GWALIOR. ग्वालियर नगर निगम में सभापति का पद बरकरार रखना अब बीजेपी के लिए इज़्ज़त बचाने का आखिरी मौका रह गया है क्योंकि उसके सबसे मजबूत किले के रूप में पहचानी जाने वाली ग्वालियर नगर निगम के मेयर का पद अब बीजेपी के हाथों से जा चुका है। इस पद को लेकर अब बीजेपी इतनी डरी हुई है कि प्रदेश में सत्ता और परिषद् में बहुमत होने के बावजूद वह अपने नव निर्वाचित पार्षदों को समेटकर एमपी से बाहर ही ले गयी। उसने उनकी हरियाणा के रेवाड़ी में ले जाकर एक लग्जरी रिसॉर्ट्स में बाड़ाबंदी कर रखी है। बावजूद इसके सभापति कौन हो इसको लेकर गुटबाजी अभी जारी है। बीजेपी अपने किसी पुराने कार्यकर्ता पार्षद को इस कुर्सी पर बिठाना चाहती है जबकि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जिला पंचायत की तरह परिषद पर भी पूरी तरह अपने समर्थकों का कब्जा चाहते है।
सिंधिया के दबाव में ही दिल्ली ले जाए गए पार्षद
बीजेपी के पास परिषद् में सभापति बनाने लायक मैजिक नंबर पहले से ही है । नगर निगम में कुल 66 पार्षद निर्वाचित हुए है और उसमें से 34 तो बीजेपी के अपने ही जीतकर आ गए हैं। इसके अलावा दो निर्दलीय पहले दिन से ही उसके साथ थे क्योंकि वे उर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के नजदीकी थे। वे बीजेपी से उन्हें टिकट नहीं दिला सके तो वे निर्दलीय लड़कर जीत गए। इसलिए बीजेपी के पास आंकड़ा पर्याप्त है लेकिन वह 57 वर्ष बाद मेयर पद पर मिली करारी पराजय से इतनी भयभीत है कि शुरू से ही उसे क्रॉस वोटिंग की चिंता सता रही है। इस बजह से पार्टी अपने पार्षदों की एकजुटता के लिए शुरू से ही सजग रही। लेकिन जब दो निर्दलीय पार्षदों ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली तो बीजेपी को अपने घर में सेंध लगने की आशंका होने लगी। इस बीच जिले के नेताओं ने भोपाल बात की तो तय हुआ कि सभी पार्षदों को एकजुट कर एक ही जगह ले जाया जाए। तय हुआ की सबको लेकर ओरछा ले जाया जाए। चूंकि साथ में अनेक महिलायें होंगी तो वे रामराजा सरकार के दर्शन भी कर लेंगी। लेकिन जैसे ही नेताओं ने संपर्क करना शुरू किया तो सिंधिया समर्थक पार्षदों ने यह बात ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह को बताई और सिंह ने तत्काल सिंधिया को। सिंधिया ने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को कहाकि वे सबको दिल्ली भेजें ,प्रद्युम्न सब व्यवस्था संभाल लेंगे . इसके बाद शपथ होते ही सबको इकट्ठा किया गया और मंगलवार की सुबह बसों से सभी पार्षद और उनके पति और अविवाहित पार्षदों के पिता को बसों से दिल्ली ले जाया गया। जाते समय सिंधिया समर्थक तोमर को ही पता था कि इन्हे कहाँ रुकना है। रवाना होने से पहले बीजेपी के जिला अध्यक्ष कमल माखीजानी ने कहाकि वे दिल्ली जा रहे है जबकि बसें रेवाड़ी ले जाईं गयीं और सबकी एक रिसॉर्ट्स में बाड़ाबंदी की गयी।
नेता एक साथ नहीं मिले
चुनाव हारने के बावजूद बीजेपी नेताओं में बर्चस्व की लड़ाई बिलकुल भी कम नहीं हुई। इसका नज़ारा दिल्ली में बाड़ाबंदी के दौरान भी देखने को मिला। पहले प्रयास किया जा रहा था कि सभी बड़े नेताओं को रिसॉर्ट्स पर एक साथ लाकर पार्षदों से मिलवाया जाए ,इससे उन पर भी अच्छा प्रभाव पडेगा और एकता का सन्देश भी जाएगा। लेकिन जब बीजेपी के नेता इस प्रयास के लिए प्रयास ही कर रहे थे तभी अचानक पता चला कि बुधवार शाम को सभी पार्षदों को दिल्ली चलकर सिंधिया से मिलना है। यहाँ सिंधिया ने सभी पार्षदों से अकेले ही भेंट की और सबके साथ फोटो खिंचवाए। बताते हैं कि तमाम प्रयासों के बावजूद यहाँ केंद्रीय मंत्री तोमर नहीं पहुंचे हालांकि सांसद शेजवलकर दोनो जगह रहे।।सिंधिया से मिलाई की बात सुनते ही बीजेपी के पुराने पार्षद एकजुट हुए और उन्होंने तत्काल नरेंद्र तोमर से संपर्क साधा। सुबह उनसे मिलने का कार्यक्रम तय हुआ। सब उनसे मिलने पहुंचे। इस मौके पर सांसद विवेक नारायण शेजवलकर भी मौजूद रहे लेकिन यहाँ सिंधिया नही पहुंचे।
प्रत्याशी को लेकर रस्साकसी जारी
बीजेपी सूत्रों की मानें तो पार्टी में सभापति पद के प्रत्याशी को लेकर रस्साकसी जारी है। बीजेपी नेता इस बात पर अडिग हैं की सभापति पद का प्रत्याशी वे सिर्फ अपनी पार्टी के किसी पार्षद को ही चुनेंगे। इस लिहाज से दो पार्षदों के नाम चर्चा में है। इनमे सबसे पहला नाम मनोज तोमर का है। वे वर्तमान परिषद् में बीजेपी के सबसे पुराने पार्षदों में से हैं। वे स्वयं पार्षद और वरिष्ठ पार्षद रहे हैं। तोमर केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र तोमर के नजदीकी हैं और बाकी नेताओं से भी उनके रिश्ते अच्छे हैं। दूसरा नाम गिर्राज कंसाना का है। वे भी दूसरी बार पार्षद बने हैं। गिर्राज को भी नरेंद्र तोमर का ही समर्थक माना जाता है। लेकिन सिंधिया अपने किसी समर्थक की ताजपोशी करके यह सन्देश देना चाहते है कि बीजेपी में भी उनका कद ग्वालियर में कांग्रेस काल सरीखा ही है ,सिर्फ उनकी मर्जी चलेगी। सिंधिया समर्थकों में जो नाम सभापति पद के लिए उभरे हैं उनमे सबसे पहला नाम हरी पाल का है और दूसरा अनिल सांखला का। दोनों कांग्रेस से पार्षद रह चुके है और सिंधिया द्वारा कांग्रेस छोड़ने पर ये भी उनके साथ बीजेपी में आये। सिंधिया इन्हे बीजेपी से टिकट दिलाने में भी कामयाब हुए और ये जीत भी गए।
बीजेपी का दांव और फार्मूला
सूत्रों का कहना है कि अभी तक बीजेपी किसी भी कीमत पर सभापति पद सिंधिया के किसी समर्थक को देने को तैयार नहीं है। बीजेपी के पार्षदों से बातचीत का जिम्मा संसद विवेक नारायण शेजवलकर संभाल रहे हैं। वे सबसे बात कर चुके है। सूत्रों की मानें तो अगर सिंधिया ज्यादा दबाव बनाते हैं तो तोमर -शेजवलकर पार्षदों से रायशुमारी कराने की बात कह सकते है। बीजेपी के 34 सदस्यों में सिंधिया समर्थकों की संख्या महज 12 है यानी बीजेपी के पास खालिस अपने 22 पार्षद हैं। इसीलिए ऊर्जामंत्री अपनी संख्या बढ़ाने के लिए आनन -फानन में दो निर्दलीयों को लेकर रेवाड़ी पहुंचे।
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी अपने सभापति को बनाने के बदले सिंधिया समर्थकों को दो पद दे सकती है। सभापति के अलावा एक नेता प्रतिपक्ष का चयन होना है जो बीजेपी किसी सिंधिया समर्थक पार्षद को दे देगी। एक लेखा समिति का सदस्य बनना है और एक अपील समिति का प्रमुख। बीजेपी तीन में से कोई दो पद सिंधिया समर्थकों को सौंपने की पेशकश कर इस गतिरोध को खत्म करने की कोशिश करेगी। लेकिन यह फैसला देर रात तक ही हो सकेगा। पार्षदों को भी देर रात दिल्ली से ग्वालियर के लिए रवाना किया जाएगा और किसको वोट देना है यह उन्हें रास्ते में ही बताया जाएगा।
कल होगा सभापति का चुनाव
ग्वालियर नगर निगम में सभापति का चुनाव शुक्रवार को होगा। पीठासीन अधिकारी और कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह ने परिषद् के पहले अधिवेशन की सूचना जारी कर दी। इसके तहत दस बजे जल विहार स्थित नगर निगम के परिषद् भवन में नव निर्वाचित पार्षदों की पहली बैठक शुरू होगी। इसकी अध्यक्षता कलेक्टर करेंगे। इस दौरान सभापति और अपील समिति के लिए निर्वाचन की प्रक्रिया होगी जो शाम तक पूर्ण हो जायेगी।