संस्कृति और परंपरा का उत्सव: 15 से 21 नवंबर के बीच आयोजित होगा कालिदास समारोह

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संस्कृति और परंपरा का उत्सव: 15 से 21 नवंबर के बीच आयोजित होगा कालिदास समारोह

उज्जैन (Ujjain). कोरोना संकट (Corona crisis) के चलते दो साल से बंद कालिदास समारोह (Kalidas ceremony) इस साल हमेशा की तरह 7 दिन का आयोजित होगा। इस बार समारोह का आयोजन 15 से 21 नवंबर तक होगा। पिछले दो बार से कोरोनाकाल में यह आयोजन वर्चुअली माध्यम से किया जा रहा था। संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने 1 नवंबर को यह जानकारी दी। मंत्री उषा ठाकुर (Culture Minister Usha Thakur) ने कहा कि कालीदास समारोह में स्थानीय कलाकारों को प्रतिदिन एक कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका दिया जाएगा। समारोह की शुरुआत कलश यात्रा निकालकर की जाएगी। शुभारंभ के अवसर पर राज्यपाल (Governor) और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) दोनों उपस्थित रहेंगे। कालिदास अकादमी में कालिदास समारोह के लिए गठित की गई स्थानीय समिति की बैठक को संस्कृति मंत्री संबोधित कर रही थीं।

कालिदास समारोह पर संकट

देश ही नहीं विदेशों तक अपनी कीर्ति का परचम लहराने वाले कालिदास समारोह का शुभारंभ कभी राष्ट्रपति के हाथों हुआ था, जो अब वर्तमान में सिर्फ मुख्यमंत्री, राज्यपाल या विभागीय मंत्री तक ही सिमट कर रह गया है। इसमें बड़े नेताओं को बुलाया नहीं जा रहा या फिर वे आना ही नहीं चाहते। इस वर्ष भी शुभारंभ 15 नवंबर को होना है। रोचक कार्यक्रमों के न होने से शहरवासियों की दिलचस्पी भी खत्म हो चली है। अभा स्तर के आयोजन की रोचकता धीरे-धीरे कम होती जा रही है, जो कि चिंतनीय विषय है। 

राजेंद्र प्रसाद ने किया था समारोह का आगाज किया

अभा कालिदास समारोह का शुभारंभ 1958 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्रप्रसाद के हाथों हुआ था। यह अवसर भारत के सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई थी। बड़ी संख्या में विद्वानों ने एक सप्ताह तक उत्सव मनाया। शहर के विद्वानों ने बताया कि उस समय रूसी, जर्मनी, ईरानी और चीनी प्रतिनिधिमंडलों ने भाग लिया था। अधिकतर भारतीय राज्यों ने समारोह के लिए मुक्तहस्त से दान दिया और अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग भी लिया।

नाट्य समारोह, चित्र प्रदर्शनी और मूर्तियों द्वारा आयोजित मप्र कला परिषद ने विख्यात कलाकारों को आमंत्रित किया था। कोलकाता के संस्कृत कॉलेज के दल ने अभिनय किया और मंच पर नाटकों की शानदार प्रस्तुतियां दी थीं। इस मौके पर कम से कम पंद्रह हजार दर्शकों ने इसे सराहा। चीन के वू शुच ने 1957 में शकुंतला नाटक का भव्य मंचन किया था। 1958 में इतने भव्य पैमाने पर यह समारोह शुरू किया गया। उसके बाद उज्जैन में हर साल कालिदास समारोह मनाया जाने लगा। यह सिलसिला अब भी जारी है। ब्रिटिश, ऑस्ट्रेलिया, जापान, पश्चिम जर्मनी तक के कलाकार उज्जैन आए थे। 

हर साल निर्धारित तिथि पर होता समारोह का आयोजन

समारोह हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी से शुरू होता है। समारोह में संस्कृत में कालिदास के मूल नाटकों की प्रस्तुतियों, हिन्दी और अन्य भाषाओं में संस्कृत नाटकों के संस्करण, पारंपरिक नाट्य, नृत्य, गायन होते हैं। चित्र और मूर्तिकला की प्रदर्शनी के साथ ही साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर सेमिनार, विद्वानों के व्याख्यान होते हैं। 1973 में मप्र कला परिषद ने प्रमुख थिएटर हस्तियों और विशेषज्ञों की एक पैनल ने समारोह के पुनर्गठन और इसकी व्यापक परंपराओं, समकालीन रचनात्मक प्रयासों से इसे अधिक प्रासंगिक बनाने का प्रयास किया था। 

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