MP में कमिश्नर सिस्टम: CP को सिर्फ मजिस्ट्रियल पॉवर, इसकी जरूरत क्यों पड़ी, समझें

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MP में कमिश्नर सिस्टम: CP को सिर्फ मजिस्ट्रियल पॉवर, इसकी जरूरत क्यों पड़ी, समझें

भोपाल. पुलिस (police) को अधिक सक्षम और अधिकार संपन्न बनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने पुलिस कमिश्नर सिस्टम (police commissioner system) लागू करने का फैसला लिया है। शुरुआत में यह सिस्टम राजधानी भोपाल (bhopal) और इंदौर (indore) शहर में लागू किया जा रहा है। इन शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद सभी मजिस्ट्रियल अधिकार (mejistrial power) पुलिस को मिल जाएंगे। कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद लॉ एंड आर्डर ऑर्डर (law and order) की पूरी जिम्मेवारी पुलिस के हाथ में आ जाएगी। आइए आपको प्रदेश में जल्द लागू किए जा रहे पुलिस कमिश्नर सिस्टम से जु़ड़ी वो सभी बातें बताते हैं जो आपके लिए जानना जरूरी है।

कैसे अलग है नया सिस्टम ? 

अभी जिलों में कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी कलेक्टर (collector) और एसपी (SP) की संयुक्त रूप से होती है। इसके तहत दंडात्मक कार्रवाई के अधिकार कलेक्टर (DM) और उसके अधीन प्रशासनिक अफसरों एडीएम (adm), एसडीएम (sdm) और एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (executive megistrate) के रूप में तहसीलदार और नायब तहसीलदार के पास रहते हैं। भोपाल-इंदौर में नया लागू होने के बाद यह अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास आ जाएंगे। 

पुलिस कमिश्नर के पास CRPC के अधिकार 

कमिश्नर सिस्टम मौजूदा सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था से कई मायनों में अलग है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम में दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC ) के सारे अधिकार IPS को मिल जाते हैं। इस स्थिति में कानून व्यवस्था से जुड़े कोई भी निर्णय पुलिस कमिश्नर तत्काल ले सकते हैं। सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में यह अधिकार कलेक्टर (DM) के पास होते हैं। यानी किसी भी फैसले जैसे- दंगे जैसी स्थिति में लाठीचार्ज या फायरिंग करने के लिए डीएम, एडीएम या एसडीएम से अनुमति लेनी पड़ती है। सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था में CRPC जिलाधिकारी यानी कलेक्टर को कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए कई शक्तियां प्रदान करता है।

क्यों पड़ी इस सिस्टम की जरूरत?

कमिश्नरी व्यवस्था में पुलिस तुरंत कार्रवाई कर सकती है, क्योंकि इस व्यवस्था में जिले की बागडोर संभालने वाले IAS अफसर डीएम की जगह पावर कमिश्नर के पास चली जाती है। यानी धारा-144 लगाने, कर्फ्यू लगाने, 151 में गिरफ्तार करने, 107/16 में चालान करने जैसे कई अधिकार सीधे पुलिस के पास रहेंगे। ऐसी चीजों के लिए पुलिस अफसरों को बार-बार प्रशासनिक अधिकारियों का मुंह नहीं देखना होगा। अभी इन सभी कार्रवाई के लिए पुलिस को जिला प्रशासन के अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती है। इससे कई बार पुलिस को एक्शन लेने में अनावश्यक देरी होती है। 

नए सिस्टम में पुलिस को ये अधिकार मिलेंगे

नए सिस्टम में भोपाल, इंदौर के पुलिस कमिश्नर को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 107/ 116, 144, 133, पुलिस एक्ट, मोटरयान अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA), राज्य सुरक्षा अधिनियम (जिला बदर), प्रिजनर एक्ट, अनैतिक देह व्यापार अधिनियम, शासकीय गोपनीय अधिनियम आदि के अधिकार दिए जाएंगे। 

नए सिस्टम से क्या फायदा होगा ?

151 की कार्रवाई
पुरानी व्यवस्था: मजिस्ट्रेट अपने स्तर से कार्रवाई कर अधिकतर मामलों में तत्काल जमानत देते हैं।
नई व्यवस्था: मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस कमिश्नर को दिए गए अधिकार के तहत कार्रवाई होगी।

गुंडा एक्ट
पुरानी व्यवस्था : ऐसे मामलों में लंबी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है।
नई व्यवस्था: इस तरह के मामलों को निपटाने में तेजी आएगी।

107-116 की कार्रवाई
पुरानी व्यवस्था: यह सिर्फ रस्म अदायगी बनकर रह गई थी। इसके तहत पाबंद किए गए लोग यदि दूसरी घटना में शामिल होते थे, तो कोई कार्रवाई नहीं होती थी।
नई व्यवस्था : अब पुलिस सीधे तौर पर निर्धारित पाबंदियों के अनुसार कार्रवाई करने के लिए अपने स्तर से ही निर्णय ले सकेगी। कार्रवाई के लिए कलेक्टर की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।

पुलिस कमिश्नर को मिलते हैं मजिस्ट्रेट के पॉवर

भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के अंतर्गत जिलाधिकारी यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) के पास पुलिस पर नियंत्रण के अधिकार भी होते हैं। इस पद पर IAS अधिकारी बैठते हैं, लेकिन पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो जाने के बाद ये अधिकार पुलिस कमिश्नर को मिल जाएंगे, जो IPS सेवा का अफसर होता है। जिले की बागडोर संभालने वाले कलेक्टर यानी डीएम के बहुत से अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास चले जाएंगे।

क्या नए सिस्टम में पुलिस की अलग कोर्ट होगी?

कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद धारा-151 और 107/16 के मामलों की सुनवाई के लिए अलग पुलिस कोर्ट बनेगी। इसमें पुलिस को जिले के शहरी क्षेत्र में  कानून-व्यवस्था संभालने के लिए मिले अधिकारों का अनुपालन कराने से संबंधित मामलों की सुनवाई और निर्णय होगा। बाकी अन्य आपराधिक मामलों के लिए न्यायिक न्यायालय में ही सुनवाई होगी।

नए सिस्टम में पुलिस अफसर और उनका ओहदा

अधिकारी

पद संख्या ADG कमिश्नर 1 IG जॉइंट कमिश्नर 1 DIG  एडिशनल कमिश्नर 3 SP डिप्टी कमिश्नर 8 Addl. SP एडिशनल डिप्टी कमिश्नर 12 DSP असिस्टेंट कमिश्नर 29

16 राज्यों के 68 शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम 

देश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम अभी 16 राज्यों के 68 शहरों में लागू है। आंध्र प्रदेश में दो, असम में एक,  दिल्ली में एक, गुजरात के 4, हरियाणा के 3, कर्नाटक के 6,  केरल के 5, महाराष्ट्र के 12, नागालैंड के एक, उड़ीसा के एक, पंजाब के तीन, राजस्थान के दो, तमिलनाडु के 7,  तेलंगाना के 9, उत्तर प्रदेश के 4 , बंगाल के 7 शहरों में पुलिस कमिशनर प्रणाली लागू है। मध्यप्रदेश के भोपाल इंदौर में यह सिस्टम लागू होने पर ऐसे शहरों की संख्या बढ़कर 70 हो जाएगी।

पुलिस कमिश्नर सिस्टम के विरोध में IAS लॉबी

प्रदेश की आईएएस लॉबी के साथ राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राज्य के बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किए जाने का विरोध कर रहे हैं। इन दोनों ही सेवाओं के अफसर नहीं चाहते कि पुलिस अफसरों को मजिस्ट्रियल पॉवर दिए जाएं क्योंकि इससे शासन-प्रशासन में उनके अधिकार के साथ रुतबा भी कम होगा। चूंकि अभी प्रदेश के जिलों में पुलिस अधीक्षक यानी एसपी को प्रशासनिक सेटअप में कलेक्टर पर मातहत के तौर पर देखा जाता है। आईएएस लॉबी (IAS lobby) शासन- प्रशासन में अपनी सर्वोच्चता बरकरार रखने के लिए पुलिस कमिश्नर सिस्टम का विरोध कर रही है।

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