वो ज्येष्ठ कौन्तेय था, पर सूतपुत्र कहलाया, मां को उसे क्यों बहाना पड़ा

author-image
Shivasheesh Tiwari
एडिट
New Update
वो ज्येष्ठ कौन्तेय था, पर सूतपुत्र कहलाया, मां को उसे क्यों बहाना पड़ा

कर्ण कुंती की संतान थे। कुंती का असली नाम पृथा था। कुंती मथुरा के राजा शूरसेन की बेटी थीं। भोजपुर के राजा कुंतीभोज शूरसेन के मित्र थे। कुंतीभोज को कोई संतान नहीं थी। शूरसेन ने अपनी पहली संतान कुंतीभोज को देने का वचन दिया। शूरसेन खुद पृथा को कुंतीभोज को दे आए। कुंतीभोज के यहां पृथा का मन नहीं लग रहा था। कुंतीभोज ने पृथा को मथुरा ले जाने को कहा। पृथा ने कहा- मैं क्षत्राणी हूं, आपकी बेटी हूं। कुंतीभोज ने पृथा को कुंती नाम दिया। 

एक बार दुर्वासा कुंतीभोज के यहां आए। उन्होंने यज्ञ कर पांचों महाभूतों को नियंत्रित कर लिया। कुंती की सेवा से खुश होकर उन्हें एक मंत्र दिया। कहा- जिस शक्ति का आह्वान करोगी, वो अपने जैसा पुत्र दे जाएगी। कुंती को एक सुबह सूर्य बहुत अच्छे लगे, मंत्र पढ़ दिया। कुछ देर में लगा कि एक अग्निपिंड शरीर से पार हो गया। कुछ दिन में कुंती को पता लगा कि कुंती को गर्भ ठहरा है। कुंती ने 9 महीने बाद बेटे को जन्म दिया। 

बेटे को जन्म से ही कवच और मांसल कुंडल थे। कुंती कुंवारी थीं, बच्चे को चांदी की पेटिका में रखकर नदी में छोड़ा। ये बच्चा चंपानगरी में अधीरथ और राधा को मिला। अधीरथ धृतराष्ट्र के सारथी थे। कर्ण चंपानगरी में पले-बढ़े। बाद में कर्ण को पिता हस्तिनापुर ले आए। पिता चाहते थे कि कर्ण युद्धविद्या सीखे। उन्हें द्रोण की युद्धशाला में ले जाया गया। द्रोण ने कृपाचार्य के पास भेज दिया।

कर्ण, अर्जुन को सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानते थे। एक बार द्रोण ने सर्वश्रेष्ठ योद्धा के लिए प्रतियोगिता करवाई। कर्ण और अर्जुन ने बराबरी से दमखम दिखाया। ध्वनिभेदी बाण चलाने में कर्ण नाकाम दिखे। भीष्म ने बताया कि कर्ण ने सही निशाना लगाया। कुत्ते के भौंकने से पहले एक पक्षिणी चहचहाई थी। कर्ण ने इसी पक्षिणी पर बाण चलाया था। विजेता अर्जुन को ही घोषित किया गया था। यहीं से अर्जुन और कर्ण के बीच खासा विरोध पनपा। प्रतियोगिता के बाद ही दुर्योधन ने कर्ण को अंगराज बनाया। यहीं से कर्ण और दुर्योधन की मित्रता पनपी।