संजय गुप्ता, INDORE. यहां आबकारी विभाग में एक नया घोटाला सामने आया है। यह वास्तव में 4 करोड़ 70 लाख का नहीं, बल्कि 41 करोड़ की तीन शराब दुकानों का है। इसमें आरोपी ठेकेदार मोहन कुमार और अनिल सिन्हा ने महज 52 लाख रुपए की ऑनलाइन रकम जमा करके यह 41 करोड़ का ठेका ले लिया। इस ठेके के बदले में दी गई अर्नेस्ट मनी 70 लाख की एफडी भी फर्जी है और 10% राशि जो ठेका राशि के बदले दी जाती है, वह चार करोड़ 70 लाख की एफडी भी फर्जी है।
मजे की बात यह है कि इस घोटाले की जानकारी विभाग को 2 जून को ही लग गई थी, तब विभाग ने ठेकेदार से मासिक राशि नहीं आने पर 2 जून को आईसीआईसीआई बैंक (मालव परिसर) को पत्र लिखकर 70 लाख की एफडी विभाग के खाते में जमा करने के लिए कहा। बैंक ने बताया कि वह राशि मात्र सात हजार है। इसका खुलासा होते ही विभाग के होश फाख्ता हो गए और 6 जून को ठेका लाइसेंस निरस्त किया। कायदे से ठेका लाइसेंस ठेके की 5% राशि जमा होने के बाद ही जारी होता है, यानी विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से यह ठेका बिना राशि जमा ही दो महीने तक चलता रहा और विभाग सोता रहा।
एक अधिकारी सस्पेंड, आगे और भी संदिग्ध अधिकारी
इस मामले में क्षेत्र के तत्कालीन सहायक जिला आबकारी अधिकारी (असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट एक्साइज अफसर) राजीव उपाध्याय को तत्काल निलंबित करने के आदेश हो गए हैं। इसके ऊपर के अधिकारियों और सहायक आयुक्त आबकारी अधिकारी राजनारायण सोनी की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है कि आखिर क्यों किसी ने वैरिफाई नहीं किया। जानकारी के अनुसार, इसके ऊपर के अधिकारियों पर भी इसी हफ्ते कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
मामले को दबाने के लिए बेंगलुरु तक हो आए अधिकारी
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, विभाग के अधिकारियों ने नया ठेका तो अन्य को दे दिया, लेकिन राशि जमा कराने के लिए ये ठेकेदार के बेंगलुरु के दिए पते तक हो आए, लेकिन वहां कोई नहीं मिला, वहां नोटिस चिपकाकर आए हैं। दो महीने तक विभाग के अधिकारी इस मामले को दबाने में लगे रहे और आखिर में थक-हारकर ठेके की 10% राशि को जब्त करने की कार्रवाई शुरू की। 2 अगस्त को सहायक जिला आबकारी अधिकारी राजीव मुदगल ने बैंक को पत्र लिखकर 4.70 करोड़ की राशि मांगी। 3 अगस्त को बैंक ने बताया कि यह केवल 47 हजार है। इस पत्र के आते ही ताबड़तोड रिपोर्ट बनाकर कलेक्टर को भेजी गई, कलेक्टर ने FIR के आदेश दिए और रात को रावजी बाजार थाने में यह एफआईआर की गई।
पहले बिना राशि जमा करवाए लाइसेंस दिया, फिर दो महीने सोते रहे अधिकारी
इस पूरे मामले में अधिकारी पहले तो ठेका एक अप्रैल को चालू होने और 18 अप्रैल को 70 लाख की एफडी (जो फर्जी थी) जमा होने के बाद भी इसके वैरिफिकेशन के लिए दो माह तक सोते रहे। ठेकेदारों ने 10% राशि की एफडी 4.70 करोड़ (ये भी फर्जी एफडी थी) 13 अप्रैल को दी। लेकिन दोनों को चेक नहीं किया गया। कायदे से सात दिन के भीतर इनका सत्यापन बैंक से कराना था और पांच फीसदी राशि खाते में आने पर ही लाइसेंस जारी होना था। इसके बाद भी दो जून को जब बैंक ने 70 लाख की एफडी गलत बता दी तो भी नहीं चेते और दो माह फिर सोते रहे। ठेके की दस फीसदी राशि की एफडी 4.70 करोड को चेक करने के लिए दो माह तक रुके रहे और दो अगस्त को बैंक को पत्र लिखा।
दिनभर अधिकारियों को लगाते रहे फोन, कोई नहीं आया
द सूत्र के संवाददाता योगेश राठौर इस मामले में चार अगस्त को दिनभर सहायक आयुक्त राजनारायण सोनी को फोन लगाते रहे, मिलने का पहले समय भी दिया, लेकिन फिर तबीयत खराब होने का बोलकर चले गए। दिनभर कोई जवाब नहीं दिया। एफआईआर कराने वाले सहायक जिला आबकारी अधिकारी मुदगल ने भी मामले में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। उधर, एक्साइज कमिश्नर राजीव दुबे ने यह तो कन्फर्म किया कि उपाध्याय को सस्पेंड कर दिया लेकिन बाकी जानकारी के लिए कहा कि जिले के अधिकारियों से बात कर लीजिए।