GWALIOR . ग्वालियर का ईसाई समाज इस समय अपने कब्रिस्तानों से भयभीत है। अगर समाज के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसको दफनाने के लिए वे कब्रिस्तान जाते हैं तो तब तक चिंता और भय में रहते हैं जब तक कि वे वहां से सकुशल अपने घर नहीं लौट आते। इसकी वजह है कब्रिस्तान में सांपो का डेरा ज़माना। इनमें अजगर भी शामिल है। अब अपने इस भय से मुक्ति दिलाने के लिए समाज के लोगों ने नगर निगम का दरवाजा खटखटाया है।
जनसुनवाई में पहुंचे लोग
ग्वालियर क्रिश्चियन कौंसिल मुरार के नेतृत्व में ईसाई समाज का एक प्रतिनिधिमंडल आज नगर निगम में चल रही जन सुनवाई में पहुंचा। उन्होंने लिखित में अपना आवेदन भी दिया। इसमें बताया गया कि मुरार में श्यामलाल पाण्डवीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पीछे उनका बहुत प्राचीन कब्रिस्तान है। ईसाई समाज में जब किसी की मौत हो जाती है तो उसे दफनाने के लिए वहां ले जाते है। लेकिन देखरेख के अभाव में अब इस कब्रिस्तान की हालत बहुत भयावह है। इसमने झाड़ - झंकाड़ लगे है और गंदगी का अम्बार है। इसमें बड़ी संख्या में हिंसक जानवर घूमते रहते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इसमें साँपों ने स्थायी डेरा बना लिया है और अंतिम संस्कार के लिए जाते वक्त वहां कभी भी सांपनीक्ला आते हैं। कई बार तो अजगर भी निकल आया लेकिन खुशकिस्मती रही कि अब तक किसी को काटा नहीं लेकिन सबको भी बना रहता है।
नगर निगम ने दिया आश्वासन
इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे सुजीत विलियम्स ने बताया कि गंदगी के कारण वहां रुक पाना भी मुश्किल होता है। आज सारी बातें नगर निगम अधिकारियों को बताएं और उन्होंने भरोसा दिलाया है कि जल्द ही विभाग के लोग वहां जाकर स्थिति देखकर वहां की व्यवस्थाओं को ठीक करेंगे।
1857 की क्रांति के समय का है कब्रिस्तान
ग्वालियर में ईसाई समाज का यह कब्रिस्तान अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि 1857 की पहली क्रांति के बाद अंग्रेजों ने ग्वालियर के मुरार इलाके में अपनी छावनी बनाई थी। उस समय बड़ी संख्या में अंग्रेजी सेना के अफसर वहां रहते थे इसलिए वहां गिरिजाघर और कब्रिस्तान भी बनाये गए थे। इस क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद भी बड़ी संख्या में क्रिश्चियन रहते थे हालाँकि धीरे -धीरे अब उनकी संख्या कम हो गयी। ग्वालियर में अनेक ब्रटिशर्स की कब्र भी है। कुछ वर्ष पहले अंग्रेजो का एक दल अपने पूर्वजों की स्मृतियों की तलाश में इन कब्रिस्तानों में भी गया था।