संजय गुप्ता, INDORE. एमआईजी शराब दुकान में ठेकेदार द्वारा दी गई फर्जी पांच करोड़ 40 लाख( five crore 40 lakh ) की बैंक गारंटी ( Bank guarantee ) के मामले में आखिरकार सहायक आयुक्त राजनारायण सोनी को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने के आदेश जारी हो गए। उप सचिव कैलाश वानखेड़े ने 26 अगस्त को यह आदेश जारी करते हुए उन्हें मुख्यालय कार्यालय आयुक्त संभागीय उड़नदस्ता में अटैच कर दिया है। इनकी जगह हर्षवर्धन राय को इंदौर में नया सहायक आबकारी आयुक्त नियुक्त किया गया है। इसके पहले इसी मामले में सहायक जिला आबकारी अधिकारी ( Assistant District Excise Officer ) राजीव उपाध्याय को विभाग पहले ही सस्पेंड कर चुका है।
यह है पूरा मामला
एमआईजी शराब दुकान का ठेका लेने वाला ठेकेदार मोहन कुमार और अनिल सिन्हा जून के पहले सप्ताह में गायब हो गए। जब इसकी बैंक गारंटी 70 लाख की एफडी विभाग ने कब्जे में लेने के लिए बैंक को पत्र लिखा तो आईसीआईसीआई ने बताया कि यह एफडी मात्र सात हजार की है, जो आपने बताई वह फर्जी है। इसके बाद विभाग के हाथ-पैर फूल गए औऱ ठेका निरस्त कर नए ठेकेदार क दुकान आवंटित की लेकिन इस दौरान दो माह तक विभाग ने ठेकदार द्वारा दी गई दूसरी 4.70 करोड़ की बैंक गारंटी की जांच ही नहीं कराई। नया ठेका पुराने ठेके से 12 करोड़ से कम में गया। बाद में दो अगस्त को विभाग ने दूसरी गारंटी एफडी की जानकारी मांगी तो बैंक ने बताया यह केवल 47 हजार की है। इसके बाद विभाग ने तीन अगस्त को रावजी बाजार थाने में ठेकेदारों के खिलाफ 420वीं का केस दर्ज कराया।
बिना राशि लिए ही जारी हो गया लाइसेंस
केवल यही ठेकेदार था जिस पर विभाग के अधिकारियों ने मेहरबानी बरतते हुए इससे लाइसेंस जारी होने से पहले राशि ही नहीं ली। चालान से राशि जमा होती है लेकिन इन्होंने अर्नेस्ट मनी के लिए गारंटी ले ली। ठेकेदार को 41 करोड़ के शराब ठेके के बदले में अर्नेस्ट मनी देना थी और लाइसेंस फीस भी। लेकिन इसने केवल 52 लाख जमा कराए और साथ में विभाग को 70 लाख और 4.70 करोड़ की दो फर्जी बैंक गारंटी जमा करा दी। विभाग ने लाइसेंस जारी कर इसे दो माह तक काम भी करने दिया। जब ठेकेदार ने हर माह होने वाली राशि जमा नहीं कराई तब विभाग के अधिकारी सोनी और उपाध्याय जागे और बैंक से जानकारी ली। तब पता चला कि ठेकेदार तो भाग गया और गारंटी भी फर्जी है।
मामले को दबाने के लिए बेंगलुरु तक हो आए अधिकारी
विभाग के अधिकारियों ने नया ठेका तो अन्य को दे दिया, लेकिन राशि जमा कराने के लिए ये ठेकेदार के बेंगलुरु के दिए पते तक हो आए, लेकिन वहां कोई नहीं मिला, वहां नोटिस चिपकाकर आए हैं। दो महीने तक विभाग के अधिकारी इस मामले को दबाने में लगे रहे और आखिर में थक-हारकर ठेके की 10% राशि को जब्त करने की कार्रवाई शुरू की।
पहले बिना राशि जमा करवाए लाइसेंस दिया, फिर दो महीने सोते रहे अधिकारी
इस पूरे मामले में अधिकारी पहले तो ठेका एक अप्रैल को चालू होने और 18 अप्रैल को 70 लाख की एफडी (जो फर्जी थी) जमा होने के बाद भी इसके वैरिफिकेशन के लिए दो माह तक सोते रहे। ठेकेदारों ने 10% राशि की एफडी 4.70 करोड़ (ये भी फर्जी एफडी थी) 13 अप्रैल को दी लेकिन दोनों को चेक नहीं किया गया। कायदे से सात दिन के भीतर इनका सत्यापन बैंक से कराना था और पांच फीसदी राशि खाते में आने पर ही लाइसेंस जारी होना था। इसके बाद भी दो जून को जब बैंक ने 70 लाख की एफडी गलत बता दी तो भी नहीं चेते और दो माह फिर सोते रहे। ठेके की दस फीसदी राशि की एफडी 4.70 करोड को चेक करने के लिए दो माह तक रुके रहे और दो अगस्त को बैंक को पत्र लिखा।