अरुण तिवारी, भोपाल. वक्त बदला, नाम बदला, किरदार बदले लेकिन नहीं बदली तो व्यापमं की करतूत। एक बार फिर जब हर जुबां पर व्यापमं ही व्यापमं है। तब यह जानना जरूरी हो जाता है कि घोटालों की भीड़ में मध्यप्रदेश से निकले हर भारतीय की जुबां पर चढ़ने वाली ये बला क्या है। राजनीतिक और प्रशासनिक गठजोड़ ने लाखों योग्य युवाओं के सपनों पर मानो भ्रष्टाचार का बुलडोजर चला दिया। शिक्षक भर्ती परीक्षा का परचा मोबाइल फोन पर सामने आया तो एक बार फिर 14 साल पुराने घोटाले का सिलसिला लोगों के दिमाग में कौंध गया है। इस परचे ने राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया। आइए हम आपके सामने व्यापमं घोटाले की परत दर परत खोलकर ये बताते हैं कि आखिर इसकी पहली चिंगारी कहां से उठी जिसने प्रचंड आग का रूप लेकर मध्यप्रदेश को पूरी दुनिया में कुख्यात कर दिया। जुलाई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामले की जांच स्थानांतरित करने के लिए एक आदेश जारी किया। ये मामला एसटीएफ से सीबीआई के हवाले कर दिया गया।
क्या है व्यापमं: सरकारी नियुक्तियों के लिये हर राज्य में एक तरह के बोर्ड का गठन किया गया है। जैसे बिहार में बिहार लोक सेवा आयोग और बिहार कर्मचारी चयन आयोग, केंद्र के स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन आयोग। ठीक इसी तरह मध्यप्रदेश में सरकार की सेवा के लिये जिस कानूनी इकाई की स्थापना की गई, उनमें से एक है व्यवसायिक परीक्षा मंडल। इसे ही व्यापमं कहते हैं। व्यापमं का काम पेशेवर पाठ्यक्रमों जैसे मेडिकल में प्रवेश के लिये परीक्षाओं के साथ राज्य सरकार के विभिन्न पदों पर नियुक्तियों के लिये भी परीक्षाएं आयोजित कराना रहा है। घोटाला सामने आने के बाद व्यापमं का नाम बदलकर पीईबी कर दिया गया।
कैसे आया घोटाला सामने: यूं तो व्यापमं द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में धांधली का मामला पहले से उठता रहा लेकिन वर्ष 2008 से 2013 के बीच इसमें धांधली अपने चरम पर पहुंची। साल 2009 में इंदौर के रहने वाले चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय ने व्यापमं में धांधली का खुलासा किया। उन्होंने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में इन धांधलियों का जिक्र करते हुए एक जनहित याचिका दायर की। इस मामले में पहली एफआईआर 2009 में दर्ज हुई। इसके लिए राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया। समिति ने 2011 में अपनी रिपोर्ट जारी की और 100 से ज्यादा लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया।
व्यापमं का पहला बड़ा किरदार जगदीश सागर आया गिरफ्त में: व्यापमं घोटाले की व्यापकता साल 2013 में तब सामने आई, जब इंदौर पुलिस ने 2009 की पीएमटी प्रवेश से जुड़े मामलों में 20 नकली अभ्यर्थियों को गिरफ्तार किया जो असली अभ्यर्थियों के स्थान पर परीक्षा देने आए थे। इन लोगों से पूछताछ के दौरान जगदीश सागर का नाम घोटाले के मुखिया के रूप में सामने आया जो एक संगठित रैकेट के जरिए इस घोटाले को अंजाम दे रहा था। जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार ने 26 अगस्त 2013 को एसटीएफ का गठन किया। इसकी जांच और गिरफ्तारियों से नेताओं, नौकरशाहों, व्यापमं अधिकारियों, बिचौलियों, उम्मीदवारों और उनके माता-पिता की घोटाले में भागीदारी का पर्दाफाश हुआ। 2015 तक 2000 से ज्यादा लोगों को इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। 13 जुलाई 2013 को जगदीश सागर को मुंबई में गिरफ्तार किया गया और उसके पास से 317 छात्रों के नामों की सूची जब्त की गई।
व्यापमं ने बना दिए फर्जी डॉक्टर: जुलाई 2011 में पीएमटी के दौरान 145 संदिग्धों पर नजर रखी गई। संदिग्धों में से अधिकांश उपस्थित नहीं हुए लेकिन 8 संदिग्ध अन्य लोगों के नाम से परीक्षा देते हुए पकड़े गए। इनमें इंदौर में आशीष यादव के स्थान पर परीक्षा देने आया हुआ कानपुर निवासी सत्येन्द्र वर्मा भी शामिल था, जिसे इस काम के लिए 4 लाख रुपए का भुगतान किया गया था। पहले के सालों में चयनित और मैरिट लिस्ट में शामिल 15 अभ्यर्थियों ने भी दोबारा परीक्षा देने हेतु नामांकन करवाया था और उन पर संदेह था कि ये अयोग्य परीक्षार्थियों के साथ पूर्व निर्धारित स्थानों पर बैठकर नकल कराने, उत्तर पुस्तिकाओं की अदला-बदली करने और नकली परीक्षार्थी बनकर अयोग्य उम्मीदवारों के स्थान पर परीक्षा देने में शामिल थे। व्यापमं ने सुधार के लिए परीक्षाओं में बायोमेट्रिक प्रौद्योगिकी का उपयोग शुरू किया गया। परीक्षा में शामिल होने के लिए बायोमेट्रिक तकनीक से सभी परीक्षार्थियों की अंगूठे की छाप एवं फोटोग्राफ लिए जाने लगे। 2009 में बनी कमेटी ने नवंबर 2011 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें ये उल्लेख किया गया कि 114 उम्मीदवार फर्जी तरीके से पीएमटी में चयनित हुए जिन में से अधिकतर अमीर परिवारों से थे। असली के स्थान पर शामिल नकली परीक्षार्थी उम्मीदवारों में कई उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे पड़ोसी राज्यों से आए थे, जिनमें से कुछ डॉक्टर और प्रतिभाशाली मेडिकल छात्र थे। रिपोर्ट में बिचौलियों पर प्रत्येक चयनित उम्मीदवार से दस लाख से चालीस लाख तक वसूलने का अनुमान लगाया गया। निष्कर्षों में यह चिंता भी जताई गई कि घोटाले के माध्यम से पूर्व वर्षों में कई नकली डॉक्टर ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त कर चुके हैं और डॉक्टर के रूप में काम कर रहे हैं। 2012 में इंदौर पुलिस ने पीएमटी परीक्षा में असली उम्मीदवारों के स्थान पर परीक्षा में शामिल होने आए चार लोगों को गिरफ्तार किया। जिनमें से प्रत्येक को 25 हजार से 50 हजार रुपए तक की रकम देने का वादा किया गया था।
अन्य परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा: नवंबर 2013 में एसटीएफ ने पाया कि घोटालेबाजों ने 5 अन्य परीक्षाओं और नौकरियों की चयन प्रक्रियाओं में धांधली की। जिसमें राज्य सरकार के लिए 2012 में आयोजित प्री-पीजी प्रवेश परीक्षा, खाद्य निरीक्षक चयन टेस्ट, मिल्क फेडरेशन परीक्षा, सूबेदार-उप निरीक्षक व प्लाटून कमांडर चयन टेस्ट और पुलिस कांस्टेबल भर्ती टेस्ट शामिल थे। 2012 की प्री-पीजी परीक्षा के लिए व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी और इसकी प्रणाली विश्लेषक नितिन महिंद्रा फोटोकॉपी के माध्यम से अयोग्य उम्मीदवारों को मॉडल उत्तर कुंजी उपलब्ध कराई गई। अन्य चार परीक्षाओं के लिए व्यापमं के भ्रष्ट अधिकारियों ने नियम विरुद्ध जाकर ओएमआर उत्तर पत्रकों को स्ट्रांग रूम से बाहर निकाला गया और उनमें हेरफेर किया गया। इन प्रकरणों में सुधीर शर्मा सहित 153 लोगों के खिलाफ अलग-अलग प्राथमिकी दायर की गयी। सुधीर शर्मा से पूर्व में भी मध्यप्रदेश के खनन घोटाले के सम्बन्ध में सीबीआई द्वारा पूछताछ की गई थी। मार्च 2014 में सरकार ने एसटीएफ द्वारा 9 परीक्षाओं की हेराफेरी की जांच की घोषणा की और 127 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
व्यापमं कांड के सूत्रधार जो पहुंचे सलाखों के पीछे- लक्ष्मीकांत शर्मा, पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री: बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत शर्मा तत्कालीन तकनीकी शिक्षा मंत्री और व्यापमं के प्रभारी थे। उनकी गिरफ्तारी नितिन महेन्द्रा से बरामद एक्सल शीट में उपलब्ध जानकारी के आधार पर निविदा शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोपी के रूप में हुई थी। लेकिन बाद में उन्हें कांस्टेबल भर्ती परीक्षाओं में धांधली का भी आरोपी बनाया गया। एसटीएफ के अनुसार शर्मा ने कांस्टेबल पद पर भर्ती के लिए कम से कम 15 उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश की।
ओपी शुक्ला: ओपी शुक्ला तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का ओएसडी था। लेकिन घोटाले के खुलासे और जांच के रफ्तार पकड़ते ही वह फरार हो गया। जांच टीम द्वारा उसकी तलाश के लिए एक विशेष तलाश नोटिस जारी होने के दो महीने बाद उसने आत्मसमर्पण कर दिया। उस पर कथित तौर से मेडिकल प्रवेश परीक्षा में प्रवेश दिलाने के लिए उम्मीदवारों से 85 लाख रुपए लेने का आरोप लगा।
सुधीर शर्मा: खनन व्यवसायी सुधीर शर्मा भी कभी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का ओएसडी रहा है। उस पर 2012 के पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा घोटाले में लिप्तता का आरोप है। खुलासे के शुरुआती दिनों में फरार रहने के बाद उसने दिसंबर 2013 में एसटीएफ के सामने सरेंडर कर दिया।
आरके शिवहरे, निलंबित आईपीएस अधिकारी: आरके शिवहरे को व्यापमं द्वारा आयोजित 2012 की उपनिरीक्षक और प्लाटून कमांडर परीक्षा की भर्ती घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए दोषी माना जाता है। उस पर अपनी बेटी और दामाद को धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के माध्यम से मेडिकल परीक्षा में प्रवेश दिलाने का भी आरोप है। जांच एजेंसी ने जब उसके खिलाफ मामला दर्ज किया तब वह निलंबित था और गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हो गया। उस पर 3 हजार रुपए का इनाम रखे जाने के बाद उसने 21 अप्रैल, 2014 को आत्मसमर्पण कर दिया।
रविकांत द्विवेदी, निलंबित संयुक्त आयुक्त (राजस्व): द्विवेदी को अनुचित साधनों के माध्यम से अपने बेटे का प्रवेश राज्य के एक नामचीन मेडिकल कॉलेज में करवाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और बाद में राज्य के भ्रष्टाचार विरोधी शाखा ने उसके घर पर छापा मारकर 70 करोड़ रुपए की आय से अधिक संपत्ति, गहने और नगदी जब्त की।
डॉ. संजीव शिल्पकार: भोपाल निवासी शिल्पकार मेडिकल कॉलेज में जगदीश सागर का जूनियर था और उसने जगदीश सागर से प्रभावित होकर अपना ही रैकेट शुरू किया। पीएमटी 2013 में उसने 92 अयोग्य उम्मीदवारों के चयन की सूची बनाई थी, जिनमें से 45 उम्मीदवारों से उसने 3 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त की। इस राशि के माध्यम से शिल्पकार ने नितिन महिंद्रा, नकली उम्मीदवारों, बिचौलियों, दलालों समेत व्यापमं के अधिकारियों को रिश्वत दी।
सुधीर राय, संतोष गुप्ता, तरंग शर्मा: यह गिरोह कथित रूप से सागर के गिरोह की तुलना में बहुत बड़ा और अधिक संगठित था जो प्रति उम्मीदवार चयन के लिए 25 लाख से अधिक वसूलता था। इस गिरोह के तार कर्नाटक और महाराष्ट्र में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश से जुड़े होने के भी आरोप हैं। राय-गुप्ता रैकेट की शाखाएं उज्जैन, शहडोल, सागर और रतलाम समेत कई शहरों में थी। राय उम्मीदवारों की व्यवस्था करता था और गुप्ता बिहार से उनके लिए नकली उम्मीदवार बुलवाता था।
पंकज त्रिवेदी, तत्कालीन व्यापमं परीक्षा नियंत्रक: त्रिवेदी को सितंबर 2013 में गिरफ्तार किया गया। राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक पुलिस ने उसके कब्जे से करीब 2.5 करोड़ रुपए और अज्ञात स्त्रोतों से जमा की कई बेनामी सम्पति जब्त की है। जो उसकी आय से कई गुना अधिक है। इंदौर स्थित एक मेडिकल कॉलेज में भी उसकी भागीदारी होने के साक्ष्य भी पाए गए हैं।
सीके मिश्रा, तत्कालीन अधिकारी, व्यापमं: सीके मिश्रा ने स्वीकार किया कि वह डॉ. सागर, संतोष गुप्ता और संजीव शिल्पकार के लिए 2009 से काम कर रहा था। 2009 में डॉ. सागर ने उसे 20 उम्मीदवारों के रोल नंबर इस प्रकार देने के लिए कहा ताकि वो एक निश्चित क्रम में ठीक एक-दूसरे के पीछे आएं। इस कार्य के लिए डॉ सागर ने मिश्रा को प्रति छात्र 50000 रुपए यानी कुल 10 लाख रुपए दिए। 2010 में डॉ. सागर ने 40 अभ्यर्थियों की सूची दी है और इस बार 20 लाख रुपए का भुगतान किया गया। 2012 में डॉ. सागर ने 60 छात्रों के और शिल्पकार ने 20 छात्रों के रोल नंबर निश्चित क्रम में निर्धारित करने को कहा और मिश्रा को दोनों से 30 लाख और 10 लाख रुपए प्राप्त हुए।
नितिन महेन्द्रा (प्रधान सिस्टम एनालिस्ट) और अजय सेन (वरिष्ठ सिस्टम एनालिस्ट): व्यापमं प्रोग्रामर यशवंत पर्नेकर और क्लर्क युवराज हिंगवे ने अपने बयान में कहा कि महिंद्रा और सेन के कंप्यूटर व्यापमं के मुख्य सर्वर के साथ जुड़े हुए नहीं थे। इन दोनों अधिकारियों की पहुंच व्यापमं के डेटा संग्रहित करने वाले 25 अन्य कंप्यूटरों तक थी लेकिन इनके कंप्यूटर में डेटा किसी अन्य द्वारा नहीं देखा जा सकता था। इसका लाभ उठाकर ये दोनों अपनी मर्जी से रोल नंबर और परीक्षा केन्द्र आवंटित करते थे।
इन्होंने उजागर किया व्यापमं कांड- पारस सकलेचा, पूर्व विधायक: तत्कालीन विधायक पारस सकलेचा ने 2009 से सदन में मेडिकल दाखिलों के दौरान होने वाली कथित धांधलियों को उठाया था। जुलाई 2014 में व्यापमं मुद्दे पर विधानसभा में स्थगन प्रस्ताव के दौरान जब चर्चा हुई तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सदन में कहा था, जब पारस सकलेचा ने 2009 में सवाल पूछे थे तब हमने समिति बनाई थी जिसने छानबीन की और उसके बाद संदिग्ध छात्र पहचाने गए थे।
आशीष चतुर्वेदी, सामाजिक कार्यकर्ता: आशीष के अनुसार उन्होंने व्यापमं की परीक्षाओं में शामिल लोगों के बीच घुसपैठ करके सच का पता करने की ठानी। मध्यप्रदेश में कथित डीमेट घोटाले में सबसे पहले आशीष ने ही ग्वालियर में फर्जी परीक्षार्थी होने की शिकायत की थी। इस शिकायत के बाद ही पुलिस हरकत में आई और सिलसिलेवार गिरफ्तारियां हुईं।
प्रशांत पांडे, तकनीकी जानकार: प्रशांत के बारे में जानकारों की राय है कि इन्हीं के जरिए मध्यप्रदेश की मौजूदा सरकार के कुछ कथित बड़े लोगों के नाम व्यापमं घोटाले से जोड़े जाने लगे। कुछ साल पहले तक प्रशांत पांडे मध्यप्रदेश की जांच एजेंसियों के साथ काम करते थे क्योंकि कंप्यूटर तकनीक और इससे जुड़ी तमाम चीजों के बारे में उन्हें महारत हासिल है। बताया जाता है कि खुद प्रशांत संदिग्ध अधिकारियों के कंप्यूटरों की हार्ड ड्राइव से डेटा निकालने में जांच एजेंसियों का सहयोग कर रहे थे। लेकिन प्रशांत के मुताबिक उनकी मुश्किलें तभी से शुरू हुईं जब उन्हें खुद कुछ ऐसा डेटा (एक्सल शीट) मिला जिसमें कई बड़े लोगों के नाम शामिल थे।
आनंद राय, डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता: इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर आनंद राय ने पीएमटी परीक्षाओं में फर्जी परीक्षार्थियों के बैठने की शिकायत की थी। इन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय पुलिस इन्हें सुरक्षा नहीं दे रही है। इसके बाद हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के निर्देश पर इन्हें सुरक्षा गार्ड दिया गया। आनंद राय चर्चा में तब आए थे जब उन्होंने दवाओं के अनैतिक परीक्षणों और उनमें शामिल सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की भूमिका पर सवाल उठाए थे। आनंद राय ने ही इंदौर की स्थानीय पुलिस को जानकारी दी थी कि शहर के होटलों में फर्जी परीक्षार्थी पहुंचे हुए हैं। दबिश के बाद बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं।
व्यापमं में कई लोगों ने गंवाई जान: घोटाले से जुड़े कई संदिग्धों की जांच के दौरान कथित तौर पर संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। 2015 में एसटीएफ ने घोटाले से जुड़े लोगों की मौत को अप्राकृतिक मानते हुए 23 मृतकों की सूची हाईकोर्ट में प्रस्तुत की और बताया कि अधिकांश की मौत जुलाई 2013 में एसटीएफ के गठन से पहले हो गई थी। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि घोटाले से जुड़े 40 से अधिक लोगों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हुई है। इन मौतों में से 10 संदेहास्पद मौतें हैं। इनमें अक्षय सिंह, नम्रता डामोर, नरेंद्र तोमर, डीके साकल्ले, अरुण शर्मा, राजेंद्र आर्य की मौत और चार बिचौलियों की सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतें शामिल हैं।