ललित उपमन्यु ,Indore. ये शहर की पहली महिला मेयर(female mayor) की कहानी है। ऐसी मेयर जो वार्ड पार्षद(Ward Councilor) का चुनाव(Election)हार चुकी थीं। मेयर का टिकट मिला तो शहर के तीन कद्दावर विधायकों ने विरोध में इस्तीफे दे दिया। सांसद भी नाराज होकर हाईकमान तक पहुंच गई। उसके बावजूद चुनाव लड़ीं और जीत गईं। ये टिकट और चुनाव आज भी राजनीतिक हलकों में चर्चित है।
उमाशशि शर्मा
2005 से 2010 तक इंदौर की मेयर रहीं। राजनीति की शुरुआत बेहद खराब रही। 1983 में जब पार्षद का पहला चुनाव लड़ा तो जहां रहती थीं उसी घरेलू वार्ड से चुनाव हार गईं। लगा था राजनीति खत्म हो गई लेकिन तब के बीजेपी के बड़े नेताओं की नजर में वे संभावनाशील नेता थीं इसलिए उन्हें राजनीति बनाए रखा। 1995 के चुनाव में फिर टिकट दिया तो जीत गईं और 2000 में भी जीत दोहराई। यहां तक का सफर बतौर पार्षद ही रहा लेकिन उसके बाद अचानक राजनीति में उछाल आया।
गुटबाजी में मिला टिकट
इसे उमाशशि शर्मा(umashi sharma) का भाग्य कहें या बीजेपी की गुटबाजी से उपजे हालात वे अचानक मेयर का टिकट ले आईं। वे उससे पहले की कैलाश विजयवर्गीय(Kailash Vijayvargiya) की परिषद में महापौर परिषद में शामिल होकर थोड़ी ऊंचाई पा चुकी थीं, लेकिन इतनी ख्याति कतई नहीं थीं कि मेयर का टिकट ले आए। लेकिन बीजेपी की गुटबाजी में उनका भला हो गया। दरअसल 2005 में इंदौर में मेयर की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित हो गई थी। तब भाजपा में मजबूत महिला उम्मीदवार की तलाश शुरू हुई। सांसद सुमित्रा महाजन (MP Sumitra Mahajan) ने पूरी ताकत अपनी कट्टर समर्थक अंजू माखीजा के लिए लगा दी। इधर विजयवर्गीय गुट के पास कोई महिला उम्मीदवार नहीं थी, लेकिन वे अंजू माखीजा को हर हाल में रोकना चाहते थे। तब प्रकट हुईं उमाशशि शर्मा। विजयवर्गीय ने अपनी उम्मीदवार बतौर उनका नाम आगे बढ़ाया। संगठन महामंत्री कप्तान सिंह सोलंकी (Organization General Secretary Kaptan Singh Solanki)के सहयोग से उनका टिकट हो भी गया।
तीन विधायकों के इस्तीफे, सांसद नाराज फिर भी जीत गईं
जैसे ही पार्टी ने उमाशशि का नाम मेयर उम्मीदवार के लिए घोषित किया, पार्टी में भूचाल आ गया। तीन विधायक लक्ष्मणसिंह गौड़, उषा ठाकुर और महेंद्र हार्डिया भी तब सुमित्रा महाजन के साथ थे। शर्मा के टिकट का विरोध इतना तेज हुआ कि तीनों विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। महाजन ने भी गहरी नाराजगी जाहिर कर हाईकमान से बात करने का बयान दिया। बीजेपी जैसी पार्टी में तीन-तीन विधायक इस्तीफा दे दें, 20 साल पुरानी सांसद नाराजगी जाहिर कर दे तो चुनाव के नतीजों की कल्पना की जा सकती है।
टिकट बरकरार,इस्तीफे नामंजूर
तमाम विरोध के बावजूद पार्टी ने उमाशशि शर्मा का टिकट बरकरार रखा। जिन विधायकों ने इस्तीफे दिए थे उन्हें नामंजूर कर सभी को काम पर लगा दिया। वो चुनाव पार्टी के लिए काफी कठिन रहा। कांग्रेस की उम्मीदवार शोभा ओझा ने उमाशशि को कड़ी टक्कर दी । वे कई विधानसभा में शर्मा से आगे रहीं। हालांकि विजयवर्गीय की विधानसभा नंबर दो और लक्ष्मणसिंह गौड़ की विधानसभा नंबर चार में मिली भारी लीड के चलते अंततः उमाशशि करीब 22 हजार वोट से चुनाव जीत पाईं। इससे पहले का मेयर का चुनाव बीजेपी एक लाख से ज्यादा वोटों से जीती थी। आज जब भी के मेयर टिकट और उसकी खींचतान का जिक्र आता है तो उमाशशि के टिकट, इस्तीफे और जीत का जिक्र जरूर होता है।