जबलपुर HC: अलग-अलग धर्मों के बालिग साथ रहना चाहें तो मॉरल पुलिसिंग ठीक नहीं

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Pooja Kumari
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जबलपुर HC: अलग-अलग धर्मों के बालिग साथ रहना चाहें तो मॉरल पुलिसिंग ठीक नहीं

जबलपुर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अंतर जातीय विवाह (Intercast Marriage) से जुड़े एक मामले में अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि अगर अलग-अलग धर्मों के दो बालिग अपनी मर्जी से शादी करके (Marriage) या लिव इन (Live In Relationship) में साथ रहना चाहें तो उनकी मॉरल पुलिसिंग करना सही नहीं है। कानून इसकी इजाजत नहीं देता।





कोर्ट ने ये कहा: जस्टिस नंदिता दुबे की सिंगल बेंच ने कहा कि दोनों बालिग हैं, अपनी मर्जी से साथ रहना चाहते हैं, ना कि दबाव में ऐसा करने मजबूर है। यही नहीं, कोर्ट ने पुलिस को जरूरत पड़ने पर दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को भी कहा है। कहा कि पुलिस यह भी सुनिश्चित करें कि भविष्य में नवयुगल को कोई परेशान ना करे। 





ये था मामला: गोरखपुर में रहने वाले 27 वर्षीय गुलजार खान ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus Petition) दायर कर बताया कि उसने अपनी पड़ोसी आरती साहू के साथ 28 दिसंबर 2000 को मुंबई के बांद्रा की एक अदालत में शादी करने का बताया था। आरती ने भी अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल किया था। गुलजार के मुताबिक, गोरखपुर पुलिस मेरी पत्नी को ले आई। यहां (जबलपुर) लाकर काफी मारपीट के बाद पुलिस ने आरती को माता-पिता के हवाले कर दिया और उसे (गुलजार को) लेकर बनारस चले गए। 





मर्जी से इस्लाम कबूला: कोर्ट के निर्देश पर आरती साहू (19) को पेश किया गया। उसने गवाही में कहा कि मर्जी से इस्लाम अपनाया और गुलजार से शादी की। इस्लाम कबूल करने में किसी से दबाव नहीं बनाया। माता-पिता लगातार गुलजार के खिलाफ बयान देने दबाव बना रहे हैं। शासन की ओर से धर्मांतरण विरोधी कानून का हवाला देकर शादी का विरोध किया गया। तर्क दिया गया कि कानून कहता है कि कोई भी व्यक्ति शादी के उद्देश्य से धर्मांतरण नहीं कर सकता। पहले यह भी कहा गया कि आरती साहू को नारी निकेतन भेज दिया जाए।





सुनवाई के बाद कोर्ट ने आरती को नारी निकेतन भेजने की मांग खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा है कि आरती ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसे याचिकाकर्ता से मर्जी से शादी की और वह उसके साथ रहना चाहती है। लड़की को लड़के के साथ रहने का हक है।



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