Skill की आड़ में कंपनियों का Development: 157 करोड़ खर्च, रोजगार मिला सिर्फ 10 हजार को

author-image
एडिट
New Update
Skill की आड़ में कंपनियों का Development: 157 करोड़ खर्च, रोजगार मिला सिर्फ 10 हजार को

अंकुश मौर्य । भोपाल. बेरोजगारी खत्म करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कौशल विकास योजना की शुरुआत की थी। इसी की तर्ज पर प्रदेश में मुख्यमंत्री कौशल संवर्धन योजना और मुख्यमंत्री कौशल्या योजना की शुरुआत की गई । सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बड़ा लक्ष्य रखा था, जिसे पूरा करने के लिए 200 करोड़ रुपए का भारी-भरकम बजट भी आवंटित किया गया था। लेकिन धरातल पर पहुंचते-पहुंचते ये योजनाएं फेल हो गई। युवाओं के प्रशिक्षण के नाम पर फर्जीवाड़ा किया गया। योजना के तहत युवाओं को हुनरमंद बनाकर रोजगार भी दिलाना था। इसकी बजाए कौशल की आड़ में एनजीओ और प्रायवेट कंपनियों का विकास हो गया।

2017-18 में इन योजनाओं की शुरुआत हुई थी

मुख्यमंत्री कौशल संवर्धन योजना- इस योजना के तहत 2.50 लाख युवक-युवतियों को प्रशिक्षण दिया जाने का लक्ष्य रखा गया था। युवाओं को 17 अलग-अलग क्षेत्रों जैसे डाटा एंट्री, टेलीकॉम, टूरिज्म, बैंकिंग फाइनेंसियल सर्विसेस, प्लंबिंग आदि की ट्रेनिंग दी जानी थी। प्रशिक्षण की अवधि 2 माह से 6 माह तक थी। मुख्यमंत्री कौशल्या योजना- इस योजना के तहत 15 वर्ष से अधिक उम्र की 2 लाख महिलाओं के प्रशिक्षण का लक्ष्य रखा गया था। ब्यूटी एंड वेलनेस, ऑटोमोटिव, घरेलू कार्यों में दक्षता, फूड प्रोसेसिंग जैसे 14 सेक्टरों में ट्रेनिंग दी जानी थी।

इन संस्थानों को दिया गया था लक्ष्य

दोनों ही योजनाओं को मिलाकर प्रदेश के शासकीय, अर्धशासकीय और 42 एनजीओ और नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएसडीसी) में रजिस्टर्ड कंपनियों को ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दी गई थी।

धरातल पर योजनाओं का हाल

घोषणा के बाद योजनाओं में लक्ष्य आवंटन की प्रक्रिया जनवरी 2018 से शुरु हुई। दोनों योजनाओं को मिलाकर इन संस्थाओं को 1.5 लाख युवाओं को ट्रेनिंग और रोजगार दिलाना था। लक्ष्य – 1.5 लाख युवक-युवतियों को ट्रेनिंग और प्रशिक्षण देना। बजट – 200 करोड़ रुपए। लक्ष्यपूर्ति - 56000 युवकों को ट्रेनिंग दी गई। खर्च - 130 करोड़ रुपए। प्लेसमेंट - 4000 को ही रोजगार दिला पाए।

नियमों की लचरता का उठाया फायदा

एनजीओ और प्रायवेट कंपनियों को प्लेसमेंट की शर्त पर लक्ष्य आवंटित किए गए थे। प्रशिक्षण की एवज में हर बच्चे पर औसतन 40 रुपए प्रतिघंटा के हिसाब से भुगतान किया गया। भुगतान के नियम इतने कमजोर थे कि संस्थाओं ने बिना ट्रेनिंग के नाम पर ही करोड़ों कमा लिए । प्लेसमेंट कराने की बजाए कंपनियों ने 20 फीसदी राशि छोड़ दी।

किश्तों में किया जाना था भुगतान

किश्त कुल लागत का भुगतान कब मिलनी थी -पहली 30 फीसदी बैच शुरु होते ही - दूसरी 30 फीसदी 70 फीसदी को प्रशिक्षण देने पर -तीसरी 20 फीसदी 70 फीसदी के पास होने पर -चौथी 20 फीसदी 70 फीसदी को तीन महीने का

रोजगार मिलने पर नाम बदला, काम नहीं

प्रदेश में नवंबर 2018 में सरकार बदल गई थी। 2019 में कमलनाथ सरकार ने इन योजनाओं का नाम बदलकर युवा स्वाभिमान योजना कर दिया। ट्रेनिंग के सेक्टर और मॉड्यूल में बदलाव किया गया। लेकिन लक्ष्यपूर्ति की जिम्मेदारी उन्हीं एनजीओ और कंपनियों को सौंप दी गई, जो पहले से मुख्यमंत्री संवर्धन और कौशल विकास में काम कर रहीं थी।

बंद कर दी गई योजना

योजना की शुरुआत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2017 में की थी। कमनलाथ सरकार में इसे नाम बदलकर आगे बढ़ाया गया। लेकिन बीते दो साल से योजना बंद कर दी गई है। वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए कोई लक्ष्य आवंटित नहीं किया गया है।

केंद्र की योजना का भी यहीं हाल

प्रदेश में 2017 से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाय) चल रही है। इस योजना के तहत करीब 27 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके है। लेकिन निर्धारित लक्ष्य से महज 10 फीसदी युवाओं को ही रोजगार मिला है।

CONGRESS BJP Shivraj MP govt Employment Skill Development 157 crores