मुर्मू की सत्ता के लिए मोदी के साथ वनवासी आश्रम की बड़ी भूमिका 

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मुर्मू की सत्ता के लिए मोदी के साथ वनवासी आश्रम की बड़ी भूमिका 

राष्ट्रपति चुनाव के दौरान न्यूज़ एक्स टीवी चैनल के एक कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता मुझसे इस मुद्दे पर नाराजगी के साथ बहस करते रहे कि द्रौपदी मुर्मू को आदिवासी महिला कहलाना संविधानिक रूप से अनुचित है। जबकि मेरा कहना है कि किसी चुनाव में जाति धर्म आदि का उल्लेख गलत हो सकता है, आदिवासी महिला बताना अनुचित नहीं है। वह अपनी बात पर अड़े रहे, जबकि स्वयं पेशे से वकील हैं। टीवी कार्यक्रमों या सोशल मीडिया पर श्रीमती मुर्मू को आदिवासी महिला के रूप में पेश करते हुए इसके राजनीतिक सामाजिक  लाभ को लेकर चर्चाएं होती रहीं, लेकिन इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया गया कि किसी वनवासी महिला को राष्ट्रपति के सिंहासन तक पहुँचाने के लिए प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री बनने से बहुत पहले से स्वयं संघ भाजपा के स्वयंसेवक नेता नरेंद्र मोदी और भारतीय वनवासी आश्रम संगठन के समर्पित कार्यकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।



मुझे एक पत्रकार के नाते यह भी याद है कि नरेंद्र मोदी ने 1998 के आस पास मध्य प्रदेश के  भाजपा के प्रभारी के नाते काम करते हुए आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए प्रदेश के विभाजन, एक वोट .दो प्रदेश के नारे और अभियान के साथ छत्तीसगढ़ की मांग को आंदोलन का रूप दिलाया था। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार ने इस मांग को पूरा किया। इसलिए मुझे यह तर्क बेमानी लगता है कि केवल आगामी चुनावों और राजनीतिक लाभ के लिए द्रौपदी मुर्मू को आगे बाध्य गया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ लगभग 75 वर्षों से आदिवासी वनवासी क्षेत्रों और लोगों के बीच काम करता रहा है। वनवासी आश्रम की स्थापना भी इसी उड़ीसा-छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में हुई और सरसंघचालक एमएस गोलवलकर (गुरुजी) ने 26 दिसम्बर 1952 को इसके छोटे से कार्यालय का उद्घाटन किया था, हाँ, मुझे दो सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह और केसी सुदर्शन और प्रोफेसर राजेंद्र सिंह ने 1997 और 2003 में दिए इंटरव्यू में आदिवासी तथा पूर्वोत्तर क्षेत्रों में काम की चर्चा की थी। छत्तीसगढ़, राजस्थान और असम, अरुणाचल में सक्रिय कुछ प्रचारकों से भी बातचीत के अवसर मिले हैं, इसलिए वनवासी आश्रम की भूमिका का थोड़ा अंदाज रहा है। राजनीति से हटकर ऐसे संगठनों और उनसे जुड़े समर्पित कार्यकर्ताओं के महत्वपूर्ण योगदान पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।



ऐसे शुरू हुए आदिवासी क्षेत्रों में संघ के सेवा कार्य



एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि आजादी के बाद कांग्रेस के ही नेताओं ने आदिवासी क्षेत्रों में विदेशी मिशनरियों का प्रभाव रोकने के लिए आरएसएस से जुड़े लोगों को आदिवासी इलाके में काम करने और आदिवासी कल्याण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सहयोग के लिए जोड़ा था। रविशंकर शुक्ल जिस समय मध्य प्रान्त के शीर्ष नेता और मुख्यमंत्री थे, तब जशपुर में उनके विरुद्ध एक प्रदर्शन हुआ। उन्हें घने आदिवासी क्षेत्र में इस तरह के विरोध पर आश्चर्य हुआ, तब उन्हें प्रशासन और पुलिस की पड़ताल से पता चला कि धर्म परिवर्तन करा रहे ईसाई मिशनरियों ने इन लोगों को भड़काया था, तब उन्होंने बाप्पा महाराज की सलाह से आदिवासी कल्याण विभाग और कुछ योजना बनाकर पांडुरंग गोविन्द वणिकर को निदेशक नियुक्त किया। उन्होंने संघ से जुड़े रमाकांत केशव देशपांडे को इस विभाग से जोड़ा। देशपांडे उड़ीसा और मध्य प्रान्त में सक्रिय थे, लेकिन दो तीन वर्षों में ही उन्हें सरकारी लालफीताशाही से कल्याण कार्यों में कठिनाई महसूस होने लगी। तब उन्होंने गुरूजी से बात कर वनवासी आश्रम संगठन की स्थापना कर दी। पहले संगठन ने केवल आठ स्कूल खोले, फिर उनकी संख्या एक सौ हुई। उन्हें सरकार से भी थोड़ा सहयोग मिला। धीरे धीरे संगठन का कार्य बढ़ता गया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार आने पर संघ के लोगों की सामाजिक कार्यों में प्रगति होने लगी नतीजा यह है कि अब भारतीय वनवासी आश्रम 323 आदिवासी बहुल जिलों के करीब 52 हजार गांवों में 20 हजार परियोजनाओं के लिए काम कर रहा है।



योजनाएं बनीं आदिवासी कल्याण की वाहक



दूसरी तरफ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर विकास योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया था कि 2014 तक आदिवासी कल्याण योजनाओं के लिए केवल 21 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान था, लेकिन मोदी सरकार आने के बाद अब यह बजट करीब 78 हजार करोड़ रूपये हो गया है। आदिवासी क्षेत्रों में 50 एकलव्य आवासीय मॉडल स्कूल बन रहे हैं। हर गांव में मुफ्त राशन दिया जा रहा है। पहले जहाँ केवल 810 फसलों को मान्यता थी, अब 90 वनोपज को मान्यता देकर सरकारी सहायता दी जा रही है। करीब 150 मेडिकल कालेज आदिवासी क्षेत्रों में स्थापित करने की स्वीकृति दी गई है। करीब 2500 वन धन विकास केंद्र और 37 हजार सेल्फ हेल्प ग्रुप बन गए हैं। बीस लाख भूमि के पट्टे दिए गए हैं।



मोदी के नारी सशक्तिकरण अभियान का असर



सरकार के दावों में कुछ कमी या प्रादेशिक सरकारी मशीनरी से क्रियान्वयन में कठिनाइयां हो सकती हैं, लेकिन यह तो स्वीकारा जाना चाहिए कि हाल के वर्षों में संघ और भाजपा ने  ब्राह्मण, बनिया और शहरी पार्टी के संगठन की पुरानी धारणाओं को बदल दिया है। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में इसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश में पंचायत से लेकर नगर परिषद् पालिका निगमों के चुनाव में लगभग 75 से 85 प्रतिशत स्थानों पर शिवराज सिंह सरकार और मोदी भाजपा के नाम पर विजय मिली। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस अब बड़े शहरों की नगर निगमों पर सफलता पाई है।  पूर्वोत्तर राज्यों में भी भाजपा को वर्षों से किए गए काम का लाभ सत्ता पाने में मिल रहा है। मोदी के सशक्त नारी, सशक्त भारत अभियान को महिलाओं का व्यापक समर्थन मिलने लगा है। श्रीमती मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों और महिलाओं के बीच मोदी सरकार और भाजपा की साख बढ़ने के साथ इस वर्ग में भविष्य के लिए एक नई आशा और आत्म विश्वास की भावना बढ़ने का लोकतांत्रिक लाभ भी मिलेगा।

( लेखक आई टी वी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ चैनल और आज समाज  के सम्पादकीय सलाहकार हैं)


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