भोपाल. मध्यप्रदेश का सुशासन और विकास कैसा है। इसका दिल्ली में डंका पीटने का भला क्या काम है लेकिन मध्यप्रदेश के मुखिया कुछ ऐसा ही कारनामा करके आए हैं। दिल्ली में राजनीति का केन्द्र बिन्दु माने जाने वाले इंडिया हैबिटेट सेंटर में उन्होंने मध्यप्रदेश सुशासन और विकास रिपोर्ट 2022 लॉन्च की। मंच पर उनके साथ कैबिनेट मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और फग्गन सिंह कुलस्ते भी नजर आए। इस रिपोर्ट के विमोचन के साथ ही शिवराज ने अपनी ही पीठ थपथपाने की पूरी कोशिश की है। पर सवाल ये है कि एमपी के काम का दिल्ली में ढिंढोरा पीट कर शिवराज क्या सिर्फ आलाकमान की नजरों में कद बढ़ाने की कोशिश में है। या फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्तराधिकारी बनने की ख्वाहिश। पिछले कुछ दिनों से शिवराज सिंह चौहान जिस तरह से हर लोकप्रिय योजना को कैप्चर कर अपना कद बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उससे उनके इरादे कुछ ऐसे ही नजर आते हैं।
अखबारों के पहले पन्ने पर शिवराज सिंह चौहान पहले भी कई बार छाए रहे हैं। लेकिन दो दिन पहले के अखबार ने सबको चौंका दिया। शिवराज सिंह चौहान दिल्ली के भी कई अखबारों में पहले पन्ने पर नजर आए। फुल पेज विज्ञापन के जरिए। चौंकाने वाली बात इसलिए नजर आई कि इश्तिहार था मध्यप्रदेश के सुशासन और विकास पर आधारित रिपोर्ट का। इस रिपोर्ट की लॉन्चिंग की सूचनानुमा लंबे चौड़े विज्ञापन से दिल्ली के हर अखबार का पहला पन्ना पटा हुआ था।
ये ठीक उसी पैटर्न पर काम होता नजर आया जैसा अक्सर दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल करते हैं। इनके काम का प्रमोशन दिल्ली से ज्यादा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार जैसे प्रदेशों के अखबारों में नजर आता है। जिसे देखकर अक्सर उन पर इल्जाम लगते हैं कि वो जनता के टैक्स का बड़ा पैसा अपनी ब्रांडिंग पर जाया करते हैं। अब उसी तर्ज पर शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश के कामों का विज्ञापन दिल्ली के अखबारों में देकर क्या साबित करने की कोशिश की है। शिवराज के विज्ञापन कहीं ऐसा तो नहीं कि शिवराज की नजरें अब मध्यप्रदेश के 2023 के विधानसभा चुनाव की बजाय साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर है।
अचानक उठा ये सवाल आपको हैरान कर सकता है। मध्यप्रदेश में दो दशकों से ज्यादा वक्त से राजनीति कर रहे शिवराज सिंह चौहान अचानक दिल्ली का रूख क्यों करेंगे। पर, शिवराज सिंह चौहान के ग्राफ पर नजर डालेंगे तो आपको लगेगा कि वो केन्द्र के तख्तोताज के बिलकुल लायक है। ये बात सिर्फ हम नहीं कह रहे कुछ साल पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कही थी। अपने एक भाषण में शिवराज सिंह चौहान की तुलना सीधे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल से कर दी थी। उस वक्त भी ये अटकलें खूब लगीं थीं कि अब शिवराज सिंह चौहान पीएम पद के दावेदार हैं।
खुद कभी बीजेपी के पीएम इन वेटिंग रहे लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से की थी। साल 2013 में आडवाणी ने कहा था कि शिवराज भी अटलजी की तरह अहंकार से परे हैं। अटलजी के कार्यकाल को सबसे बेहतर बताते हुए उन्होंने कहा था कि शिवराज की योजनाएं भी कल्याणकारी हैं। जिन्होंने मध्यप्रदेश को नई बुलंदियों पर पहुंचाया है। बीजेपी की एक अहम बैठक से पहले उस वक्त आया आडवाणी के बयान को काफी अहम माना गया और कई सियासी मायने भी निकाले गए। यूं भी लंबे समय तक सीएम रह चुके शिवराज सिंह चौहान को पीएम के पद का मजबूत दावेदार माना जाता है। कई बार दोनों की बीच तुलना भी हो चुकी है।
अटलजी से शिवराज सिंह चौहान की तुलना करने वाले आडवाणी ने उस वक्त गुजरात में मोदी के विकास के मॉडल और शिवराज के एमपी मॉडल की चर्चा भी की थी। अब दिल्ली में ही अपने सुशासन और विकास के इश्तिहार छपवा कर क्या शिवराज सिंह चौहान वही पुरानी बात याद दिलाने की कोशिश में तो नहीं हैं। सियासी गलियारों में अटकलें ये भी हैं कि टीम शिवराज उन्हें पीएम नरेद्र मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर सबसे लोकप्रिय चेहरा बना कर प्रमोट करने की तैयारी में है। पहले पेज पर छाए ये विज्ञापन उस कोशिश की शुरूआत भी हो सकते हैं।
अपनी चौथी पारी में शिवराज सिंह चौहान ने काम करने के स्टाइल को भी पूरी तरह बदल दिया है। इस बार उनकी राजनीति आम लोगों से जुड़ाव वाली कम इवेंट बेस्ड ज्यादा नजर आ रही है। एक बैठक भी करते हैं तो उसे एक इवेंट की तरह प्रोजेक्ट किया जाता है। योगी का बुलडोजर हो या अरविंद केजरीवाल के स्कूलों का मॉडल। यहां कोई लोकप्रिय योजना नजर आती है, उसे अपना बनाने से भी शिवराज गुरेज नहीं कर रहे हैं। ये भी तय माना जा रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव में वो सीएम पद का चेहरा न हों। हालांकि विरोधियों और रूठे सहयोगियों को मनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसके बावजूद संभावनाएं कम ही हैं। ऐसे में शिवराज अगर दिल्ली की राजनीति का रूख करें और राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को थोड़ा और बढ़ा दें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
तमाम विद्रोहियों और असंतुष्टों से घिरे शिवराज सिंह चौहान सियासी जमीन पर पैर जमाने की भरपूर कोशिश में हैं। इस कोशिश में उनका रास्ता इस बार बदला हुआ है। इसके चलते अब वो पांव पांव वाले भइया की छवि से इतर कुछ नए अंदाज में नजर आ रहे हैं। ये बात अलग है कि उनका अंदाज खालिस शिवराज सिंहनुमा नजर नहीं आता। कभी उनके काम करने के स्टाइल में उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की झलक नजर आती है। कभी वो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर काम करते हैं। ऑरिजनेलिटी से दूर अब वो योगी और केजरीवाल का कॉकटेल दिखाई देने लगे हैं। शिवराज जैसे राजनीति में पगे, तजुर्बेकार नेता का इस तरह दूसरों की योजनाओं को कैप्चर करना क्या सिर्फ एमपी की सत्ता में वापसी के लिए है। क्या कुर्सी अब इतनी दूर जाती नजर आ रही है कि उसे अपना बनाने के लिए शिवराज सिंह चौहान को दूसरे नेताओं की छवि की नकल करने जरूरत आन पड़ी है। या, फिर इसके पीछे भी शिवराज सिंह चौहान का कोई ऐसा राजनीतिक पैंतरा छिपा है जिस फिलहाल डिकोड कर पाना मुश्किल हो रहा है।
योगी का बुलडोजर हिट हुआ तो मध्यप्रदेश में भी बुलडोजर की रफ्तार बढ़ गई। योगी जैसे आक्रमक तेवर अख्तियार करने की कोशिश में कई जुमले शिवराज पहले ही उछाल चुके हैं। गाढ़ दिए जाएंगे, टांग दिए जाएंगे जैसे उनकी शैली से एकदम अलग जुमले तो अक्सर अब भी दोहराए ही जाते हैं। अरविंद केजरीवाल अपनी ब्रांडिंग कई बार दिल्ली के सरकारी स्कूलों की कायापलट के जरिए करते हैं। इस दिशा में शिवराज सिंह चौहान भी कदम बढ़ा ही चुके हैं। अब उनके विज्ञापन भी उसी तर्ज पर आगे बढ़ चुकी राजनीति की तरफ इशारा कर रहे हैं।
गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए जब नरेंद्र मोदी ने पीएम पद की दौड़ भरी थी तब उनके गुजरात के कामों का ही हवाला दिया गया था। मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए किस तरह गुजरात का विकास किया। वो लगातार चुनाव जीते जैसे कई उदाहरण पेश किए गए थे। उस वक्त भी शिवराज सिंह चौहान का नाम पीएम पद के लिए उठा था। हालांकि वो रेस में मोदी से पिछड़ गए। अब योगी भी पीएम पद रेस में माने जा रहे हैं। हालांकि योगी के कार्यकाल से कहीं ज्यादा लंबा कार्यकाल बतौर सीएम शिवराज सिंह चौहान का रहा है। उनकी कई फ्लैगशिप योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल चुकी है। मध्यप्रदेश जैसे बीमारू राज्य को विकासशील राज्य की श्रेणी में लाने का श्रेय वो खुद को देते ही रहे हैं। बहरहाल 2024 के चुनाव में उनका ये ड्रीम पूरा होता है या फिर उन्हें लंबा इंतजार करना होगा। ये आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन शिवराज अपनी लाईन बड़ी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।