MP में बढ़ रहे धर्मांतरण के मामले, राष्ट्रीय बाल आयोग ने किया सनसनीखेज खुलासा

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MP में बढ़ रहे धर्मांतरण के मामले, राष्ट्रीय बाल आयोग ने किया सनसनीखेज खुलासा

अरुण तिवारी, भोपाल. मध्यप्रदेश में बच्चों के धर्मांतरण की कोशिशों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ये सनसनीखेज खुलासा राष्ट्रीय बाल आयोग के पास पहुंच रही शिकायतों से हुआ है। आरोप मिशनरीज के तहत काम करने वाले स्कूल, एनजीओ, आश्रम, हॉस्टल और अस्पतालों पर लग रहे हैं। सबसे अहम खुलासा तो ये कि ये सारे मामले कोरोना काल के दौरान सामने आए हैं। सबसे गंभीर पहलू ये है कि पुलिस और प्रशासन ने इन शिकायतों की जांच में पुष्टि होने के बाद भी एफआरआई नहीं की।



केस नंबर-1 रतलाम: सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल में ओडिशा की एक बच्ची की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हई। नर्मदा वेली राइट फोरम नाम की संस्था ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत की। आरोप लगाया कि बच्ची को नन बनाने के प्रशिक्षण के लिए स्कूल में रखा गया था।



आयोग के निर्देश: कलेक्टर और एसपी को गहन पड़ताल के निर्देश दिए। कलेक्टर को भेजे नोटिस में लिखा कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत जांच की जाए।



केस नंबर-2 जबलपुर: दिल्ली के एनजीओ ने जबलपुर के करुणाधाम आश्रम पर धर्मांतरण कराए जाने का आरोप लगाया। आयोग ने 18 नवंबर 2021 को टीम भेजी जिसका नेतृत्व राज्य बाल आयोग के सदस्य दविंद्र मोरे ने किया। निरीक्षण में आश्रम से पांच बच्चियां सामान्य जबकि आठ दिव्यांग बच्चे मिले। टीम ने पाया कि दिव्यांग लड़के-लड़कियों को एक ही बाथरूम में नग्न अवस्था में नहलाया जा रहा था। इसी तरह सामान्य और दिव्यांग बच्चों को सबको एक साथ रखा गया था, जोकि नियमों के खिलाफ था। जांच में आयोग ने पाया कि एनजीओ संचालक ने पिछले तीन सालों में बच्चों के नाम पर विदेशों से करोड़ों रुपए फंड लिया लेकिन खर्च नहीं किया। ये पाया कि सभी बच्चे हिन्दू हैं, उनके गले में क्रॉस और पास में बाइबिल थी। केयर टेकर ने बताया कि एक पादरी बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए आता है। आयोग ने पुलिस-प्रशासन से रिपोर्ट मांगी लेकिन आज तक नहीं दी गई।



केस नंबर-3 बीना(सागर): कोविड काल में जब सभी शैक्षणिक संस्थान बंद थे। तब बीना में मिशनरी के यूफ्रेशिया हॉस्टल में अशोकनगर और गुना जिले की 9 बच्चियां मिलीं। कुछ बच्चियां अनुसचित जाति की भी थीं। संदिग्ध हालात देखकर मामले की जांच करने के लिए कहा गया।



जांच में खुलासा: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी यानी सीडब्ल्यूसी से बच्चों के बयान की कॉपी मांगी। इसमें एक बच्ची का बयान था कि उसे कमरे में बंद करके रखा जाता था। खेलने भी नहीं दिया जाता था। मांसाहार खाने को कहा जाता था। गले में क्रॉस लटकाया जाता था और क्रिश्चिन प्रार्थना करने को कहा जाता था। 



प्रशासन का रवैया: तत्कालीन कलेक्टर ने इस मामले में एफआईआर नहीं करवाई। एसपी ने आयोग के अध्यक्ष से कहा कि जिन जगहों से बच्चियां आई हैं। वहां अच्छी तरह रह रही थीं। धारा-82 कहती है कि बाल गृह में पीटा या प्रताड़ित किया है तो यह गैरजमानती संज्ञेय अपराध है। लेकिन पुलिस रिपोर्ट में लिखा है कि बाल गृह पंजीकृत नहीं था, इसलिए ये धारा नहीं लगाई। आयोग ने एसपी और कलेक्टर के रवैये को लेकर मुख्य सचिव को पत्र लिखा। मुख्य सचिव ने मामले की रिपोर्ट दे दी पर कार्रवाई नहीं की।



केस नंबर-4 गुना: गुना में होम बेस्ड केयर हॉस्टल संचालित हो रहा है, जिसमें उन बच्चों को रखा गया जो किशोर न्याय अधिनियम की धारा-2 के तहत देखभाल और मदद की अपेक्षा रखते हैं। जबकि इन बच्चों को ऐसे स्थानों पर ही रखा जा सकता है जो किशोर न्याय अधिनियम की धारा-41 के तहत पंजीकृत हों। सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट और एनसीपीसीआर की जांच के बाद भी अवैध होम बेस्ड केयर हॉस्टल बंद नहीं हुआ।



केस नंबर-5 सागर: 11 दिसंबर को सागर पुलिस ने श्यामपुरा सेवाधाम आश्रम बीना से गायब हुए दो बच्चों को बरामद किया। पुलिस ने इनकी बरामदगी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से मिले नोटिस के बाद की। सेवाधाम बालक-बालिका आश्रम में रहने वाले नाबालिग अनुसूचित जाति वर्ग के छात्र-छात्राओं को उनकी बिना मर्जी के गोमांस खिलाने और क्रिश्चियन धर्म की ओर प्रेरित करने की शिकायत बच्चों के पिता ने समाजसेवी ओंकार सिंह की मदद से राष्ट्रीय बाल आयोग से की थी। पुलिस ने इस मामले की रिपोर्ट न लिखकर पहले जांच करने की बात कही।



प्रशासन नहीं कर रहा सहयोग: इन सभी मामलों को देखकर साफ पता चलता है कि मध्यप्रदेश में धर्मांतरण की कोशिशें हुई हैं और बच्चों को सॉफ्ट टारगेट बनाया गया। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का कहना है कि उनके पास लगातार शिकायतें आई लेकिन प्रशासन ने कोई सहयोग नहीं किया।



प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल: राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। और ये भी कहा कि जो कानून बनाए गए हैं। उनका पालन प्रशासन नहीं कर रहा है। जबकि जांच में पुष्टि होने के बाद भी आरोपियों पर एफआईआर नहीं हुई। ऐसे में ये मामला प्रशासन और सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।


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