MP: क्या सिंगरौली से 'आप' की दस्तक सुन रहे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

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MP: क्या सिंगरौली से 'आप' की दस्तक सुन रहे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

जयराम शुक्ल, REWA. हमारे रिमही में एक कहावत है "बिलारी से डर नहीं डर ओके लहटे से हय"। क्या आम आदमी पार्टी के इसी डर की प्रतिक्रिया थी कि 3 जुलाई को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने आप की प्रत्याशी पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाकर हमले किए। शिवराज सिंह चौहान सिंगरौली के चुनावी रोड शो पर थे। एक दिन पहले वहाँ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपना रोड शो कर महापौर की प्रत्याशी रानी अग्रवाल का रंग जमा चुके थे।





क्या कहा था शिवराज सिंह ने..





सिंगरौली के रोड शो में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने आप प्रत्याशी रानी अग्रवाल के पारिवारिक मसले पर टिप्पणी करते हुए कहा था- 'आप की प्रत्याशी हैं रानी अग्रवाल उनके देवर विकास अग्रवाल ने मुझसे मिलकर फरियाद की कि रानी ने उनका हिस्सा हड़प लिया है, मुझे न्याय दिलवाइए.. अरे जो घर वालों के साथ अन्याय करता है वह सिंगरौली वालों के साथ क्या न्याय करेगा ।' आमतौर पर शिवराजसिंह चौहान इतने नीचे स्तर तक पहुंच कर टिप्पणी नहीं करते, वह भी सामने कोई महिला हो तब। क्या सिंगरौली में आप की बढ़त को लेकर यह चौहान की बौखलाहट है..? इस सवाल के जवाब में सिंगरौली के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मिश्र कहते हैं - आप न सिर्फ मुकाबले पर है बल्कि उसकी बढ़त साफ दिख रही है। अरविंद केजरीवाल के ऐतिहासिक रोड शो ने बीजेपी के कान खड़े कर दिए....और कांग्रेस चुनावी मुकाबले में खिसककर तीसरे-चौथे क्रम पर पहुंच गई।





केजरीवाल के शो पर पलीता लगाने की दृष्टि से बीजेपी ने रानी के देवर  विकास अग्रवाल को तोड़ा व बीजेपी में शामिल करके उनसे कहलाया कि रानी अग्रवाल उस पर अत्याचार कर रही हैं। रोड शो में मुख्यमंत्री ने विकास को अपने बगल में खड़ा कर रखा था।





क्यों है 'आप' की रानी इतनी ताकतवर ?





रानी इतनी ताकतवर हैं कि यह आप की महिमा है? इस सवाल पर सिंगरौली की राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शिवगोविंद शाह कहते हैं कि निश्चित तौर पर रानी अग्रवाल और उनके परिवार का सिंगरौली में प्रभाव है लेकिन आम आदमी पार्टी का बैनर  एक पुख्ता राजनीतिक आधार उपलब्ध कराता है। राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्र कहते हैं कि बीजेपी और कांग्रेस के प्रत्याशियों के चयन से मतदाताओं का एक वर्ग नाराज है वही रानी अग्रवाल के पक्ष में जुट रहा है। बीजेपी और कांग्रेस के असंतुष्ट नेता भीतरी तौर पर मदद कर रहे हैं। मिश्र कहते हैं कि बीजेपी के सवर्ण मतदाता उम्मीद लगाए बैठे थे कि किसी सामान्य वर्ग से प्रत्याशी मिलेगा लेकिन भाजपा ने चन्द्रप्रताप विश्वकर्मा को मौका दिया जिनपर पिछले मर्तबा पार्टी में विद्रोह कर अध्यक्ष बन जाने का लांछन है। भाजपाई ही पार्टी को सबक सिखाने पर तुले हैं।





क्या है रानी पारिवारिक विवाद, जिसे मुख्यमंत्री चौहान ने हवा दी





दरअसल रानी अग्रवाल बरगँवा के मशहूर सेठ रामनिवास अग्रवाल की बहू हैं। सेठ जी का लकड़ी के टाल का बड़ा कारोबार था। सिंगरौली के मुख्यालय बैढ़न में उनका घर है। सेठ रामनिवास की ख्याति समाजसेवी व मददगार के रूप में रही है। पाँच साल पहले उनकी मौत हो गई। आरोप है कि रानी अग्रवाल के पति प्रेम अग्रवाल ने पिता की तीन चौथाई जायजाद अपने नाम करवा ली। उनके छोटे भाई यानि कि रानी के देवर पाँच साल से जमीन जायजाद का मुकदमा लड़ रहे हैं। इस चुनाव में रानी के रसूख को तोड़ने के लिए बीजेपी नेता विकास अग्रवाल को ढूँढ लाए और मुख्यमंत्री के सामने पेश कर दिया। मुख्यमंत्री ने उन्हें बीजेपी में शामिल करते हुए विकास को रानी के खिलाफ चुनाव अस्त्र बना दिया। 





पत्रकार शिवगोविंद कहते हैं कि रानी के साथ एक के बाद एक छल हुआ जिससे मतदाताओं की सहानुभूति उनके साथ ज्यादा है। पिछली बार जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर वे सिक्का उछाल निर्णय से हार गईं( या हरा दी गईं )। फिर 2018 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर 32 हजार वोट हासिल कर अपना दमखम दिखा दिया। उन्हें बीजेपी जैसा सत्ताश्रय मिला होता तो वे बड़े अंतर से चुनाव जीततीं"।





सिंगरौली में बीजेपी का तिलस्म..





बीजेपी ने 2008 में विधानसभा चुनाव से पहले सीधी से काटकर सिंगरौली को जिला बनाया था। इसके बाद से वहाँ की तीनों सीटों पर उसका परचम फहराता रहा। सीधी के मूलनिवासी राष्ट्रीय नेता अर्जुन सिंह व उनके बेटे अजय सिंह राहुल पर सिंगरौली को जिला न बनाने देने का आरोप लगता रहा है। कांग्रेस में राहुल के प्रतिद्वंद्वी व सगे बहनोई वीपी सिंह राजाबाबा ,राहुल को सिंगरौली में अड़ंगा बाबा कहकर मजाक उड़ाते रहे हैं। इसी कलह की वजह से सिंगरौली कांग्रेस के हाथों से खिसकी। सिंगरौली के एनसीएल व एनटीपीसी में काम करने वाली बड़ी आबादी उड़ीसा, बिहार, बंगाल और उत्तरप्रदेश की है इसलिए सिंगरौली की राजनीतिक तासीर भी मिश्रित है। बीजेपी ने अब तक जातीय-सांप्रदायिक गणित की नहीं अपितु सिंगरौली को जिला बनाने की पुण्याई खाई है। लेकिन जिस सिंगरौली को सिंगापुर बनाने का ख्वाब दिखाया था उसमें असफल रही। लोग कहने लगे कि 'चले थे सिंगापुर बनाने बना दिया सिंगुर'। महापौर का चुनाव एक तरह से बीजेपी का लिटमस टेस्ट है कि अभी उसका कुछ तिलस्म बचा है या फिर सिंगरौली के धुंध की ओर जा रहा है..। बहरहाल मुख्यमंत्री शिवराज के कान तो 'आप' के झाड़ू की खरखराहट सुन ही रहे हैं।



 



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