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BHOPAL. भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने अपने सबसे ताकतवर माने जाने वाले संसदीय बोर्ड (Parliamentary Board) से नितिन गडकरी समेत मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह (Chief Minister Shivraj Singh) को भी बाहर कर दिया है। मध्यप्रदेश में अगले साल चुनाव होना है। ऐसे समय पर शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से बाहर करने के दो बड़े मतलब निकाले जा रहे हैं। उन कारणों का आंकलन भी होने लगा है, जिसकी वजह से पार्टी ने ये फैसला लिया। वजह कई गिनाईं जा रही हैं। लेकिन अंदरखानों की खबर कुछ और है।
इसके पीछे की सियासत
विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) से ऐन पहले नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) की बीजेपी (BJP) सीएम फेस बदलने से गुरेज नहीं करती है। मध्यप्रदेश की सियासत में भी अक्सर ये कयास लगते रहे हैं कि सीएम कभी भी बदले जा सकते हैं। इन अटकलों के बीच सीएम की कुर्सी तो नहीं छिनी लेकिन पार्टी में रसूख कुछ कम हो गया। बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया। इस फैसले के कई मायने तो हैं ही टाइमिंग ने भी सवाल उठा दिए हैं कि प्रदेश के असंतुष्ट नेताओं की नाराजगी को कम करने के लिए ये फैसला लिया गया है। या फिर ये इस बात का संकेत है कि अगला चुनाव भी अब शिवराज के नेतृत्व में नहीं होगा।
शिवराज का कद पहली बार कम किया गया
मध्यप्रदेश का मुखिया बनने के बाद से शिवराज सिंह चौहान लगातार सियासत की सीढ़ियां चढ़ते रहे हैं। केंद्र से लेकर प्रदेश तक हर जगह उनके सितारे बुलंदी पर ही रहे। 2018 में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद जब बीजेपी ने सत्ता ने वापसी की तो माना गया कि अब सीएम का सेहरा शिवराज के सिर नहीं सजेगा। लेकिन हर अटकल को दरकिनार कर शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर कुर्सी तक पहुंच गए। ये पहला मौका है जब पार्टी नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान का कद घटाया है। हालांकि अपने स्वभाव के अनुसार शिवराज सिंह चौहान पार्टी के इस फैसले पर भी खामोश हैं, जो सरल, सजग नजर आने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। उनके हावभाव और बॉडी लेंग्वेज कुछ भी कहे। पार्टी के इस फैसले कई मायने हैं। प्रदेश के अंतिम कार्यकर्ता तक जो मैसेज बीजेपी पहुंचाना चाह रही थी। वो मैसेज संभवतः हर तरफ पहुंच गया है वो भी एकदम लाउड एंड क्लीयर।
इस फैसले की बुनियाद में केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच रहे कुछ ऐसे मैसेज हैं जिनके बाद उन्हें लगा कि अब शिवराज के कद में कटौती जरूरी है। इन मैसेजेस के अलावा नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे भी शिवराज का कद घटाने के पीछे बड़े कारण बने हैं।
एमपी की सियासत में नए किरदार की एंट्री हुई
मध्यप्रदेश में बीजेपी की सियासत में ट्विस्ट आया जुलाई से। नगरीय निकाय चुनाव (urban body elections) के नतीजे तब तक आए नहीं थे। लेकिन आलाकमान को ये आभास हो चुका था कि प्रदेश की सियासत में सब कुछ ठीक नहीं है और अगर ऐसे ही चलता रहा तो 2023 में कांग्रेस ज्यादा दमखम से वापसी कर सकती है। नगरीय निकाय चुनाव में 7 सीटें गंवाने के बाद आलाकमान का रहा सहा संशय भी यकीन में बदल गया। इस बीच एमपी की सियासत में नए किरदार की एंट्री हुई। ये नए किरदार हैं क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल (ajay jamwal)। आलाकमान के भरोसेमंद और आरएसएस के पुराने नेता। जिनके आने के बाद जो खबरें आलाकमान तक पहुंच रही थीं उस पर मुहर भी लगना शुरू हो गई और शिवराज के डिमोशन की जमीन मजबूत होती चली गई।
केंद्र की राजनीति से हुए दूर
शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड में शामिल करने की सिफारिश लालकृष्ण आडवाणी ने 2013 ने की थी। तब कहा गया कि मुख्यमंत्री को बोर्ड में रखा जाना चाहिए। तब मार्च 2013 में नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया था। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे और जब केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद अमित शाह पार्टी अध्यक्ष बने तो शिवराज सिंह चौहान को बोर्ड में जगह मिली। 2014 से लगातार आठ साल तक शिवराज संसदीय बोर्ड में रहे। हाल ही में योगी आदित्यनाथ भी अच्छे बहुमत के साथ सत्ता में लौटे हैं। उन्हें भी संसदीय बोर्ड में शामिल करने की अटकलें लगने लगी थीं। ऐसे में कहा यह भी जा रहा है कि शिवराज को बाहर कर पार्टी अपने ही पुराने अघोषित नियम पर लौटी है कि किसी मुख्यमंत्री को संसदीय बोर्ड में नहीं रखा जाएगा। लेकिन सिर्फ यही एक कारण नहीं है। शिवराज को केंद्रीय राजनीति से बाहर करने की एक और बड़ी वजह मानी जा रही है।
शिवराज के डिमोशन की बड़ी वजह-
- शिवराज पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी हैं। ये मैसेज बना शिवराज सिंह चौहान की मुसीबत।
ये मैसेज बहुत तेजी से बीजेपी के हर कार्यकर्ता तक पहुंच चुका था सीएम शिवराज पीएम मोदी के करीबी हैं। इसकी वजह से कुछ ऐसा माहौल हो गया कि नाराजगी होने के बावजूद कार्यकर्ता सीएम के खिलाफ खुलकर बोल नहीं पाए। इसका असर नगरीय निकाय चुनावों के नतीजे में साफ दिखा। 16 की 16 नगर निगमों पर राज करने वाली बीजेपी के हाथ से सात नगर निगम निकल गईं। इस हार के पीछे बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी और असंतोष को ही जिम्मेदार माना गया।
सिर्फ कार्यकर्ता ही नहीं कई वरिष्ठ मंत्री और विधायक भी सीएम की मौजूदा कार्यशैली से खुश नहीं हैं। इसके चलते पार्टी स्तर पर ही सीएम के खिलाफ असंतोष बढ़ता गया। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व तक सही खबरें पहुंच पाना मुश्किल हो रहा था। हर तथ्य की तह तक जाने के लिए आलाकमान ने प्रदेश में एक नई नियुक्ति की। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री, मध्यक्षेत्र के रूप में अजय जामवाल की नियुक्ति हुई। जोगिंदर नगर के अजय जामवाल की जड़े आरएसएस में गहरी जमी हैं। इसके अलावा वो फिलहाल मोदी और शाह के भरोसेमंद भी माने जाते हैं। जामवाल के ऊपर न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि छत्तीसगढ़ की भी जिम्मेदारी है। छत्तीसगढ़ बीजेपी में पनप रहे डिफरेंसेस को दूर करने में जामवाल की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
कौन है अजय जामवाल?
- चुनावी जमावट में एक्सपर्ट अजय जामवाल पीएम मोदी और शाह के करीबी और भरोसेमंद मान जाते हैं।
ये फैसला ऐसे हुआ
अजय जामवाल की एंट्री के बाद से माना जा रहा है कि आलाकमान तक सही खबरें और कार्यकर्ता के मन की बात पहुंचने लगी। आलाकमान के सामने भी ये तस्वीर साफ हो गई कि शिवराज के पीएम के नजदीकी होने का मैसेज पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अब निराशा की वजह बन रहा है। इस मैसेज को गलत साबित करना जरूरी है। पार्टी नेतृत्व प्रदेश में एक ऐसे ही बाहरी व्यक्ति की नियुक्ति की तलाश में थे जो प्रदेश के किसी नेता के करीबी न हो और फर्स्ट हैंड इंफरमेशन उन तक पहुचाए। आलाकमान के नजरिए से जामवाल से बेहतर कोई और विकल्प इस काम लिए हो नहीं सकता था। जामवाल की एंट्री के बाद आलाकमान के सामने तस्वीर पूरी तरह साफ थी और ये बड़ा फैसला ले लिया गया।
शिवराज आने वाले चुनाव में सीएम फेस होंगे या नहीं। हालांकि जेपी नड्डा खुद प्रदेश में आकर ये कह चुके हैं कि शिवराज के चेहरे पर ही अगला चुनाव लड़ा जाएगा। जल्द ही गृह मंत्री अमित शाह भी प्रदेश का दौरा करते नजर आएंगे। इन सियासी घटनाक्रमों के बीच फिलहाल शिवराज की कुर्सी बचेगी या जाएगी ये कहना जल्दबाजी होगा पर ये तय माना जा सकता है कि प्रदेश की राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में जाने की कोशिश में लगे शिवराज अब वहां आसानी से अपनी जगह नहीं बना सकेंगे।