भोपाल. मध्य प्रदेश में तीन दशक से ज्यादा समय से चल रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर 7 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ मंच शेयर करती नजर आईं। दिग्विजय सिंह ने अपनी सरकार में मेधा को जेल भेजा था। मगर आज सरदार सरोवर बांध के प्रभावितों के पुनर्वास में दलालों की सूची जारी करते हुए दोनों एक साथ एक मंच पर आ गए।
फर्जीवाड़े का आरोप: दिग्विजय सिंह और मेधा पाटकर ने कहा कि सरदार सरोवर बांध प्रभावितों के नाम से 1590 फर्जी रजिस्ट्रियां बनाई गई हैं। इनमें से खरगोन में 531, धार में 705, बड़वानी में 167, देवास में 143, आलीराजपुर में 44 लोगों की फर्जी रजिस्ट्रियां बनाई गईं। यह सब खेल सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के साथ मिलकर अन्य लोगों ने किया। जिन सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों ने दलाली की भूमिका निभाई, उनमें एक तहसीलदार, 32 पटवारी, तीन भू-अर्जन अधिकारी, उप पंजीयक कार्यालय के टाइपिस्ट, भू अर्जन कार्यालय के कर्मचारियों सहित दस वकील, दस्तावेज लेखक और स्टाम्प वेंडर जैसे 51 लोग शामिल हैं। आरोप लगाया गया कि बड़वानी के राजपुर तहसील के कालापानी के एक दलाल गोवर्धन के परिजनों ने एक ही सर्वे की जमीन को 87 बार बेचा।
विशेष पुनर्वास अनुदान: मेधा पाटकर ने आरोप लगाया कि प्रभावितों को जमीन नहीं देकर नकद राशि देने का खेल भी खेला गया, जिसमें भ्रष्टाचार किया गया। ऐसे करीब 3879 लोगों विशेष पुनर्वास अनुदान दिया गया। हाईकोर्ट के न्यायाधीश श्रवण शंकर झा की अध्यक्षता में एक आयोग का गठित किया गया जिसने 2016 में अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी। मगर रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में अपील कर खोलने से रोकने का आग्रह किया गया। सुप्रीम कोर्ट फरवरी 2017 में पुनर्वास के मुद्दे पर दिए फैसले के आधार पर सभी याचिकाएं खारिज की। इसके बाद भी सात साल में कोई कार्ययोजना नहीं बनाई।