भोपाल (रुचि वर्मा). "बिना सहकार नहीं उद्धार" प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराजसिंह चौहान सहकारिता की इस टैगलाइन को राज्य के विकास का मूल मंत्र बनाना चाहते हैं। खासकर कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में। इसके लिए सहकारिता विभाग की समीक्षा बैठक में उन्होंने प्राथमिक सहकारी ऋण समितियों (पैक्स) को मजबूत बनाने पर विशेष जोर देने को कहा है। लेकिन मप्र में सहकारिता सेक्टर की जो हालत है उसे देखते हुए नई टैग लाइन कही जा सकती है कि "न सहकार, न उद्धार, सिर्फ भ्रष्टाचार।" ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में 8 हजार करोड़ रुपए के अनुदान के बाद भी करीब 4,500 सहकारी साख समितियों की माली हालत बेहद खराब है। बीते तीन सालों में सहकारी बैंकों के करीब 150 करोड़ रुपए के घोटाले सामने आ चुके हैं। प्रदेश में सहकारिता और इससे जुड़ी संस्थाओं के बंटाधार के लिए विपक्ष के साथ अब बीजेपी के नेता भी उंगली उठा रहे हैं। हाल ही में इंदौर-5 विधानसभा क्षेत्र के विधायक और पूर्व मंत्री महेंद्र हार्डिया ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सहकारी संस्थाओं की बदहाली पर चिंता जताई है। द सूत्र ने खास पड़ताल के जरिए ये जानने की कोशिश की कि आखिर प्रदेश में कैसे बेपटरी हुई सहकारिता और कौन है इसके जिम्मेदार।
प्रदेश में कृषि, बैंकिंग, चीनी, दुग्ध और कपड़ा उत्पादन सब सहकारिता के सहारे: सहकारिता का मुख्य उद्देश्य है कि इसके माध्यम से उन लोगों को मुख्यधारा में लाया जाए जो खेती, पशुपालन एवं कुटीर उद्योगों के जरिए आर्थिक मजबूती का सपना देख रहे हैं। भारत एवं प्रदेश में सहकारी समितियां देशभर के 97% से अधिक भारतीय गांवों को कवर करती हैं। ये हमारी जिंदगी को प्रभावित करने वाले 55 क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। कृषि से लेकर ग्रामीण स्तर पर बैंकिंग और फाइनेंस, चीनी, दुग्ध, कॉटन, चाय उत्पादन एवं मत्स्य पालन सहकारी के भरोसे ही हैं। चीनी उत्पादन के क्षेत्र में सहकारी मिलों की हिस्सेदारी लगभग 35% है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की 2019-2020 की रिपोर्ट के मुताबिक सहकारी डेयरी ने 1.7 करोड़ सदस्यों से प्रतिदिन 4.80 करोड़ लीटर दूध खरीदा। राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम आयुष्मान सहकार योजना के अंतर्गत सहकारी समितियों को ग्रामीण इलाकों में अस्पताल खोलने के लिए दस हजार करोड़ रुपए तक का कर्ज मुहैया कराता है। नाबार्ड की 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार स्टेट कोऑपरेटिव बैंक ने कृषि क्षेत्र से जु़ड़ी इंडस्ट्री को 1 लाख 48 हजार 625 करोड़ रुपए का लोन बांटा।
मध्य प्रदेश में 4500 सहकारिता समितियों से 70 लाख से ज्यादा किसान जुड़े
- सहकारिता के स्ट्रक्चर में सबसे महत्वपूर्ण है राज्य केंद्रीय सहकारी बैंक (शीर्ष बैंक/अपैक्स बैंक-1), जिला सहकारी बैकों एवं प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति। मध्यप्रदेश राज्य सहकारी बैंक (शीर्ष बैंक/अपैक्स बैंक) नाबार्ड की सहायता से एवं जिला सहकारी बैकों तथा प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से प्रदेश में कृषकों एवं अन्य ग्रामीण तबको को उनकी आवश्यकता अनुसार दीर्धकालीन, मध्यकालीन एवं अल्पकालीन कृषि ऋण का वितरण वित्त पोषण हेतु उपलब्ध कराते हैं।
1.A) घोटालों से खोखला हो रही सहकारिता: प्रदेश के नित नए घपलों के कारण कई प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों और जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों की माली हालत खस्ता है। कई समितियों और बैंकों की शाखाओं से फर्जी तरीके से किसान के नाम पर ऋण चढ़ाने, राशि जमा होने के बाद भी बकाया बताने एवं कर्ज माफी की राशि में भी अनियमितता सहित अन्य शिकायतें आती रहीं हैं। सितम्बर 2021 की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बीते करीब 3 सालों के दौरान प्रदेश के सहकारी बैंकों में करीब 150 करोड़ रुपए के घोटाले सामने आ चुके हैं। इनमें 111 करोड़ के घोटाले सिर्फ भोपाल में हो चुके हैं। भोपाल के अलावा रीवा में 23 करोड़, छिंदवाड़ा में 30 करोड़, राजगढ़ में 5.5 करोड़, छतरपुर में 2.5 करोड़ और ग्वालियर में 2.5 करोड़ के घोटाले हो चुके हैं। शिवपुरी में भी करीब 103 करोड़ की गड़बड़ी की शिकायत विभाग को मिली थी।
कुछ खास घोटाले इस प्रकार है
- रीवा जिला सहकारी बैंक की डभौरा ब्रांच में वर्ष 2013 से लेकर 2015 के बीच 23 करोड़ रुपए से अधिक के घपले हुए थे। करोडों के इस घोटाले में 2015-16 में CID ने जांच शुरू की थी। शुरुआती दिनों में जांच तेजी से की पर जैसे-जैसे मामले की जांच आगे बढ़ी राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं का नाम सामने आने लगा और CID की जांच में टीम शामिल अधिकारियों को एक-एक कर हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।
1.B) घोटालों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार अधिकारी ही कर रहे अनियमितताओं की जांच: उक्त सभी प्रकरणों में पुलिस में प्रकरण दर्ज किए गए। साथ ही सहकारिता विभाग के स्तर पर कुछ कार्रवाइयां भी हुई, पर अनियमितताएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। दरअसल, सहकारी बैंकों और समितियों के विरुद्ध की जाने वाली शिकायतों की जांच सहकारिता विभाग के वे अधिकारी ही करते हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार या घोटालों के लिए जिम्मेदार हैं। शिकायतें सहायक पंजीयक, उप पंजीयक, संयुक्त पंजीयक, अपर पंजीयक के स्तर पर सुनी जाती हैं। इससे घोटालों के लिए जिम्मेदारों पर कार्रवाई की फाइल तो चलती है, लेकिन कार्यवाही में गंभीरता नहीं होती है। इसी वजह से भ्रष्टाचार चालू रहता है।
भूपेंद्र गुप्ता- सरकार ने किया 16 सालों में सहकारिता को बर्बाद, बैंकों की ऑडिट रिपोर्ट उपेक्षित: द सूत्र ने जब कांग्रेस के प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता से बात की तो उन्होंने इसका जिम्मेदार सरकार द्वारा भ्रष्ट अफसरों के संरक्षण को बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने 16 सालों में सहकारिता को बर्बाद कर दिया है। करोडो की लूट एवं घोटाले हुए जिनके जिम्मेदारों पर जांचें पूरी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस कारण से सहकारिता बैंक्स डूब की कगार पर पहुंच गई। किसानों के नाम पर फर्जी लूट की जा रही है। बाबू स्तर के कर्मचारी किसानों के नाम पर पैसा निकाल रहे हैं। बैंकों की ऑडिट रिपोर्ट की उपेक्षा की जा रही है। चुनाव न होने की वजह से चुने हुए जनप्रतिनिधि नहीं आ पा रहे हैं। भ्रष्ट अफसर द्वारा ही घोटालेबाजों के ऊपर कार्यवाही की जा रही है।
'अपेक्स बैंक अधिकारियों ने लगाया सहकारिता को बट्टा': सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक अरविन्द सिंह सेंगर ने द सूत्र से अपनी बातचीत में सारी परेशानी का जिम्मेदार अपेक्स बैंक अधिकारियों को बताया। उन्होंने कहा, "मध्य प्रदेश सहकारी संस्थाओं के लिए पहले कैडर सिस्टम हुआ करता था। जिसमें पैक्स के लिए जिला बैंक के पास और जिला बैंकों में पदों के लिए अपेक्स बैंक के पास कैडर होता था। उसमें शासन अथवा किसी ऊपरी संस्था का नियंत्रण नहीं था। इस अधिक स्वतंत्रता के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा एवं प्रदेश की सहकारी संस्थाओं की हालत खराब हुई।
2. सहकारी समितियों-सहकारी बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप ज्यादा, 8 साल से नहीं हुए समितियों के चुनाव: सहकारी बैंक और संस्थाएं अब सिर्फ नेताओं के राजनीतिक पुनर्वास का जरिया बन गए हैं। राजनीतिक दल कोई भी हो...जिसकी भी सरकार आती है, उसका उद्देश्य चुनाव कराने के बजाय सहकारी संस्थाओं में अपने नेताओं को बिठाने की ही रहती है। कुछ ही परिवार और समूह के सदस्य इन संस्थाओं में निर्वाचित तथा मनोनीत होते हैं। शायद यही कारण है कि आठ साल से समितियों के चुनाव नहीं हुए हैं। जबकि हर पांच साल में चुनाव कराने का प्रविधान है। हालांकि, सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक, अरविन्द सिंह सेंगर का कहना है कि पैक्स संस्थाओं के पुनर्गठन की बात पर भी सरकार गौर कर रही है। अगर ऐसा होता है तो सारी प्रक्रिया हो जाने के बाद ही चुनाव किए जा सकेंगे।
3. पूंजी के लिए सरकार पर अत्यधिक निर्भरता परेशानी की वजह: MP दुग्ध महासंघ के पूर्व चेयरमैन सुभाष मांडगे ने सहकारिता में अव्यवस्था के बारे में द सूत्र से बात की। उन्होंने बताया कि प्रदेश के जिला सहकारी बैंकों कि हालत नित नए घोटालों एवं दिए गए ऋण कि खराब वसूली के कारण इतनी खराब है कि वे भारी नुकसान में हैं। अपैक्स बैंक एवं नाबार्ड भी उन्हें पैसा देने मे हिचक रहा है। जिसकी वजह से जिला सहकारी बैंक अब केंद्र सरकार के अनुदान पर अत्यधिक निर्भर हो गए हैं। पूंजी निर्माण के लिए प्रयासों की कमी कि एक ये भी वजह है कि सदस्य हिस्सेदारी जितना बढ़ना चाहिए नहीं बढ़ रही। हालांकि, ऐसा भी नहीं है की सहकारिता को केंद्र से पैसा नहीं मिलता। 31 मार्च 2020 तक केंद्र द्वारा राज्य में सहकारिता के अलग-अलग क्षेत्रों के विकास के लिए 7337.481 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का अनुदान दिया गया पैसा इस प्रकार है।
सहकारिता के 120 वर्षों में नित नए नवाचार के बावजूद सहकारिता ठप ही है, कारण है भ्रष्टाचार: भारत में सहकारिता की शुरुआत 25 मार्च 1904 को हुई थी। लेकिन सहकारिता के क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने और भष्टाचार को कंट्रोल करने के लिए नए नवाचार किए गए। 2020-2021 के दौरान देश के मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव बैंक को RBI की निगरानी के दायरे में लाया गया। इससे सहकारी बैंकों के करोड़ों खाताधारकों की मेहनत की कमाई सुरक्षित करने कि कोशिश की गई। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार ने प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का कंप्यूटरीकरण भी शुरू किया, ताकि नागरिकों को कामन सर्विस सेंटर के तौर पर अन्य सुविधाएं भी दे सके। इसके बावजूद समितियों के स्तर पर अनियमितताओं की अधिक शिकायतें सरकार की चिंता बढ़ा रही हैं।
क्या लोकपाल के आने से हो सकेगा प्रदेश की सहकारी संस्थाओं का उद्धार? कुप्रबंध और भ्रष्टाचार के कारण कंगाली में पहुंची मध्य प्रदेश की प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों और जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों से जुड़ी शिकायतों की सुनवाई अब स्वतंत्र निकाय करेगा। मध्य प्रदेश में पहली बार यह व्यवस्था लागू की जा रही है। यह कदम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा शिकायतों के समाधान के लिए स्वतंत्र निकाय गठित करने की सिफारिश के बाद किया गया है। इसके लिए सहकारी लोकपाल की नियुक्ति स्वतंत्र निकाय में होगी। अरविन्द सिंह सेंगर का कहना है, "समय-समय पर आरोप लगते रहते हैं कि घोटाले के आरोपियों को जांच समितियों के अधिकारियों का ही संरक्षण मिलता है। लेकिन नियमानुसार यह मजबूरी होती है कि विभागीय अधिकारियों द्वारा की गई जांच के आधार पर ही कार्यवाही करनी पड़ती है। अब अगर एक स्वतंत्र निकाय, जिसमे लोकपाल की नियुक्ति भी की जाएगी बन जाएगा तो आरोपियों के बचाव का रास्ता खत्म हो जाएगा। इससे जांच में पारदर्शिता भी बढ़ेगी। लोकपाल ऐसे सेवानिवृत्त IAS अधिकारी, सहकारिता विभाग के अपर या संयुक्त पंजीयक स्तर के अधिकारी अथवा सचिव स्तर के अधिकारी को बनाया जाएगा। जिसकी उम्र 65 साल से कम हो। सेंगर का कहना है कि सहकारिता आयुक्त कार्यालय द्वारा प्रस्ताव राज्य शासन को भेज दिया गया है। अंतिम निर्णय सरकार के स्तर पर होगा।