राजीव उपाध्याय, Jabalpur: वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। डिजिटल युग में हाथों का काम मशीनों से होने लगा लेकिन चित्रकला ऐसी विधा है जहां आज भी पेंटर्स पुरानी विधा को जीवित किए हुए लेकिन वास्तव में यह विधा अब अस्तित्व के लिए जूझ रही है लेकिन अभी भी कुछ लोग इसे बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। उनका कहना है कि पर्यावरण को बचाने रंगों की पेंटिंग जोकि कपड़ों पर की जाती है जो प्लास्टिक पर की गई पेंटिंग से बेहतर है। ऐसे लोग छात्रों को इस विधा का ज्ञान पेंटर्स कार्यशाला में दे रहे हैं। आज हम डिजिटल युग में जी रहे हैं। आज जीवन का कोई भी क्षेत्र डिजिटल से अछूता नहीं है।
कुछ तो खास है
डिजिटल युग में आज कुछ ही मिनट में फ्लैक्स बनकर तैयार हो जाता है लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से तवज्जो कपड़े पर रंगों से बनाए गए बैनर को ही दी जा रही है। ब्रश और रंगों के तालमेल से की जाने वाली चित्रकला को नई जनरेशन तक पेंटर्स बखूबी पहुंचा रहे हैं और खुद अपडेट भी हो रहे हैं। शासकीय कला निकेतन में पेंटर प्रहलाद चौरसिया ने छात्रों को इस कला से रूबरू कराया। छात्रों का कहना है कि उन्हें आज नया सीखने मिला। रंगों का मिश्रण किस तरह से तैयार करते हैं और प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना भी कपड़ों पर बैनर बनाए जा सकते हैं,यह सीखने मिला।
वो युग भी था
एक युग वो भी था जब सिनेमा के पोस्टर रंगों से बनते थे। हर कलाकार का चेहरा सजीव दिखता था। जबलपुर में कुमार सालुंके ने इस विधा को काफी आगे बढ़ाया। वे गुरु थे। उन्होंने सिनेमा पोस्टर्स पेंटिंग बहुत लोगों को सिखाई। उनके शिष्यों ने उनकी कला को आगे बढ़ाया लेकिन वक्त के साथ रंगों से सिनेमा पोस्टर्स बनाने का काम खत्म हो गया तो उनके बेटे राजेश सालुंके और उनके एक शिष्य प्रहलाद चौरसिया ने कपड़े के बैनर, साइन बोर्ड और दीवार पर पेंटिंग का काम शुरू किया।
अपग्रेड किया
राजेश सालुंके का कहना है कि डिजिटल युग में खुद को अपग्रेड करना जरूरी है। इससे पता चलता है कि रंगों का और बेहतर इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। उनका एसोसिएशन कार्यशाला भी आयोजित करता है। जिसमें इस पर चर्चा होती है। स्वच्छता मिशन के अंतर्गत इस समय काफी काम है जो किया जा रहा है। इसमें यह बताया जाता है कि किस तरह से दीवार पर पेंटिंग बनाने के लिए रंगों का बेहतर मिश्रण बना सकते हैं। इसके अलावा पर्यावरण को नुकसान न हो इसका ध्यान भी रखा जा सकता है। स्मार्ट सिटी के जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं उसमें खासतौर से ध्यान रखा जाता है कि प्लास्टिक का उपयोग न हो।