भोपाल। महिला एवं बाल विकास विभाग (WCD) के मानदेय घोटाले मामले में विधानसभा (vidhansabha) की लोक लेखा समिति (PAC) ने सख्ती दिखाई है। पीएसी ने सरकार को इस घोटाले की जांच महिला बाल विकास विभाग के सचिव स्तर के अधिकारी के अलावा वित्त विभाग (finance department) से भी कराने के आदेश दिए हैं। पीएसी के सभापति पीसी शर्मा (pc sharma) ने द सूत्र को बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकार्ता (aganwadi karyakarta) एवं सहायिकाओं (aganwadi sahayika) के मानदेय भुगतान में अनियमितता सामने आने के बाद अभी तक कुछ जिलों में ही जांच चल रही थी। लेकिन अब पीएसी ने सरकार को प्रदेश के सभी जिलों में मानदेय भुगतान की जांच कराने के निर्देश दिए हैं। द सूत्र ने 19 अक्टूबर को बताया था कि कैसे अधिकारियों की मिलीभगत से 14 जिलों में 26 करोड़ रुपयों का घोटाला हुआ है।
वित्त विभाग को सभी जिलों में जांच के निर्देश
विधानसभा में हाल ही में हुई पीएसी की बैठक में यह मामला सामने आने पर महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों ने बताया कि इस मामले में जांच की जा रही है। मानदेय के भुगतान में भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद 17 आरोपी कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर भी कराई जा चुकी है। इसके अलावा 28 लोगों के खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू की गई है। पीएसी के सदस्यों द्वारा की गई पूछताछ में यह बात भी सामने आई की रायसेन जिले में महिला बाल विकास विभाग की एक अधिकारी ने मानदेय के भुगतान की राशि निजी बैंक खाते में डलवाई थी। लेकिन मामले में सस्पेंड होने के बाद उसने पैसे लौटा दिए तो विभाग ने संबंधित महिला अधिकारी को बहाल कर दिया। इस पर पीएसी ने मामले की जांच प्रदेश के सभी जिलों में वित्त विभाग से भी कराने के निर्देश दिए हैं।
द सूत्र ने किया था जांच में लीपापोती का खुलासा
महिला एवं बाल विकास विभाग के 2018 ऑडिट के दौरान प्रदेश के कई जिलों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका के मानदेय के भुगतान में गड़बड़ी पकड़ी गई थी। जिसके बाद विभाग ने 6 अलग-अलग टीमों से जांच कराई। लेकिन सभी जांच अधिकारियों ने शिकायत को झूठा और निराधार बता दिया था। इन जांच दलों के मुख्य अधिकारियों में भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर निशांत वरवड़े, महिला एवं बाल विकास विभाग की संभागीय संयुक्त संचालक स्वर्णिमा शुक्ला, उप संचालक ज्योति श्रीवास्तव और वित्त सलाहकार राजकुमार त्रिपाठी शामिल थे। द सूत्र ने जब इस मामले को उठाया तो क्लीनचिट देने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी जांच शुरु हो गई। तीन सदस्यीय जांच समिति में महिला बाल एवं विकास विभाग के अपर संचालक आरपी रमनवाल, प्रभारी वित्तीय सलाहकार एनपी जोशी और सहायक संचालक सुबोध गर्ग शामिल हैं।
अफसरों ने मानदेय की राशि रिश्तेदारों के बैंक अकाउंट में डलवाई
प्रदेश के महालेखाकार (accountant general) के ऑडिट में सामने आया कि मई 2014 से दिसंबर 2016 के बीच भोपाल में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं के नाम से मानदेय मद में 3.30 करोड़ रुपये का आहरण कर विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपने रिश्तेदारों के बैंक खातों में जमा कर सरकारी राशि का गबन किया गया है। इसके बाद भोपाल में आंगनबाड़ी भवन का किराया मद, यात्रा भत्ता और फ्लेक्सी फंड की राशि में 17.54 लाख रुपये के साथ-साथ पोषण आहार मद की राशि के भी 6 करोड़ 82 लाख रुपये विड्रावल कर निजी बैंक खातों में जमा करा लिए गए।
इसके अलावा आंगनबाड़ी केंद्रों के दूसरे कई मदों की राशि से 3 करोड़ 69 लाख रुपये का गबन किया गया है। इसके अलावा कोष एवं लेखा विभाग के कमिश्नर ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में बताया कि परियोजना अधिकारियों और जिला कार्यक्रम अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेज बनाकर 5 करोड़ रुपये फर्जी खातों में जमा कर गबन किया है। इसमें परियोजनाओं के डाटा एंट्री आपरेटर, विभागीय कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों के बैंक खातों में न केवल भोपाल बल्कि दूसरे जिलों की राशि जमा कर गबन किया गया। ऐसे गबन सिर्फ भोपाल में ही नहीं बल्कि प्रदेश के 14 जिलों जैसे रायसेन, होशंगाबाद, डिंडोरी, खरगोन, मुरैना, राजगढ़, सीहोर, शहडोल, उज्जैन के अलावा और भी कई जिले शामिल हैं और गबन की राशि 26 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
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