भोपाल की बेटी यूक्रेन में 500 छात्र को भोजन करा रही, फीस के पैसों से बनाया किचन

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भोपाल की बेटी यूक्रेन में 500 छात्र को भोजन करा रही, फीस के पैसों से बनाया किचन

भोपाल. मध्यप्रदेश की बेटी यूक्रेन (Ukraine) में भारतीय छात्रों को हर संभव मदद पहुंचा रही है। भोपाल शहर की रहने वाली आर्या श्रीवास्तव (Arya Srivastava) इस समय यूक्रेन में मेडीकल की पढ़ाई करतीं हैं। आर्या दो महीने पहले फिजियोथैरेपी का कोर्स करने डनिप्रो (Dnipro) गई थीं। इस दौरान रूस (Russia) और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हो गया। इस कारण भारी संख्या में भारतीय छात्र वहां पर फंस गए। ऐसे में आर्या ने भारतीय छात्रों का एक वॉट्सएप ग्रुप बनाया और मिलकर हालातों से लड़ाई शुरू की।



आर्या ने इसलिए शुरू किया काम: रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। यूक्रेन की मदद करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समाज ने वैसे कदम नहीं उठाए जैसे की यूक्रेन को उम्मीद थी। यही हाल भारत का है। यूक्रेन के नागरिकों को भारत से मदद की आशा थी। लेकिन उम्मीद के मुताबिक सहायता नहीं मिलने से यूक्रेनी समाज भारतीय छात्रों के साथ भेदभाव शुरू कर दिया है। यूक्रेन के डनिप्रो शहर में 500 स्टूडेंट 8 दिन से घरों और बंकरों में कैद हैं। इनमें मध्य प्रदेश के 20-25 स्टूडेंट हैं। इन छात्रों को यूक्रेन सरकार सही से मदद नहीं पहुंचा पा रही है। इसके साथ ही स्थानीय समाज भारतीयों से पक्षपात कर रहा है। इन परिस्थितियों में भारतीयों ने एक-दूसरे की मदद करने के लिए एक नेटवर्क तैयार किया है, जिसकी एडमिन भोपाल की आर्या हैं। ग्रुप का नाम ‘इंडियन स्टूडेंट्स इन डनिप्रो’ है।



फीस के पैसों से की मदद: यूक्रेन में पढ़ने वाले छात्रों को शैक्षणिक सत्र के अनुसार मार्च में फीस जमा करनी होती है। लेकिन फीस जमा करने से पहले युद्ध शुरू हो गया। इस कारण ज्यादातर छात्रों के पास फीस का पैसा रखा है। यह लोग इन्हीं पैसे से अपना पालन-पोषण कर रहे हैं। आर्या के मुताबिक भारतीय छात्रों के पास डेढ़ से दो लाख रुपए हैं। पहले तो खाने-पीने का इंतजाम था, लेकिन समस्या 4 दिन पहले शुरू हुई क्योंकि खाने का स्टॉक खत्म होने लगा।



ऐसे करते हैं मदद: आर्या ने सबसे पहले भारतीयों का एक ग्रुप बनाया। इसके बाद ऐसे 20 लड़कों का चयन किया जिनके पास गाड़ी है। ये लोग अलग-अलग जगहों से खाने का सामान लाते हैं। इसके लिए कुछ लोग पैसों का इंतजाम करने में मदद करते हैं, तो कुछ लोग पैसे देते हैं। रोजाना दस किचनों में खाना बनाया जाता है। कुछ लोग खाना बनाने में मदद करते हैं। उन्हीं में से कुछ लोग यह पता लगाते हैं कि कहां खाने की जरूरत है और कितने लोगों के लिए। इसके बाद एक टीम खाना पहुंचाने का काम करती हैं।


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