भोपाल. हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र के महीने को बहुत ही पवित्र माना गया है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्र शुरू होते हैं। आज से हिंदू नववर्ष का आगाज होता है। गुड़ी पड़वा और चेटी चांद भी आज ही मनाया जाएगा।
चैत्र नवरात्र में देवी दुर्गा की आराधना
चैत्र नवरात्र में 9 दिनों तक देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की विधिवत पूजा-अर्चना होगी। नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना और मां के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत को जलवायु और सूरज के प्रभावों के हिसाब से महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माना जाता है। त्योहार की तिथि चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं।
हिंदू नववर्ष की शुरुआत
चैत्र प्रतिपदा तिथि पर ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। जिसे नवसंवत्सर कहते हैं। आज से विक्रम संवत 2079 की शुरुआत होगी। ऐसा माना जाता है कि इस चैत्र माह की प्रतिपदा शुक्ल पक्ष की तिथि पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और पहली बार सूर्यदेव उदय हुए थे। इस बार विक्रम संवत 2079 के राजा शनिदेव और मंत्री गुरू हैं।
गुड़ी पड़वा का त्योहार
हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर हिंदू मान्यताओं के मुताबिक गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता है। आज ही गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाएगा। गुड़ी पड़वा का त्योहा महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष आने की खुशी में मनाया जाता है। गुड़ी का मतलब विजय पताका होता है, वहीं पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि होता है। गुड़ी पड़वा दो शब्दों से मिलकर बना है। हिंदू धर्म में चैत्र प्रतिपदा तिथि पर गुड़ी की विशेष रूप से पूजा करते हैं। इसमें घर के मुख्य द्वार पर केले और आम के पत्तों से घर में वंदनवार और घर की सजावट करते हैं। घर के मुख्य द्वार पर गुड़ी फहराई जाती है।
चेटी चांद का त्योहार
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में चन्द्र दर्शन की तिथि को चेटी चांद मनाया जाता है। संत झूलेलाल की जयंती पर चेटी चांद मनाया जाता है। विशेष रूप से सिंधि समुदाय के लोग श्रद्धा भाव के साथ संत झूलेलाल की पूजा करते हैं और चेटी चांद का त्योहार मनाते हैं। संत झूलेलाल को लाल साईं, उदेरो लाल, वरुण देव, दरियालाल और जिंदा पीर भी कहते हैं। सिंधी हिंदुओं के लिए संत झूलेलाल उनके उपास्य देव हैं। सिंधी समुदाय के लोगों के लिए ये तिथि बेहद शुभ होती है। इस दिन से सिंधी हिंदुओं का नया साल शुरू होता है।
अंग्रेजी कैलेंडर
इस कैलेंडर की शुरुआत प्राचीन रोमन कैलेंडर से हुई थी। इसमें शुरुआत में 10 महीने होते थे और साल की शुरुआत 1 मार्च से होती थी। 713 ईसा पूर्व (BC) इस कैलेंडर में जनवरी और फरवरी महीने जोड़े गए। 153 ईसा पूर्व से जनवरी से साल की शुरुआत मानी गई। 45 ईसवी पूर्व रोमन शासक जूलियस सीजर ने जूलियन कैलेंडर की शुरुआत की तो ये सिलसिला जारी रखा। आज दुनियाभर में जो अंग्रेजी कैलेंडर इस्तेमाल किया जाता है, उसका आधार जूलियस सीजर का पहली सदी ईसा पूर्व का कैलेंडर ही है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर
बाद में जूलियन कैलेंडर में कई सुधार किए गए। पहली बार सुधार पोप ग्रेगरी 13 के काल में 2 मार्च 1582 में हुआ। ये सुधार पोप ग्रेगरी ने कराया था, इसलिए इसका नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर हो गया। 1582 से ही 1 जनवरी को नया साल मनाने का चलन शुरू हुआ। इस कैलेंडर को शुरुआत में पुर्तगाल, जर्मनी, स्पेन और इटली में अपनाया गया। 1700 में डेनमार्क और स्वीडन ने अपनाया। 1752 में इंग्लैंड, अमेरिका, 1873 में जापान और 1911 में चीन ने अपनाया। इसी बीच ही ये भारत समेत ब्रिटिश उपनिवेशों में भी लागू हो गया।
हिंदू कैलेंडर
ये 57 ईसा पूर्व उज्जैन के राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शुरू किया था। कुछ विद्वान इसे 58 ईसा पूर्व में शुरू हुआ मानते हैं। इसे ही विक्रम संवत कहा जाता है। विक्रमादित्य से पहले भी चैत्र प्रतिपदा को नया साल मनाया जाता था, लेकिन भारत में इसका मान्य कैलेंडर नहीं था। कैलेंडर के नाम पर भारत में पंचांग प्रचलन में था। विक्रमादित्य ने हिंदू पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर एक कैलेंडर प्रचलन में लाए।
माना जाता है कि प्राचीन युग में कलियुग संवत प्रचलन में था, जिसकी शुरुआत 3102 ईसा पूर्व हुई थी। इसी बीच कृष्ण और युधिष्ठिर संवत भी प्रचलन में थे। विद्वान 6676 ईसा पूर्व सप्तर्षि संवत के प्रचलन में होने की बात भी कहते हैं। इन सभी का आधार पंचांग और ज्योतिषीय गणनाएं थीं।
वहीं, सूर्य के आधार पर नए साल की शुरुआत मकर संक्रांति से मानी जाती है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, इसे एक महीना माना जाता है। सूर्य मेष से मीन तक 12 राशियों में घूमता है। यही 12 राशियां, सौर वर्ष के 12 महीने कहे गए हैं।