BHOPAL : हमारी चुप्पी ने खत्म कर दी 60% ग्रीनरी, 2025 में बचेगी सिर्फ 3%, ऑक्सीजन की कमी और प्रदूषण से बढ़ने लगेंगे रोग

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BHOPAL : हमारी चुप्पी ने खत्म कर दी 60% ग्रीनरी, 2025 में बचेगी सिर्फ 3%, ऑक्सीजन की कमी और प्रदूषण से बढ़ने लगेंगे रोग

BHOPAL. राजधानी भोपाल की दो पहचान है...पहला झील और दूसरा यहां की हरियाली। यदि आपसे पूछा जाए कि भोपाल की हरियाली आपको कैसी लगी तो आप निश्चित तौर पर कहेंगे बहुत सुंदर। पर क्या आप जानते हैं कि विगत 32 सालों में यहां की ग्रीनरी लगभग खत्म हो गई है। पर्यावरणविद् सुभाष सी पांडे के शोध के मुताबिक 1990 में भोपाल की 66 प्रतिशत ग्रीनरी आज 6 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 2025 तक यह 3 प्रतिशत बचेगी। राजधानी भोपाल में बढ़ती हुई आबादी के हिसाब से यह स्थिति हवा—पानी और इकोलॉजी के साथ समांजस्य नहीं बैठा पाएगी, आक्सीजन की कमी और प्रदूषण बढ़ने से स्थिति खराब होती चली जाएगी, जिससे बीमारियां घर करने लगेंगी। देखा जाए तो इसके लिए सबसे बड़े दोषी हम ही हैं। हमारे आसपास ही रसूखदारों और नेताओं ने पेड़ काटकर अतिक्रमण किए और हम खामोश रहे। भोपाल में पेड़ लाखों की संख्या में कटे और हम पर्यावरण दिवस पर इक्का—दुक्का हो रहे पौधरोपण से ही खुश हो जाते हैं। यदि हमने अब भी अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी तो वो दिन दूर नहीं जब भोपाल से हरियाली ही गायब हो जाएगी और फिर इसके गंभीर परिणाम हमें भुगतने होंगे।  



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भोपाल शहर में ग्रीन कवर ऐसे हुई बर्बाद



वर्ष 1990 में 66 प्रतिशत ग्रीन कवर था, जो वर्ष 2007 में 38 प्रतिशत रह गया। वर्ष 2009 में 35 प्रतिशत, वर्ष 2019 में 9 प्रतिशत, वर्ष 2022 में 6 प्रतिशत हो गया है। राजधानी में जिस गति से पेड़ काटे जा रहे हैं उस अनुसार वर्ष 2025 में यह ग्रीनरी 3 प्रतिशत रह जाएगी। विगत 15 वर्षों में भोपाल शहर में वनों/पेड़ों की कटाई लगभग 29 प्रतिशत रही जो कि एक अलार्मिंग स्थिति है। नीति आयोग के अनुसार 30 प्रतिशत से अधिक हरियाली वाले स्थानों को ही रहने योग्य संतोषप्रद माना जा सकता है। इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि भोपाल में स्थिति कितनी चिंजा जनक है।



15 सालों में 225 एकड़ से गायब हो गया ग्रीन कवर



राजधानी भोपाल में वनों और वक्षों  की कटाई से स्थानीय आबोहवा और उसके पर्यावरण पर पड़ने वाली प्रभाव का अध्ययन करने के लिए जी सीड global earth Society for Envirnmental Energy and development की ओर से पर्यावरण विद डॉ सुभाष सी पांडेय के नेतृत्व में विस्तृत अध्ययन किया गया। जिसके अनुसार 15 सालों में 225 एकड़ से अधिक वन क्षेत्र/पेड़/ग्रीन कवर पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। यदि एक एकड़ में 450 वृक्षों के होने का अनुमान लगाया जाए तो राजधानी के मात्र 9 क्षेत्रों में ही लगभग 1.5 लाख वृक्षों की कटाई हो चुकी है। इन क्षेत्रों में होशंगाबाद रोड बीआरटीएस, कलियासोत डेम की ओर जाने वाली रोड, नॉर्थ टीटी नगर स्थित स्मार्ट रोड, रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक के बाईं ओर की साईट, रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक के दाईं ओर की साईट, न्यू मार्केट जिला के में गैमन इंडिया केंपस, चक्की चौराहा क्षेत्र, सेकंड स्टॉप स्थित वन विभाग द्वारा नवनिर्मित शासकीय भवन निर्माण स्थल और जागरण लेक सिटी यूनिवर्सिटी वन क्षेत्र शामिल है।




जागरण लेक यूनिवर्सिटी में 2009 से 2019 तक कैसे खत्म हुई हरियाली

जागरण लेक यूनिवर्सिटी में 2005 से 2019 तक कैसे खत्म हुई हरियाली





सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति टीटी नगर में



सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति नॉर्थ टीटी नगर स्थित स्मार्ट रोड क्षेत्र की है। आरटीआई से प्राप्त जानकारी एवं गूगल इमेजरी से प्राप्त परिणाम के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में 10 हजार से अधिक पेड़ों को कटा गया है। मध्य प्रदेश वृक्षों का परिरक्षण अधिनियम, 2001 में वृक्ष की परिभाषा दी गई है। जिसके अनुसार जिस पेड़ की ऊंचाई 2 मीटर और जमीन पर जिसके तने की मोटाई 30 सेंटीमीटर या अधिक हो... उसे ही वृक्ष माना जाएगा। लेकिन फिर भी शोध परिणाम की शुद्धता के लिए अधिकांशतः उन वृक्षों को ही अध्ययन में लिया है जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक हो चुकी है और जिन्हें हेरिटेज ट्री कहा जाता है। सोचिए उस स्थिति में परिणाम इतने डराने वाले हैं, यदि अध्ययन सभी छोटे बड़े पेड़ों के लिए होता तो स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।



यह है पेड़ो की कटाई के कारण



अनियोजित शहरीकरण (unplanned urbanization) और बढ़ते अतिक्रमण के कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई बढ़ी है। उल्लेखनीय है कि नदी, तालाबों और नहरों के किनारों को ग्रीन बेल्ट डेवलप करने के कड़े नियम बने है, पर इन नियमों की कैसे धज्जियां उड़ाई जाती है, इसका उदाहरण कलियानोत के ग्रीन बेल्ट पर बिल्डर द्वारा किया गया अतिक्रमण है। जिसने नदी के पूरे ग्रीन बेल्ट को ही खत्म कर दिया है और जिम्मेदार खामोश बैठे हैं। यही कारण है कि किसी भी नदी, तालाब या झील पर कोई पौधारोपण नहीं हुआ और न ही वनीकरण बढ़ा है।



6 लाख करोड़ के वनों की हो चुकी है कटाई!



सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित 5 सदस्यीय कमेटी (committee for economic valuation of heritage tree) की फरवरी 2021 में प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि एक पेड़ का आर्थिक मूल्य 74500 रुपए होता है, लेकिन 100 साल में उसी पेड़ की कीमत 1 करोड़ रुपयों से अधिक हो जाती है। यानि इस आधार पर पिछले 15 सालों में ही भोपाल शहर में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से 6 लाख करोड़ रुपयों से अधिक की आर्थिक क्षति हो चुकी है। इतने पेड़ों के जीवित रहते करीब 12 लाख लोगों को जीने के लिए पर्याप्त आक्सीजन उपलब्ध हो सकती थी।


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