भोपाल. मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं उमा भारती अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही हैं। 4 मार्च को उन्होंने जो ट्वीट किया, उससे साफ पता चलता है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में अपनी उपेक्षा से वे खफा कम, दुखी ज्यादा हैं। अगले साल यानी 2023 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं, इसके पहले उमा अपनी राजनीतिक हैसियत पाने की कवायद शिद्दत से कर रही हैं।
ट्वीट से छलका उमा का दर्द
1. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री आदरणीय मेरे बड़े भाई श्री शिवराज सिंह चौहान जी से 1984 से मार्च 2022 तक सम्मान एवं स्नेह के संबंध बने रहे, शिवराज जी ऑफिस जाते समय या मेरे हिमालय प्रवास के समय या मेरे किसी भजन का स्मरण आने पर या तो मुझसे मिलते थे या फोन करते थे।
— Uma Bharti (@umasribharti) April 4, 2022
बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार
उमा ने 1984 में खजुराहो से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। जाहिर है कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद देशभर में कांग्रेस की लहर थी। इसके बाद 1989 में खजुराहो से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब भी रहीं। 1991, 96, 98 में भी उमा ने खजुराहो सीट से लोकसभा चुनाव जीता। 1999 में वे भोपाल और 2014 में झांसी से सांसद रहीं। 2019 में उमा ने चुनाव ही नहीं लड़ा। कुल मिलाकर देखें तो उमा का संसदीय कार्यकाल जबर्दस्त रहा।
पहले वाजपेयी सरकार में मंत्री, फिर मुख्यमंत्री
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उमा कैबिनेट मंत्री रहीं। इस दौरान मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। दिग्विजय सरकार 1993-2003 तक रही। इस दौरान मध्य प्रदेश में बिजली संकट गहराया। इसको लेकर लोगों में काफी गुस्सा था।
2003 में उमा भारती की अगुआई बीजेपी ने विधानसभा चुनाव लड़ा। बीजेपी ने ऐतिहासिक जनादेश लाते हुए 230 में से 173 सीटों पर कब्जा जमाया। 8 दिसंबर 2003 को उमा भारती मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि, उमा की ऐतिहासिक कामयाबी बहुत दिनों तक उनके साथ नहीं रही। अगस्त 2004 में उमा को एक मामले के चलते पद से हटना पड़ा। और इसी के बाद बाबूलाल गौर और फिर शिवराज सिंह चौहान (2005 से) प्रदेश के मुखिया बनाए गए। शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद उमा की मध्य प्रदेश में वापसी नहीं हो सकी।
बीजेपी से रुखसती, फिर वापसी
उमा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद कुछ ऐसी घटनाएं हुईं कि पॉलिटिकल ग्राफ नीचे आया। नवंबर 2004 में दिल्ली के बीजेपी हेडक्वार्टर में भरी मीटिंग में लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ बोलकर बाहर निकल गईं। इसके बाद वे बीजेपी आलाकमान की लगातार अवमानना करती रहीं और भारतीय जनशक्ति के नाम से दूसरी पार्टी बना ली। 2011 में फिर से उमा की बीजेपी में वापसी हो गई। इसकी बड़ी वजह 2012 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव थे।
मोदी-1 में In, मोदी-2.0 में Out
2014 में उमा झांसी से लोकसभा चुनाव जीतीं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई विभाग की मंत्री बनीं। 2019 में उमा ने चुनाव ही नहीं लड़ा।
अब क्या...
फिलहाल उमा भारती ना तो विधायक हैं, ना ही सांसद। मध्य प्रदेश (2023) और लोकसभा (2024) चुनाव के मद्देनजर उमा अपनी जमीन तैयार करने में जुटी हैं।
सरकार छोड़ने का दर्द छलका
उमा ने फरवरी 2022 में छतरपुर के एक कार्यक्रम में कहा- मैं सरकार बनाती हूं, फिर सरकार कोई और चलाता है! ललितपुर-सिंगरौली रेल परियोजना का शिलान्यास हुआ था तो तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। इसलिए ना कांग्रेस ने उनका नाम लिया और ना बीजेपी ने। अब केन बेतवा लिंक परियोजना का शिलान्यास होगा तो उन्हें प्रोटोकॉल के तहत मंच पर जगह तक नहीं मिलेगी क्योंकि वह न सांसद हैं और ना ही विधायक।
शराब वॉर
पहले उमा ने बयान दिया था कि गंगा सागर से लौटूंगी और 15 जनवरी के बाद शराबबंदी के लिए जुटूंगी। 13 मार्च 2022 को उमा भोपाल के बरखेड़ा पठानी इलाके में एक शराब दुकान पर पहुंची और पत्थर चलाकर शराब की बोतल तोड़ दी। इसके एक दिन बाद उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने सफाई दी कि मैं भी एक महिला हूं और रोती हुई महिलाओं के सम्मान में मैंने शराब की बोतलों पर पत्थर चलाया।
उमा के राजनीतिक भविष्य पर एक्सपर्ट व्यू
वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल कहतै हैं- उमा जी में पीड़ा और तड़प है। उमा अपने अतीत के स्वर्णकाल से निकल ही नहीं पा रहीं। वे यथार्थ की जमीन पर पैर रख ही नहीं रहीं। अभी भी उनके सपने में 2003 के पहले वाली उमा के तेवर आते हैं। वे कई गलतियों पर गलतियां कर चुकी हैं। बीजेपी में अटल और आडवाणी की सौजन्यता का युग जा चुका है। तब पुनर्वास और क्षमा की काफी गुंजाइशें हुआ करती थीं। अब ये नई जेनरेशन की भारतीय जनता पार्टी है, जो रिजल्ट ओरिएंटेड (परिणामोन्मुखी) पार्टी बन चुकी है। आज पार्टी का एक ही मंतव्य है कि आप हमारे काम के नहीं हैं तो हम आपको किसी सूरत में नहीं ढोएंगे।
शुक्ल बताते हैं कि हमने कैलाश जोशी, विक्रम वर्मा, सुंदरलाल पटवा का उत्तरार्ध देखा है। इनकी तड़प भी देखी है। पटवा, जोशी अतीत के स्वर्णकाल में नहीं जीते थे। ये कहना सही नहीं होगा, लेकिन सच यही है कि उमा कौतुक का विषय बन चुकी हैं। अभी जो काम वे कर रही हैं, वे और कौतुकी बन जाएंगी। अगर उमा इस तरह की अपेक्षाएं पालेंगी, हरकतें करेंगी तो राजनीति के मंच पर जोकर बनकर रह जाएंगी। उन्हें स्वर्णिम अतीत से निकलकर हकीकत के धरातल पर आना होगा। बीजेपी बहुत बदल चुकी है। उनकी सोच अब यही है कि अगर आप हमारे लिए प्रभावी नहीं हैं तो आप सम्मानजनक तरीके से घर में बैठिए, हम कभी-कभार आकर खैरख्वाह ले लेंगे।