अरुण तिवारी, भोपाल. 28 अप्रैल 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली में ये ऐलान किया कि आजादी के 75 साल पूरे होने पर मार्च 2022 में किसानों की आय दोगुनी की जाएगी। 24 मार्च 2022 को संसद की कृषि पर बनी स्टैंडिंग कमेटी ने लोकसभा और राज्यसभा में एक रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया। रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश के किसानों की आय दोगुनी होना तो दूर रही बल्कि उल्टा घट गई है। प्रदेश के एक किसान परिवार की मासिक आय में 1401 रुपए की कमी हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 में प्रदेश के एक किसान परिवार की आय 9 हजार 740 रुपए महीने थी जो साल 2018-19 में घटकर 8 हजार 339 रुपए हो गई। मध्यप्रदेश के अलावा झारखंड, उड़ीसा और नगालैंड के किसानों की आय में भी कमी आई है। इस समिति के सदस्य राज्यसभा सांसद कैलाश सोनी कहते हैं कि किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए परंपरागत खेती छोड़नी होगी। संसदीय समिति ने सरकार से कहा है कि इस बात का अध्ययन किया जाना चाहिए कि आखिर किसानों की आय बढ़ने की बजाय कम क्यों हुई है।
राष्ट्रीय स्तर पर महज 2 हजार का इजाफा: देशभर की बात करें तो इन सात सालों में किसानों की आय में महज 2 हजार रुपए का इजाफा हुआ है। 2015-16 में किसान परिवार की महीने की आय थी 8059 और 2018-19 में ये आय बढ़कर 10 हजार 218 रुपए हो गई। साथ ही ये रिपोर्ट कहती है कि देश के 28 राज्यों में से 24 राज्यों में किसानों की आय बढ़ी है लेकिन मामूली इजाफा ही हुआ है। मेघालय केवल ऐसा राज्य है जहां किसानों की आय दोगुनी हुई है। इस रिपोर्ट का सबसे चौंकाने वाला पहलू ये है कि मध्यप्रदेश जो कि कृषि आधारित राज्य है, वहां किसानों की आय दोगुनी होने के बजाय घट गई है।
किसानों को लागत नहीं लाभकारी मूल्य मिले: कृषि विशेषज्ञ केदार सिरोही मानते हैं कि जब खेती की लागत कम होगी और फसल का लागत मूल्य की जगह लाभकारी मूल्य मिलेगा तब उनकी आय में इजाफा होगा। एक एकड़ में गेहूं या चने की फसल की लागत करीब 20 से 25 हजार रुपए आती है। जबकि उसको 40-45 हजार रुपए का उत्पादन होता है, जिसमें उसका पूरे परिवार का श्रम शामिल होता है। कृषि से जुड़ी मशीनरी और अन्य चीजों का मूल्य पिछले कुछ सालों में दोगुने से ज्यादा बढ़ गया है, जिससे खेती की लागत बढ़ती जा रही है। प्रदेश में करीब एक करोड़ किसान हैं जिनमें आधे से ज्यादा सीमांत कृषक हैं। यानी उनके पास तीन से चार एकड़ खेती की जमीन है। प्रदेश में करीब 170 लाख हेक्टेयर कृषि की जमीन है जिसमें करीब चार लाख करोड़ का उत्पादन होता है।
आय बढ़ाने डेढ़ दर्जन से ज्यादा योजनाएं: केंद्र सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए डेढ़ दर्जन योजनाएं चलाई हैं। इनमें पीएम किसान सम्मान निधि, पीएम किसान मानधन योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रति बूंद अधिक फसल, पीएम फसल बीमा योजना, कृषि अवसंरचना कोष, ब्याज छूट योजना, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, राष्ट्रीय बांस मिशन, कृषि विस्तार उप मिशन, कृषि यंत्रीकरण उपमिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना, एकीकृत कृषि विपणन योजना,राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, किसान उत्पादक संगठनों का गठन जैसी अन्य कई योजनाएं शामिल हैं।
3 साल में 3 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च: किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने प्रदेश को पिछले तीन सालों में तीन हजार करोड़ से ज्यादा फंड दिया है। साल 2018-19 में 1031 करोड़, साल 2019-20 में 1011 करोड़ और साल 2020-21 में 1035 करोड़ फंड का आवंटन किया है। इसके बाद भी नतीजा वही निकला ढाक के तीन पात। कृषि मंत्री कमल पटेल कहते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता, प्रदेश में किसान लगातार उन्नति कर रहे हैं। कृषि मंत्री भी किसानों को पारंपरिक खेती को छोड़कर नए तरीके अपनाने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन जिन चार राज्यों में किसान की मासिक आय कम हुई है उसे लेकर संसद की स्थाई समिति ने अपने रिपोर्ट में लिखा है कि इन राज्यों में राज्य का कृषि विभाग केवल मूक दर्शक बना रहा। यानी जो योजनाएं चल रही हैं उन्हें जमीनी तौर पर लागू करने में मेहनत नहीं की। साथ ही रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि राज्य सरकार की तरफ से कोई जवाब ही नहीं दिया गया। यानी साफ है कि मध्यप्रदेश सरकार खुद को किसानों की सरकार कहती है। राज्य में अलग से कृषि बजट पेश किया जाता है और संसद में पेश रिपोर्ट ही ये कहती है कि जो विभाग किसानों की आय बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है वो मूक दर्शक बना रहा। यानी दावे और हकीकत में जमीन आसमान का अंतर है।