INDORE : नोटबंदी में किसान पर लगाई गई इनकम टैक्स की पेनाल्टी खारिज, कृषि आय के लिए किसान के पास फसल बेचने के सबूत जरूरी नहीं

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The Sootr CG
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INDORE : नोटबंदी में किसान पर लगाई गई इनकम टैक्स की पेनाल्टी खारिज, कृषि आय के लिए किसान के पास फसल बेचने के सबूत जरूरी नहीं

संजय गुप्ता, INDORE. नोटबंदी के दौरान किसानों द्वारा फसल बेचकर नकद जमा कराई गई राशि को लेकर इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल इंदौर ने बड़ा फैसला सुनाया है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि यदि किसान के पास खेती की जमीन है, सिंचित है, उसके पास ऋण-पुस्तिका आदि दस्तावेज हैं तो केवल बिल, बाउचर नहीं होने के चलते उसकी आय को खेती की आय मानने से इनकार नहीं किया जा सकता है। ट्रिब्यूनल का नोटबंदी मामले में इस तरह का पूरे मध्यप्रदेश में ये पहला फैसला है।





ये है केस





हरदा के किसान मधुसूदन धाकड़ ने नोटबंदी के दौरान अपने खाते में 15 लाख रुपए नकद जमा कराए थे। इस पर आयकर ने नोटिस दिया, जिस पर किसान ने इसे खेती की आय बताई लेकिन आयकर ने बिल, बाउचर नहीं होने पर इसे खेती की आय मानने से इनकार करते हुए उस पर 77 फीसदी टैक्स और पेनाल्टी लगा दी।





किसान ने ट्रिब्यूनल में की अपील, ये रहे दोनों के तर्क





किसान ने इस फैसले पर इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल में अपील की। इस दौरान आयकर विभाग ने तर्क दिया कि विभाग ने बनाई गई खेती की आय संबंधी गाइडलाइन के हिसाब से किसान के पास खेती पैदावार के साक्ष्य के रूप में सारे खर्च के बिल, मजदूरों को किए गए पेमेंट के वाउचर, खाद, बीज एवं फर्टिलाइजर के बिल आदि से लेकर उत्पादन मंडी में बेचने के साक्ष्य और प्राप्त राशि का प्रूफ होना चाहिए, जो इनके पास नहीं थे। वहीं किसान की ओर से सीए मिलिंद वाधवानी ने कहा कि शासन ने विभिन्न कृषि उत्पादों के मानक बना रखे हैं कि कितनी भूमि पर कितना औसतन उत्पाद होता है जिससे भी कृषि आय को अनुमानित किया जा सकता है। क्योंकि इसके अलावा और कोई पैमाने नहीं है, वहीं किसानों के लिए सालों तक बिल, बाउचर को संभालकर रखना संभव नहीं है।





ट्रिब्यूनल ने ये कहा





ट्रिब्यूनल के ज्यूडिशियल मेंबर सुचित्रा कांबले और अकाउंटेंट मेंबर बीएम बियानी ने 28 जून को दिए अपने फैसले में ये माना कि भारत में कृषि का बाजार अनियंत्रित है और कई बार किसान मंडी में माल बेचने के बजाय सीधे व्यापारी या ग्राहक को कृषि उत्पाद बेच देते हैं जो ज्यादा किफायती होता हैं। कृषि उत्पादन करने में लगने वाले सारे खर्च के बिल मिलना भी संभव नहीं है क्योंकि किसान मुख्यतः नकद में खर्च करते हैं जिस पर आयकर में कोई मनाई नहीं है, साथ ही आयकर में स्क्रूटिनी दो से तीन साल बाद होती है और इतने समय तक किसान खर्चों के साक्ष्य नहीं सहेज पाते हैं। अगर कृषि भूमि शासकीय रिकॉर्ड में करदाता के नाम से है और सिंचित है, ऋण पुस्तिका और कृषि उत्पादन के कोई साक्ष्य हैं तो कृषि आय को माना जाना चाहिए।





ये कह रहे जानकार





आयकर विशेषज्ञ और सीए एसोसिशएन के पूर्व प्रेसीडेंट सीए पंकज शाह ने बताया कि इंदौर पीठ के इस महत्वपूर्ण फैसले में ये भी निर्णय दिया है कि अगर किसी किसान की आय का कोई और स्त्रोत नहीं है तो उसके पास मिली सारी संपत्ति और राशि को कृषि से हुई आय ही माना जाना चाहिए जो कर मुक्त है। इसलिए इस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। इस फैसले से नोटबंदी के दौरान खाते में नकद जमा करने वाले किसानों को बड़ी राहत मिलेगी जिनके मामले आयकर में लंबित हैं। ऐसे सैंकड़ों मामले कृषि आय को अमान्य करने और नोटबंदी में नकद जमा संबंधित मामले इंदौर, उज्जैन, खंडवा के आयकर जोन में चल रहे हैं।



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