बनना शुरू हुआ था। इससे पहले ही लालघाटी पर ओवरब्रिज पर प्रस्ताव (2004) और भोपाल में मेट्रो प्रोजेक्ट पर चर्चा (2007) में शुरू हो गई थी। ये बात और है कि कुछ कारणों से ये दोनो ही प्रोजेक्ट बहुत देरी से शुरू हुए, लेकिन इन्हें तो बनना ही था। इसके बावजूद 2011 में लालघाटी चौराहा और वीर सावरकर सेतु से बोर्ड ऑफिस चौराहे तक बीआरटीएस की डेडीकेट लेन बना दी गई। बीआरटीएस की शुरुआत 2011 में शहर में 247 करोड़ रुपए से हुई थी। इस प्रोजेक्ट में अब तक 450 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। यानी 10 सालों में विभिन्न एजेंसियां ने 203 करोड़ के आसपास मेंटेनेंस पर खर्च कर दिया। बीआरटीएस कॉरिडोर के निर्माण के समय लागत 1 किमी पर 12 करोड़ आई थी। इस हिसाब से लालघाटी ओवरब्रिज के निर्माण के लिए 500 मीटर कॉरिडोर तोड़ा गया, जिसकी लागत 6 करोड़ और मेंटेनेंस पर 1 करोड़ खर्च हुए थे। इसी तरह वीर सावरकर सेतु से बोर्ड ऑफिस चौराहे तक 3.6 किमी कॉरिडोर मेट्रो प्रोजेक्ट और पीडब्ल्यूडी के फ्लाईओवर ब्रिज प्रोजेक्ट के कारण खत्म ही हो गया। इसके निर्माण और मेंटेनेंस पर 67 करोड़ खर्च हुए थे।  





पुअर एग्जीक्यूशन ऑफ ए बेड कॉन्सेप्ट: यह बात सही है कि बीआरटीएस कॉरिडोर के निर्माण के समय ना तो लालघाटी के ओवरब्रिज और ना ही मेट्रो प्रोजेक्ट की कोई ड्रॉइंग डिजाइन सामने आई थी। लेकिन यह भी उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि इन प्रोजेक्ट पर चर्चा शुरू हो गई थी। यानी मेट्रो लाइन कहीं से तो गुजारते ही, लालघाटी पर ओवरब्रिज भी कहीं से तो बनना ही था, फिर भी इन्हीं रूट पर कॉरिडोर बनाने में करोड़ों फूंक दिए गए। नतीजा... 10 साल के अंदर ही 74 करोड़ बर्बाद। आर्किटेक्ट और रिटायर्ड वैल्यूअर प्रदीप सक्सेना इसे पुअर एग्जीक्यूशन ऑफ ए बेड कॉन्शेप्ट बताते हैं।





बीआरटीएस का क्या उद्देश्य और क्या स्थिति: बीआरटीएस हमेशा विवादों में रहा। वैसे तो इसका मकसद पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिए कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचना था, ताकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा मिल सके, पर ये हो नहीं पाया। घर से कॉरिडोर तक पहुंचने के लिए कोई वाहन सुविधा नहीं है। ऐसे में एक-दो किलोमीटर दूर रहने वाला व्यक्ति कैसे बस में सफर करेगा। ऐसे लोग जो अपने वाहनों से चलते हैं, वे कॉरिडोर में चलने वाली बसों में शिफ्ट हो सकते थे, लेकिन पूरी सुविधाएं नहीं होने से शिफ्ट नहीं हुए। बस स्टॉप पर लगाई गई टिकट मशीनें तक काम नहीं कर रही हैं। डिस्प्ले में बसों के आने-जाने की जानकारी भी नहीं मिलती।





उपयोगी नहीं बीआरटीएस: भोपाल के बीआरटीएस को लेकर द सूत्र ने दो एक्सपर्ट आर्किटेक्ट और वैल्यूअर प्रदीप सक्सेना और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (T&CP) के रिटायर्ड अधिकारी वीपी कुलश्रेष्ठ से बात की। एक्सपर्ट की राय में बीआरटीएस भोपाल जैसे शहरों में सफल नहीं है। प्रदीप सक्सेना ने कहा कि बीआरटीएस के टोटल प्लान को ही एग्जीक्यूट नहीं किया, सिर्फ कुछ जगह डेडीकेट लेन बनाने से क्या होगा। बीआरटीएस तक पहुंचने के लिए जो डिस्टेंस चाहिए, वह 450 मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए। आपके घर से सपोर्ट में कोई ट्रांसपोर्ट सिस्टम लागू करना था, जो आपको कॉरिडोर तक ले जाए। भोपाल में तो कॉरिडोर तोड़ना ही होगा। ये इनटोटेलिटी प्लान है, सिर्फ ट्रांसपोर्ट को ध्यान रखा गया, जबकि यह मास्टर प्लान में भी नहीं था। कुलश्रेष्ठ ने कहा कि भोपाल-इंदौर बीआरटीएस में एक रूट बना दिया, पर उस रूट पर उतरकर दूसरी किसी जगह जाना है तो आपको दूसरा साधन लेना पड़ेगा। मतलब यह पूरा नहीं है। जिन देशों में यह सक्सेस है, वहां इसे पूरा लिया गया है। 





कॉरिडोर का व्यापारी शुरू से कर रहे विरोध: बैरागढ़ में बीआरटीएस कॉरिडोर बाजार से निकला, जिसके कारण वहां बाजार दो भागों में बंट गया। व्यापारी यहां शुरू से ही कॉरिडोर का विरोध कर उसे हटाने की मांग करते हैं। लोगों का कहना है कि कॉरिडोर को हटाकर सड़कें चौड़ी कर देनी चाहिए। कट प्वाइंट पर सुरक्षा के कोई उपाय नहीं होने से आए दिन दुर्घटनाएं होती है, जिससे कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। कमलनाथ सरकार के समय तात्कालीन मंत्री जयवर्धन सिंह ने इसके रिव्यू के आदेश भी दिए थे। 





कॉरिडोर के कारण लगता है जाम: शहर में जहां-जहां भी कॉरिडोर है, वहां हर रोज जाम की स्थिति बनती है। होशंगाबाद रोड और बैरागढ़ में तो यह रोज की परेशानी है। ज्यादा जाम होने से अन्य वाहन भी कॉरिडोर से होकर ही निकलकर जाते हैं। दिन में भी कई वाहन इन्हीं कॉरिडोर से होकर गुजरते हैं, जिसके कारण इसके होने या न होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। 





जिसके अस्तित्व पर ही सवाल, उस पर 26.33 करोड़ का मेंटेनेंस: राजधानी में बदहाल हो चुके बीआरटीएस कॉरिडोर को एक बार फिर जीवन दान देने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इसके लिए मिसरोद से लेकर बैरागढ़ तक 24 किलोमीटर के बीआरटीएस रूट का मेंटेनेंस और अपग्रेडेशन किया जाएगा। इसके लिए नगर निगम ने 26.33 करोड़ रुपए खर्च करेगा। इस दौरान बीआरटीएस रूट में रानी कमलापति स्टेशन से लेकर एमपी नगर और रोशनपुरा चौराहे से लेकर कमला पार्क तक के रूट को नए सिरे से विकसित किया जाए। यहां सवाल यह है कि जिस कॉरिडोर के अस्तित्व को लेकर ही सवाल खड़े हो रहे हैं, उस पर 26.33 करोड़ का मरहम बेवजह क्यों लगाया जा रहा है। इस संबंध में नगर निगम कमिश्नर वीएस चौधरी ने ऑन कैमरा तो कुछ नहीं कहा, पर इतना जरूर स्पष्ट कर दिया कि कॉरिडोर नहीं टूटेगा और निगम इसके मेंटेनेंस पर दोबारा करोड़ों खर्च करेगा। मतलब जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा एक बार फिर बर्बाद किया जाएगा।



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