SINGRAULI. नगर निकाय सिंगरौली का चुनाव सिर पर आ गया है। प्रत्याशियों में होड़ लगी है कि कौन कितना जनसंपर्क कर ले। प्रमुख दलों के स्टार प्रचारकों का सिंगरौली पहुंचने का दौर लगातार जारी है। कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व नेता प्रतिपक्ष मप्र विधानसभा अजय सिंह बीजेपी से प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, प्रभारी मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह, आम आदमी पार्टी से दिल्ली के मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल जैसे धुरंधर अपने-अपने दल के समर्थन में सिंगरौली पहुंचे, जहां वे मतदाताओं की नब्ज टटोलकर वापस लौट चुके हैं। लेकिन यहां का मतदाता अभी तक चिकना घड़ा ही बना हुआ है जो किसी को भी अपने सिर पर हाथ ही नहीं रखने दे रहा है। हर दल में असमंजस की स्थिति है। मतदाताओं की तत्ष्टता प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ाने का ही काम कर रही है। चर्चा जोर पकड़े हुए हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में जिसने जो बोया है इस महापौरी के चुनाव में वही काटेगा।
बीजेपी का गढ़ माना जाता है सिंगरौली
सिंगरौली बीजेपी का गढ़ माना जाता है। महापौर पद के चुनाव में बीजेपी ने जिस उम्मीदवार को खड़ा किया है उसको जीतने की डगर बहुत कठिन प्रतीत हो रही है। चंन्द्र प्रताप विश्वकर्मा को महापौर पद का टिकट मिलने से पहले बीजेपी के लिए मैदान साफ था लेकिन ज्यों ही बीजेपी ने टिकट की घोषणा की आम आदमी पार्टी की सशक्त उम्मीदवार रानी अग्रवाल पिछले विधानसभा चुनाव में मिले लगभग 30 हजार मतों के भरोसे मैदान में आ गईं। रानी अग्रवाल के चुनाव लड़ने की बात नहीं थी। वे महीनों से बीमार थीं इसलिए महापौर के चुनाव के लिए मैदान में आने के लिए तैयार नहीं थीं लेकिन टिकट वितरण के दौरान बीजेपी में उपजे असंतोष से संजीवनी प्राप्त कर अचानक उनके आ जाने से सारे समीकरण गड्डमगड्ड हो गए।
बीजेपी के लिए कांग्रेस नहीं, आप की चुनौती
बीजेपी के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार अरविन्द सिंह चंदेल चुनौती नहीं थे और न ही आज हैं। क्योंकि कई सालों से एकता का पाठ पढ़ने को तरस रही सिंगरौली कांग्रेस की गुटबाजी अभी भी कायम है। लेकिन रानी अग्रवाल बीजेपी के लिए चुनौती बनकर खड़ी हो गई हैं। सोने पर सुहागा ये है कि ब्राह्मण और साहू बहुसंख्यक मतदाता चंद्रप्रताप विश्वकर्मा को टिकट देने से खासा नाराज हैं। ब्राह्मण मतदाता मान-मनौव्वल के बाद भी अभी बीजेपी के लिए तटस्थ हैं। अलबत्ता कुछ ब्राह्मण नेता खुलकर रानी अग्रवाल का प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कुन्दन पाण्डेय खुलकर रानी अग्रवाल के खेमे में पहुंच गए हैं। महापौर के टिकट के दावेदार इंद्रेश पाण्डेय भी खुलकर आम आदमी पार्टी के साथ दिखाई दे रहे हैं। चंद दिनों पहले भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ पार्टी की पूरी टीम यहां तक की प्रभारी मंत्री भी सिंगरौली आए थे। 45 वार्डों के बीजेपी प्रत्याशियों और बीजेपी के छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं की सत्या होटल में बैठक हुई थी। उसके पहले रामलीला मैदान में भी आमसभा हुई थी। लेकिन जो जोश अपेक्षित था वो नजर नहीं आया। कार्यकर्ताओं को समझाइश दी गई लेकिन उनका क्या ? जो टिकट के दावेदारी की लाइन में खड़े थे। चाहे वो जिला अध्यक्ष वीरेन्द्र गोयल ही क्यों न हों।
आप प्रत्याशी रानी अग्रवाल के लिए राह आसान नहीं
नगर निगम क्षेत्र में जो मतदाता हैं दो वर्गों में बंटे हुए हैं। पहले वर्ग में वे मतदाता हैं जो एनसीएल और एनटीपीसी में नौकरी करते हैं। इन मतदाताओं पर कांग्रेस और भाजपा का प्रभाव होता है। यहां पर रानी अग्रवाल के लिए भारी कठिनाई है क्योंकि कैडर के वोट आम आदमी पार्टी के लिए नगण्य हैं। इसके अलावा कस्बों एवं बाजार क्षेत्र में जैसे सिंगरौली बाजार क्षेत्र, जयंत, निगाही और वैढ़न विन्ध्यनगर बाजार क्षेत्र में अभी रानी अग्रवाल का डंका बज रहा है। गत दिवस हुए अरविंद केजरीवाल के रोड-शो में ये स्पष्ट रूप से दिखाई भी पड़ चुका है। सामान्य को टिकट न देकर ओबीसी का राग अलापने के कारण सामान्य वर्ग का मतदाता खासकर बीजेपी से नाराज है। पिछले विधानसभा चुनाव में रामलल्लू वैश्य मैदान में थे। उस समय भी साहू समाज और खासकर ब्राह्मण बीजेपी को मत देने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन रात भर में ही फिजा बदलने के कारण राम लल्लू वैश्य को विजय हासिल हो सकी। अब इस बार भी बीजेपी फिजा बदलने की अपेक्षा कर रही है। लेकिन सामान्य मतदाता के तटस्थ होने के कारण अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। काबिल-ए-गौर हो कि सिंगरौली विधानसभा का अधिकांश क्षेत्र नगर निगम के क्षेत्र में ही आता है लिहाजा यहां एक के चुनाव का प्रभाव दूसरे के चुनाव में भी हावी रहता है। इस दृष्टिकोण से बसपा के हाथी की चिंघाड को अभी से कम आंकना उचित नहीं होगा।
साहू समाज बहुसंख्यक मतदाताओं में शामिल
कांग्रेस महापौर प्रत्याशी टिकट वितरण ने भी पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान उपजे असंतोष को एक बार फिर से हवा देने का ही काम किया है। जिसका सीधा-सीधा लाभ बसपा के खाते में जाता दिखाई पड़ रहा है। अवगत कराते चलें कि साहू समाज यहां के बहुसंख्यक मतदाताओं में शामिल है। चूंकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रेनू शाह को प्रत्याशी बनाया था और अरविंद सिंह चन्देल बगावत कर निर्दलीय मैदान में कूद पड़े थे। जिसकी वजह से अरविंद सिंह तो हारे ही थे बहुत कम मतों के अंतर से रेनू शाह भी बीजेपी के राम लल्लू से पराजित हो गई थीं। साहू समाज कांग्रेस या फिर रेनू की हार का जिम्मेदार आज भी अरविंद को ही मानता है। अब इस नगर निगम के चुनाव में अरविंद सिंह कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी हैं, रेनू शाह भले ही अरविंद के समर्थन में हैं लेकिन साहू समाज की नाराजगी बरकरार है लिहाजा वो अप्रत्याशित निर्णय लेने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। साहू समाज की इसी नाराजगी को भुनाने के लिए ही बसपा ने वंशरूप शाह को महापौरी के मैदान में उतारा है जो अप्रत्याशित रूप से ही जीत हासिल कर सबको चौंका सकते हैं। जैसे कि 2009 के नगरीय निकाय चुनाव में रेनू शाह बसपा के बैनर से बीजेपी के कद्दावर नेता कांति शीर्ष देव सिंह को पीछे धकेल महापौर की कुर्सी पर काबिज हो गई थी।