डिंडौरी के रेत ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने व रिकवरी पर HC ने लगाई रोक, राज्य शासन और माइनिंग विभाग को लिया आड़े हाथ

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Rajeev Upadhyay
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डिंडौरी के रेत ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने व रिकवरी पर HC ने लगाई रोक, राज्य शासन और माइनिंग विभाग को लिया आड़े हाथ

Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने डिंडौरी जिले के रेत ठेके से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए राज्य शासन और माइनिंग विभाग के विरोधाभासी बयानों को आड़े हाथों लेते हुए जोरदार फटकार लगाई है। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की डबल बेंच ने कहा कि स्टेट माइनिंग विभाग की ओर से प्रस्तुत चार्ट से साफ है कि याचिकाकर्ता ठेकेदार ने जनवरी 2022 तक पूरी राशि जमा की है। इसलिए सवाल यह उठता है कि विभाग ने मनमाने तरीके से रिकवरी कैसे निकाल दी। 



इसी के साथ हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेशके तहत माइनिंग विभाग को निर्देशित किया है कि याचिकाकर्ता ठेकेदार को सरकार अगली सभी निविदा में शामिल होने की अनुमति दे। अग्रिम कार्रवाई विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगी। साथ ही बतौर अंतरिम राहत याचिकाकर्ता ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेड करने और रिकवरी पर रोक लगाई गई है। 



याचिकाकर्ता के पी भदौरिया की ओर से अधिवक्ता उमेश त्रिपाठी ने पक्ष रखा। दलील दी गई कि याचिकाकर्ता को जून 2020 में डिंडौरी में रेत ठेका आवंटित हुआ था। कोरोना के दौरान काम प्रभावित होने के कारण याचिकाकर्ता ने 15 दिसंबर 2021 को ठेका सरेंडर कर दिया। शासन ने यह कहते हुए सरेंडर आवेदन निरस्त कर दिया कि भुगतान शेष है। माइनिंग कारपोरेशन ने 5 मई 2022 को ठेका निरस्त कर याचिकाकर्ता के खिलाफ 9 करोड़ रुपए की रिकवरी निकाल दी। 



अदालत को बताया गया कि पैसा जमा करने के बाद भी कंपनी को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया। मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माइनिंग कारपोरेशन द्वारा प्रस्तुत चार्ट का अवलोकन करने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता ने जनवरी 2022 तक पूरा पैसा जमा किया है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए ठेकेदार को अंतरिम राहत प्रदान की। जिसके तहत ठेकेदार को ब्लैकलिस्टेड करने और रिकवरी पर रोक लगा दी गई है। 





सरकारी वकीलों की नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, नियुक्ति में आरक्षण की याचिका को एचसी ने किया था खारिज



मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति में आरक्षण न दिए जाने के रवैए को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इससे पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसे एकलपीठ ने निरस्त कर दिया था, जिसके बाद एकलपीठ के फैसले के विरूद्ध अपील दायर की गई थी। जिसमें प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू और जस्टिस अरुण कुमार शर्मा की युगलपीठ ने भी यह कहकर अपील खारिज कर दी थी कि शासकीय अधिवक्ताओं का पद संविदा आधारित होता है इसलिए अदालत सरकार को आरक्षण लागू करने के निर्देश नहीं दे सकती। 



हाईकोर्ट के इसी आदेश के विरूद्ध ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है। एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह व उदय कुमार साहू ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 26 सितंबर को निर्धारित की गई है। 


सरकार और माइनिंग विभाग को फटकार High court put a ban on blacklisting and recovery of sand contractor of Dindori Reprimand to the government and mining department राज्य शासन और माइनिंग विभाग को लिया आड़े हाथ डिंडौरी के रेत ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने व रिकवरी पर HC ने लगाई रोक