हरीश दिवेकर. भोपाल । बक्सवाहा की हीरा खदान से जुड़ी हमारी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट की दूसरी किश्त में हमने बताया था कि किस तरह से तत्कालीन डीएफओ (DFO) संजीव झा ने स्पॉट वैरिफिकेशन रिपोर्ट बदल दी। लेकिन हीरा खदान के लिए मनमर्जी का खेल यहीं आकर नहीं रुका। झा की रिपोर्ट के बाद केंद्र से अनुमति लेने के लिए प्रस्ताव बनाने की तैयारी के लिए कैसे छतरपुर से लेकर भोपाल तक फाइलों को पंख लग गए, यह भी अपने आप में कहानी है।
रॉयल्टी के लिए फाइल का सारा खेल
10 दिसंबर 2019 को बिड़ला समूह ने बक्सवाहा की हीरा खदान की लीज हासिल कर ली। लीज तो मिल गई, लेकिन खनन की इजाजत तभी मिलेगी। जब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी देगा। बिड़ला समूह को खनन की इजाजत मिलती है तो शर्त के मुताबिक कंपनी सरकार को रॉयल्टी के रूप में 22 हजार 852 करोड़ रुपए देगी। सरकार के लिए पैसा अहम था, इसलिए बिड़ला समूह को खनन की इजाजत देने वाले प्रस्ताव की फाइल को बुलेट ट्रेन की रफ्तार के माफिक दौड़ाया गया। इस टाइम लाइन से समझा जा सकता है।
कैसे दौड़ी फाइल
28 दिसंबर 2020 को छतरपुर डीएफओ ने टेक्नीकल रिपोर्ट सीसीएफ को भेजी। इसके पांच दिन बाद ही यानी 2 जनवरी 2021 को सीसीएफ (CCF) ने वन मुख्यालय को ज्वाईंट स्पॉट निरीक्षण कर खनन की अनुमति देने की अनुशंसा कर दी। ठीक चार दिन बाद 6 जनवरी 2021 को एपीसीसीएफ(APCCF) ने सेक्रेटरी फारेस्ट को बिड़ला ग्रुप को खनन की अनुमति देने की अनुशंसा कर दी। और एक महीने के भीतर 4 फरवरी 2021 को सेक्रटरी फारेस्ट ने भी प्रस्ताव को केन्द्र सरकार को खनन की अनुमति की अनुशंसा के साथ भेज दिया।
जल्दबाजी इतनी कि प्रपोजल ही आधा-अधूरा
जो प्रस्ताव केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजा गया वो आधा अधूरा ही था। अधिकारियों ने जल्दबाजी में प्रस्ताव के साथ कई दस्तावेज भेजे ही नहीं। जब प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास पहुंचा तो केंद्र सरकार ने इस पर नाराजगी जाहिर की। वन विभाग के अफसरों ने इसे क्लेरिकल मिस्टेक बताते हुए नए सिरे से प्रस्ताव भेजने की बात कही, इसके बाद 3 मार्च को नए सिरे से प्रस्ताव भेजा गया।
कल पढ़ें: कैसे गहराएगा बुंदेलखंड में जल संकट
कहां तो आम लोगों के हितों से जुड़ी ऐसी फाइलें तो मंत्रालय के किसी कोने में पड़ी धूल खाती रहती हैं और कहां हीरा खदान की फाइल को बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ाया गया। द सूत्र की अगली रिपोर्ट में पढ़िए कि अगर केंद्र इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देता है.. तो किस तरह से बुंदेलखंड में गहराएगा जल संकट!