Gwalior. पंचायत से लेकर स्थानीय निकाय चुनावों (local body elections) की प्रक्रिया परवान चढ़ रही है। नामांकन दाखिल करने का सिलसिला शुरू हो गया है। कांग्रेज, बीजेपी, बसपा सहित हर दल शिद्दत से जुटा है कि पंचायत पर उनके दल का उम्मीदवार ही जीतकर बैठे लेकिन ग्वालियर जिले में एक ऐसी नगर पंचायत भी है, जहां की जनता ने अपने गठन के बाद से एक बार भी किसी दल के व्यक्ति को अध्यक्ष पद संभालने का मौका नहीं दिया, बल्कि हर बार निर्दलीय को ही जिताकर बिठाते रहे हैं।
जीत के लिए दल छोड़ना पड़ा
क्षेत्रीय पत्रकार सुरजीत यादव कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र के नेता दलों में नेता नहीं हैं, बल्कि उनके प्रत्याशी भी मैदान में उतरते रहे है। लेकिन जीत कोई न सका। बीजेपी, कांग्रेस और बसपा से लड़कर हाकार चुके नेता, जब पार्टी छोड़ निर्दलीय (independent) मैदान में उतरे तो जनता ने उनके सिर पर जीत का सेहरा बांधने में देर भी नहीं लगाई।
ये है इतिहास
भितरवार (Bhitarwar) नब्बे के दशक में नगर पंचायत (Nagar Panchayat) बनी। इसका पहला चुनाव 1994 में हुआ और पहले अध्यक्ष बने अजीत सिंह। वे वार्ड 15 से निर्दलीय पार्षद और फिर अध्यक्ष बने। लेकिन वे पांच महीने ही अध्यक्ष रह सके और अविश्वास प्रस्ताव द्वारा उन्हें हटा दिया गया। उनके बाद पांच साल में तीन और अध्यक्ष बने। कमलेश खटीक, सुमत जैन और राजेंद्र दिधर्रा उसी पांच साल में अध्यक्ष चुने गए। यह सभी निर्दलीय थे।
सन 1999 में गयाप्रसाद मोदी, 2004 में उर्मिला बीनू पटेल, 2009 में सतीश मघैया और 2014 में कमलेश शिवप्रताप सिंह यादव यह तीनों निर्दलीय अध्यक्ष रहे। जिन्हें टिकट मिला जिसमें कला चौखे सिंह बीजेपी से, बीनू पटेल कांग्रेस से, अशोक अग्रवाल कांग्रेस से, शिवप्रताप सिंह को बीजेपी से, राधेलाल अग्रवाल बीएसपी से और उदयभान रावत को कांग्रेस से टिकट मिला लेकिन यह सभी पार्टी के बैनर पर चुनाव जीतने में असफल रहे।