अम्बुज माहेश्वरी, Raisen. 1 जून 2022 को भोपाल के भारत विलय के 73 साल पूरे हुए। रायसेन के बौरास नर्मदा तट पर युवाओं के बहे रक्त से भोपाल विलीनीकरण के आंदोलन में जो उबाल आया वो भोपाल की आजादी का अहम कारण बना था। हर साल मकर संक्रांति और 1 जून भोपाल विलय दिवस पर इन अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। आजाद भारत में तिरंगा फहराने पर युवाओं को पुलिस की गोलियों का सामना करना पड़ा था।
जलियांवाला बाग की तरह गोलीकांड
ये सुनकर आपको आश्चर्य जरूर होगा लेकिन जलियांवाला बाग गोलीकांड की तरह ही एक गोलीकांड रायसेन के बौरास नर्मदा तट से जुड़ा हुआ है। जहां 14 जनवरी 1949 को आजाद भारत में गुलाम भोपाल के दौर में मकर संक्रांति मेले के दौरान युवाओं की एक टोली वंदे मातरम गाते हुए तिरंगा फहराने आगे बढ़ रही थी तब नवाब भोपाल के इशारे पर थानेदार जाफर अली खान ने बंदूक से अंधाधुंध गोलियां चलाईं। चार युवा मां नर्मदा की गोद में ही शहीद हो गए, एक गम्भीर रूप से घायल हुआ लेकिन किसी ने भी हाथ से तिरंगा नहीं छूटने दिया। इस गोलीकांड से नवाबकाल की अंतिम गिनती शुरू हुई। अगले 4 महीने देश भर में चले विरोध प्रदर्शन के बाद नवाब को सत्ता से पकड़ ढीली हो गई और उसे भोपाल के भारत में विलय समझौते को स्वीकार करना पड़ा।
आंदोलन में ऊर्जा प्रवाहित करने हाथों में तिरंगा लेकर चल रहे थे युवक
भोपाल में भाई रतन कुमार गुप्ता के नेतृत्व में विलीनीकरण आंदोलन चल रहा था। अनेक जगह शांतिपूर्वक आंदोलन करके भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था। 14 जनवरी 1949 को रायसेन के बौरास में नर्मदा तट पर मकर सक्रांति का मेला भरा था। यहां तिरंगा फहराने का निर्णय लिया और कई युवा तिरंगा फहराने आगे आए, थानेदार जाफर अली खान ने गोलियां चलाना शुरू कर दिया। चार युवा छोटे लाल, विशाल सिंह, धन सिंह और मंगल सिंह वहीं शहीद हो गए लेकिन तिरंगा हाथ से नहीं छोड़ा, कालू राम की इलाज के दौरान बाद में मौत हो गई। घनश्याम दास मालानी और अनेक साथी गिरफ्तार कर लिए गए। मालानी परिवार के पास कई वर्ष पहले तक यह रक्तरंजित तिरंगा सुरक्षित रहा था।
गोलीकांड से नवाबकाल की अंतिम गिनती हो गई थी शुरू
15 अगस्त 1947 में देश आजाद होने के बाद भी भोपाल के आजाद न होने से विलीनीकरण आंदोलन चल रहे थे। बौरास में हुए इस घटनाक्रम ने आंदोलन की आग को देश भर में फैला दिया भोपाल नवाब के खिलाफ तीखे विरोध प्रदर्शन हुए। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने सचिव वीपी मेनन को भोपाल भेजा। नवाब से कहा गया कि वे अपने प्रधानमंत्री का इस्तीफा लें। स्वतंत्र देश का सपना देख रहे भोपाल नवाब हमीदुल्ला खां की सत्ता से पकड़ ढीली होती चली गई और आखिरकार उन्हें भोपाल का भारत में विलय करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने पड़े तब जाकर 1 जून 1949 को भोपाल भारत देश का हिस्सा बना।
गोली लगने के बाद भी तिरंगा नहीं गिरने दिया अंतिम सांसों तक थामे रहे
अंतिम सांस तक शहीदों ने तिरंगे को जमीन पर नहीं गिरने दिया। उस समय के साक्षी रहे लोगों के अनुसार 25 साल के धनसिंह जब वंदे मातरम गाते हुए तिरंगा फहराने जा रहा था, थानेदार जाफर ने उसे गीत गाने से मना किया। धनसिंह नहीं माने और तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़े, तो उन्हें गोली मार दी गई। धनसिंह के जमीन पर गिरने से पहले 16 साल के मंगल सिंह ने झंडा थाम लिया। मंगलसिंह को गोली लगी तो 25 साल के विशाल ने झंडा थाम लिया इसके बाद जाफर अली ने विशाल को भी गोली मार दी। तिंरगा तीनों के खून से लथपथ हो चुका था और विशाल जमीन पर गिरता, इससे पहले उसने डंडे में से झंडा निकालकर अपनी जेब में रख लिया। इसके अलावा 25 साल के विशाल सिंह और 45 साल के कालूराम को भी गोली लग चुकी थी। इनके साथी घनश्याम दास मालानी, नित्यगोपाल शर्मा, धनराज रघुवंशी आदि गिरफ्तार कर लिए गए। इस घटना के आठ दिन पहले ही बरेली में विलीनीकरण आंदोलन के दौरान ही एक लाठी चार्ज में 28 साल के रामप्रसाद और 35 साल के जुगराज शहीद हो गए थे।
डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने कहा था 'मुझे गर्व है मैं उस भूमि का पुत्र हूं'
साल 1949 में ही पूर्व राष्ट्रपति और तत्कालीन लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने लिखा था कि "मुझे इस बात का गर्व है कि मैं उस भूमि का पुत्र हूं, जहां की जनता इतनी जागृत और निर्भीक है कि जहां के वीर बौरास का अदभुत दृश्य उपस्थित कर सकते हैं। उन्होंने यह भी लिखा था कि जहां की वीरांगनाओं ने बौरास के अमर शहीदों को जन्म दिया और इन शेरदिल इंसानों की जिंदादिली को जरा भी जेल और डंडे की यातनाएं कम नहीं कर पाईं। उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय डॉ. शंकरदयाल शर्मा की जन्मस्थली उदयपुरा के निकट स्तिथ ग्राम जैथारी है। डॉ. शर्मा ने 1952 से 1965 तक मप्र विधानसभा में उदयपुरा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया था।