MP: स्कूल शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा अभियान में आकांक्षी जिलों की हालत खराब

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Ruchi Verma
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MP: स्कूल शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा अभियान में आकांक्षी जिलों की हालत खराब

BHOPAL: मध्य प्रदेश में शिक्षा के पिछड़ेपन की तस्वीर एक बार फिर सामने आई है। प्रधानमंत्री के आकांक्षी जिलों में शुमार होने के बाद भी राज्य के कई जिलों में शिक्षा के क्षेत्र में स्थिति दयनीय बनी हुई है। कहीं बच्चे एक कक्षा से अगली कक्षा में आगे ही नहीं बढ़ पा रहे हैं, तो कहीं बच्चियां स्कूल नहीं जा पा रहीं हैं, कहीं COVID-19 की वजह से बच्चे परिजनों के साथ पलायन करने को मजबूर हो गए, तो कहीं शिक्षा की बुनियादी सेवाओं की व्यवस्था ही ख़राब है। मध्य प्रदेश राज्य नीति एवं योजना आयोग के अनुसार शिक्षा क्षेत्र में मैनपावर की कमी भी एक बड़ी समस्या है।





दरअसल, केंद्र सरकार के नीति आयोग ने जनवरी 2018 में देश के 112 अति पिछड़े जिलों में “आकांक्षी जिला कार्यक्रम” नाम की फ्लैगशिप योजना की शुरुआत की थी। योजना का मकसद था-  इन बेहद पिछड़े जिलों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करना। इन सभी जिलों को शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, वित्तीय समावेशन और बुनियादी सुविधाओं के स्तर को ऊंचा करना था। नीति आयोग ने इन क्षेत्रों में हुए विकास को मापने के लिए निर्धारित पैरामीटर्स तय किए हैं। जिनके आधार पर जिलों में हुए काम की समीक्षा और निगरानी की जाती है।





मध्य प्रदेश के भी विकास के मापदंड में पिछड़ चुके 8 जिलों - दमोह, सिंगरौली, खंडवा (ईस्ट निमाड़), बड़वानी, राजगढ़, विदिशा, छत्तरपुर और गुना - को इसमें शामिल किया गया था। अब योजना को शुरू हुए 5 साल बीत गए है पर MP के आठ जिलों में से अगर छत्तरपुर और गुना को छोड़ दिया जाए तो बाकी के 6 जिलें -  दमोह, सिंगरौली, खंडवा (ईस्ट निमाड़), बड़वानी, राजगढ़ और विदिशा - करोड़ों का फंड मिलने के बावजूद भी शिक्षा के पैरामीटर्स पर पिछड़े ही हुए हैं। ऐसा खुद निति आयोग की वेबसाइट पर दर्ज आंकड़े बता रहे हैं, जिनमें योजना के शुरुआत से लगातार गिरावट ही दिखाई दे रही है। आंकड़ों में ये गिरावट यूं ही नहीं है, बल्कि जमीन पर शिक्षा के हालात वाकई खराब हैं। देखिये द सूत्र की ये ग्राउंड रिपोर्ट....





सबसे पहले जानिये की शिक्षा के क्षेत्र में आकांक्षी जिला योजना कैसे काम करती है





इस योजना में जिलों में शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, वित्तीय समावेशन और बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में हुए काम को मापने के लिए इंडीकेटर्स तय किये गए हैं। जैसे स्कूली शिक्षा के कार्यों को मापने के लिए कुल 14 इंडीकेटर्स तय हैं। इन इंडीकेटर्स  के आधार पर जिलों को नंबर दिए जाते हैं। इन नंबरों के आधार पर ही बाद में इन जिलों की  रैंकिंग की जाती है। इस रैंकिंग को डेल्टा रैंकिंग कहा जाता है। जो जिले अच्छा परफॉर्म करते हैं उन्हें अवॉर्ड दिया जाता है। शिक्षा के स्तर को मापने के लिए जो कुल 14 इंडीकेटर्स हैं, वो हैं:







  • कक्षा 3 का गणित में प्रदर्शन



  • कक्षा 3 का भाषा में प्रदर्शन


  • कक्षा 5 का गणित में प्रदर्शन


  • कक्षा 5 का भाषा में प्रदर्शन


  • कक्षा 8 का गणित में प्रदर्शन


  • कक्षा 8 का भाषा में प्रदर्शन  


  • महिला साक्षरता दर (15+ आयु वर्ग)


  • लड़कियों के उपलब्ध शौचालय वाले स्कूलों का प्रतिशत


  • पेयजल सुविधा उपलब्ध रखने वाले विद्यालयों का प्रतिशत


  • माध्यमिक स्तर पर बिजली सुविधा वाले स्कूलों का प्रतिशत


  • ऐसे प्राथमिक विद्यालयों का प्रतिशत जो RTE द्वारा निर्दिष्ट विद्यार्थी शिक्षक अनुपात  का अनुपालन करते हैं


  • शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के 1 महीने के भीतर बच्चों को पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराने वाले स्कूलों का प्रतिशत


  • प्राथमिक से उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर तक स्टूडेंट्स ट्रांजीशन की दर


  • उच्च प्राथमिक से माध्यमिक विद्यालय स्तर तक स्टूडेंट्स ट्रांजीशन की दर






  • 50 करोड़ रुपए के बावजूद नतीजा सिफर







    • इन जिलों में शिक्षा की यह हालत तब है जब नीति आयोग द्वारा बड़वानी जिले को 13 करोड़ रुपए का फण्ड सैंक्शन हुआ था, और छतरपुर को 14 करोड़ 70 लाख रुपए जारी किये गए हैं।



  • साथ ही दमोह को 25,41,200 रुपए दिए गए हैं। तो गुना को 7 करोड़ 14 लाख 56 हज़ार 560 रुपए सैंक्शन हुए हैं।


  • राजगढ़ जिले को आयोग अब तक 8 करोड़ 35 लाख रुपए दे चुका है। सिंगरौली के पास 30 करोड़ रुपए से ज्यादा का DMF मौजूद होने की वजह से नीति आयोग ने अलग से फंड जारी नहीं किया हैं।


  • तो वहीं विदिशा को नीति आयोग ने 5 करोड़ रुपए आकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत जिले में सभी क्षेत्रों में विकास के लिए दिए हैं।


  • तीन जिलों को सिर्फ शिक्षा विकास के लिए ही 12.53 करोड़ रुपए- इस पूरे फंड्स में से राजगढ़ जिले को 4.53 करोड़ रुपए, बड़वानी को 3 करोड़ रुपए, छतरपुर को कुल 5 करोड़ से ज्यादा की राशि सिर्फ शिक्षा में कार्य के लिए दिया गया था।






  • केस स्टडीज 





    राजगढ़: 4.53 Cr रुपए के फंड के बाद शिक्षा आंकड़ें ख़राब, पर आधिकारिक रवैया ढीला







    • उचावडा ग्राम का शासकीय प्राथमिक विद्यालय: जब द सूत्र की टीम राजगढ़ जिले के उचावडा ग्राम के शासकीय प्राथमिक विद्यालय पहुंची, तो पता चला कि विद्यालय की हालत काफी जर्जर है। विद्यालय की छत टपकती है...और भवन स्कूली बच्चों के बैठने लायक नहीं है। और इसीलिए कई बच्चे स्कूल नहीं आते हैं। स्थानीय ग्रामीणों और शिक्षकों की शिकायत है कि प्राथमिक स्कूल कि बिल्डिंग बारिश की वजह से नीचे आ चुकी है। और बच्चों को बिठाने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने अपने स्तर पर बच्चों को बैठाने की व्यवस्था की है। विद्यालय में 52 बच्चे दर्ज हैं पर 35 ही आतें हैं। सिर्फ उचावडा ग्राम में ही ये शिकायत नहीं है। बल्कि शिवगढ़, अरण्या, भड़का ग्रामों में स्कूलों के भवन भी ख़राब हालत में है। एक तो बच्चे पहले ही स्कूल में आ नहीं रहे और बैठ नहीं पा रहे....इस पर चौंकाने वाली बात ये कि जो बच्चे आ रहे हैं...उनमें के कुछ झाड़ू लगाते मिले! यह सब तब जब नीति आयोग ने राजगढ़ के स्कूल शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए स्पेशल  साढ़े चार करोड़ रु. का आवंटन किया था, लेकिन हालात नहीं बदले।



  • राजगढ़ जिले में को शिक्षा कार्यों में विकास के लिए निति आयोग द्वारा 4.53 करोड़ रुपए का स्पेशल आवंटन किया गया है। 60 लाख रुपए एक्सीलेंस स्कूल्ज में कम्युनिटी लाइब्रेरीज बनाने के लिए, 1.14 करोड़ रुपए स्कूलों में साइंस लैब्स और टीचर ट्रेनिंग देने के लिए, 1.15 करोड़ रुपए 100 आंगनबाड़ियों में बच्चों के अर्ली देखभाल और शिक्षा (ECCE) में मजबूती लाने के लिए, 61.74 लाख रुपए प्रभावी शिक्षाशास्त्र के माध्यम से मिशन मोड में मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) (ग्रेड 3-5) प्राप्त करने के लिए, 1.02 करोड़ रुपए राजगढ़ जिला शिक्षा के अंतर्गत 20 सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम की स्थापना के लिए। पर इतने सारे फंड्स मिलने के बावजूद राजगढ़ जिले के आकांक्षी जिला योजना के आंकड़ों में गिरावट जारी है।


  • जब साल 2018 में योजना की शुरुआत हुई थी तब शिक्षा के क्षेत्र में राजगढ़ का स्कोर 49.91 था.... जो मार्च 2021 में  तो बढ़कर 67.3 हुआ.....पर इसके बाद इस स्कोर में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई और मार्च 2022 को यह 67.4 ही रहा। यानी एक साल में कुछ सुधार नहीं हुआ। वहीँ अगर हम राजगढ़ में शिक्षा के क्षेत्र में अप्रैल से जुलाई तक हुई परसेंटेज इम्प्रूवमेंट की बात करते हैं तो इसमें गिरावट ही दर्ज हो रही है। (अप्रैल 2022: 33.06; जुलाई 2022: 32.94)।


  • ये तो थी ख़राब आंकड़ों की बात....इसपर जिले के शिक्षा अधिकारियों का ढीला रवैया। राजगढ़  संभाग के जिला शिक्षा अधिकारी बी एस बिसोरिया के अनुसार वो तो  एजुकेशन का स्तर बढ़ाने के लिए सारी कोशिशें कर रहे हैं। आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने कि कोशिशें जारी हैं। कार्ययोजना पर काम भी हो रहा है। टीचर्स को भी ट्रेनिंग दी जा रही है। यहाँ तक कि बच्चों के लिए स्मार्ट क्लासेस भी बनाई गई हैं। फिर सवाल उठता है की क्यों जिला आकांक्षी जिला योजना में शिक्षा में अच्छा नहीं कर पा रहा? इस सवाल पर जिला शिक्षा अधिकारी वही रटा-रटाया जवाब दे देते हैं कि अगर फिर भी कोई कमी है तो उसमें सुधार के प्रयास किये जायेंगें।


  • आपको बता दें की हाल ही में शिक्षा विभाग ने राजगढ़ जिले के करीब 84 से 100 प्राइवेट स्कूलों की मान्यता इसलिए रद्द कर दी क्यूंकि उनके पास जरूरी व्यवस्थाएं नहीं थी जैसे पर्याप्त शिक्षकों का स्टाफ न होना, बच्चों के पढ़ने के लिए बेहतर वातावरण न होना,  शौचालय न होना, खेल मैदान और विभिन्न तरह की जरूरत पूरी न होना। सरकार ने शिक्षा की गुड़वत्ता बनाए रखने के लिए सही कदम उठाया.....पर अब यहाँ सवाल उठता है कि कमोबेश ऐसे ही हालात या फिर इससे भी बुरे तो कई सरकारी स्कूलों के भी हैं जिनमें कोई शिक्षक ही नहीं है और जिसकी वजह से जिला आकांक्षी जिला योजना में पिछड़ रहा है। क्या इन सरकारी स्कूलों में  शिक्षा का स्तर सही रखने की जरूरी स्तर की कोशिश सरकार कर रही है?






  • विदिशा: ट्रांजीशन टारगेट अधूरा, COVID से बच्चों का पलायन, बच्चियां स्कूल नहीं जा रहीं







    • विदिशा: जब टीम विदिशा जिले के चोपड़ा गांव के कन्या स्कूल पहुंची तो वहां के हालात भी कुछ ख़ास ठीक नहीं थे। बच्चों के बैठने के लिए टेबल-बेंच तक नहीं है। और बच्चो की संख्या भी स्कूल में कम होती जा रही है। जब हमने स्कूल की प्रिंसिपल अलका बागड़ी से इसका कारण पूछा...तो उन्होंने कहा कि बच्चों के परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से बच्चे स्कूल में एडमिशन नहीं ले पा रहे।



  • विदिशा जिले की बात अगर करें तो जब साल 2018 में योजना की शुरुआत हुई थी तब शिक्षा के क्षेत्र का बेसलाइन  स्कोर 44.27 था.... जो मार्च 2021 में  तो बढ़कर 76.3 हुआ.....पर इसके बाद इस स्कोर में गिरावट होकर  मार्च 2022 को यह 74.2 रहा। वहीँ अगर हम विदिशा में शिक्षा के क्षेत्र में अप्रैल से जुलाई तक हुई परसेंटेज इंप्रूवमेंट की बात करते हैं तो इसमें गिरावट ही हुई है। (अप्रैल 2022: 47.36; जुलाई 2022: 46.68)।


  • जब हमने विदिशा के जिला शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार मोदगिल से इसका कारण पूछा तो उन्होंने जो बताया उसके मुताबिक़ तो चिंता जायज़ है। उनके मुताबिक़ 8वीं से 9वीं में स्टूडेंट्स का ट्रांजीशन टारगेट पूरा न होना, COVID-19 के कारण 8वीं के कुछ बच्चों का पलायन, बच्चियों का स्कूल न आना - वो बड़े कारण हैं जिसकी वजह से विदिशा का शिक्षा के क्षेत्र में ग्राफ नीचे गया है।






  • प्रौढ़ शिक्षा अभियान







    • अब तक हमने बात की स्कूली शिक्षा के बारे में। पर यही हालत सिर्फ स्कूली शिक्षा ही नहीं साक्षरता अभियान के तहत चलाए जा रहे प्रौढ़ शिक्षा अभियान की भी है। मध्य प्रदेश के असाक्षर समाज को साक्षरता की ओर ले जाने और प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी द्वारा नई तैयारी की गई है। इसके तहत आंगनबाड़ी और प्राथमिक शालाओं को आर्थिक सहायता के तौर पर केंद्र सरकार की ओर से हर साल राशि उपलब्ध कराई जाती है। सभी को साक्षर बनाने के उद्देश्य से प्राथमिक शाला सहित आंगनबाड़ी केंद्रों में सभी प्रौढ़ सहित अन्य व्यक्तियों के लिए पढ़ना लिखना अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि विभाग द्वारा बजट का आवंटन करने के बाद भी इस अभियान के लिए बजट का आधा हिस्सा भी खर्च नहीं हो पाया है। जिसको देखते हुए अभियान के समय को 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया था। इस मामले में राज्य शिक्षा केंद्र की ओर से सभी जिलों को आदेश जारी किए गए थे।



  • दरअसल केंद्र सरकार की तरफ से जिला साक्षरता मिशन प्राधिकरण के तहत बैंक खातों में 31 मार्च तक राशि के उपयोग के लिए समय दिया गया था। हालांकि स्कूल शिक्षा विभाग के माध्यम से सभी जिलों को राशि आवंटन किया गया लेकिन स्कूलों द्वारा असाक्षर को चिन्हित कर उन्हें साक्षर बनाए जाने के लिए आधी राशि भी खर्च नहीं की जा सकी। जिसके लिए फिर राज्य शिक्षा केंद्र ने 31 अगस्त तक का समय सभी जिलों को दिया। मामले में अधिकारियों का कहना है कि पब्लिक फाइनेंसियल मैनेजमेंट सिस्टम पर लोड अधिक होने के कारण कई स्कूलों द्वारा राशि की निकासी नहीं हो पाई। इस को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने राशि के उपयोग के लिए 31 अगस्त तक का समय दिया था। हालांकि अब सब जिलों को मामले में आदेश जारी कर  सभी केंद्रों का बकाया भुगतान करने की प्रोसेस हो गई है।


  • मध्य प्रदेश के 52 जिलों के लिए 8 से 30 लाख रुपए तक की राशि केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई है। जिसमें भोपाल जिले में लगभग 9 लाख की राशि उपलब्ध कराई गई। हालांकि इसमें से चार लाख की राशि अभी शेष रह गई। जबकि सबसे अधिक अलीराजपुर जिले के लिए 30 लाख, बड़वानी के लिए 44 लक्षण के लिए 22 लाख दमोह के लिए लाख-लाख और झाबुआ के लिए 37 लाख रुपए उपलब्ध कराए गए।


  • इस मुद्दे पर जब हमने विदिशा के जिला शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार मोदगिल और राजगढ़ के जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी के एन गुप्ता से बात की तो दोनों ने इस मामले पर हो रहीं कमियों को माना! राजगढ़ में तो करीब 50,000 लोग निरक्षर अभी भी हैं। वहीँ विदिशा के जिला शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार मोदगिल ने प्रौढ़ शिक्षा योजना कि सारी जिम्मेदारी DPC पर डाल दी। सुनिए दोनों ने क्या कहा:


  • राजगढ़ के जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी के एन गुप्ता: "1 अप्रैल 2012 से लेकर वर्ष 2018 तक एक साक्षरता अभियान चलाया गया था....जिसमें निरक्षर प्रौढ़ लोगों को साक्षर करने के लिए प्रेरक नियुक्त किये गए थे....जिनकी नियुक्ति अब ख़त्म हो चुकी है.....उस अभियान में करीब 1 लाख 63 हज़ार लोगो को साक्षर किया गया था...हालाकिं आंकड़ों के अनुसार उस वक़्त भी 50,000 लोग निरक्षर रह गए थे...इसलिए अब हमारे सर्वे के अनुसार जो नए निरक्षर लोग है और उन बचे हुए 50,000 निरक्षरों को साक्षर करने के लिए फिर से  कोशिश की जायेगी।"  


  • विदिशा के जिला शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार मोदगिल: साक्षर भारत अभियान के तहत जिले में स्कूलों के हर टीचर को DPC द्वारा कोऑर्डिनेटर बनाया गया था। हालांकि इनके काम की समीक्षा अभी तक नहीं की गई है। समीक्षा करने की जिम्मेदारी DPC की ही थी। हमारा काम तो सिर्फ प्रोग्राम के लिए टीचर्स उपलब्ध करवाना है।लेकिन DPC से बात होने पर हमें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार साक्षर भारत अभियान जिन शिक्षकों को लगाया गया है उनका काम ठीक नहीं है। इसमें शायद ट्रेनिंग की कमी है।इसलिए अब हम अगले हफ्तेभर में या फिर 15 दिनों में इन टीचर्स को एक ट्रेनिंग देंगे जिसमें ये देखा जाएगा की क्या इन टीचर्स को अपने काम के बारे में पता भी है या नहीं?






  • बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में बनाए रखने का डीपीसी, शिक्षक, प्राचार्य, बीईओ, डीईओ एवं अन्य जिम्मेदार अधिकारियों का दायित्व है। ऐसे में शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों की मॉनिटरिंग पर भी सवाल खड़े होते हैं। वहीं जो बच्चे स्कूलों में अध्यनरत हैं, उनकी शिक्षा गुणवत्ता में भी कोई व्यापक सुधार की दरकार है। तो प्रौढ़ शिक्षा में डीपीसी महत्वपूर्ण है। साफ़ है कि सरकार को मध्य प्रदेश कि साक्षरता स्तर बढ़ने के लिए और स्कूली शिक्षा की गुड़वत्ता बनाए रखने के लिए अभी कड़ी मेहनत की जरुरत है।





    (इनपुट्स: राजगढ़- बी पी गोस्वामी; विदिशा- अविनाश नामदेव)



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